मेरी कहानी
मेरी कहानी
मेरा एक बेटा आई.ए.एस. है। एक बेटा डॉक्टर है और....एक बेटा प्रिन्सिपल है॥
पर....मैं कौन हूँ?
रिटायरमेंट के बाद, जब जीवन में ख़ालीपन और अकेलापन आया, तब आत्मचिंतन की एक गहरी अनुभूति हुई।
(कृपया ध्यान से पढ़ें और मनन करें...)
तो बताता हूँ, मैं कौन हूँ?
मैंने एक फ़्लैट ख़रीदा। एक बंगला बनाया। एक बड़ा सा फ़ार्म हाउस बनाया।
फिर भी आज, चार दीवारों में क़ैद हूँ।
साइकिल से शुरुआत की, फिर मोपेड, बाइक और कारों में चला।
पर फिर भी आज, कमरे में नंगे पाँव चलता हूँ।
प्रकृति मुस्कुराई और पूछा, “तुम कौन हो, मेरे मित्र?”
मैंने गर्व से उत्तर दिया, “मैं... मैं हूँ।”
मैंने राज्यों, देशों और विदेशों की यात्राएँ कीं।
फिर भी आज मेरी यात्रा ड्राइंग रूम और रसोई तक सीमित है।
मैंने अनेक संस्कृतियाँ और परंपराएँ समझीं।
फिर भी आज, अपने ही परिवार को समझने की कोशिश करता हूँ।
प्रकृति मुस्कुराई और पूछा, “तुम कौन हो, मेरे मित्र?”
मैंने फिर गर्व से उत्तर दिया, “मैं... मैं हूँ।”
मैंने जन्मदिन, सगाई और शादी को बड़े धूमधाम से, उत्सव जैसा बनाया।
फिर भी आज किराने का बजट बनाता हूँ।
कभी गायों और कुत्तों के लिए रोटियाँ बनवाता था।
फिर भी आज, ख़ुद कुछ निवाले ही खा पाता हूँ।
प्रकृति मुस्कुराई और पूछा, “तुम कौन हो, मेरे मित्र?”
मैंने वही उत्तर दिया, “मैं... मैं हूँ।”
सोना, चांदी, हीरे, मोती - सभी तिजोरी में बंद हैं।
सूट और ब्लेज़र - अलमारी में रखे हैं।
फिर भी आज, एक साधारण सूती कपड़े में ही घूमता हूँ।
प्रकृति मुस्कुराई और पूछा, “तुम कौन हो, मेरे मित्र?”
मेरा उत्तर वही था, “मैं... मैं हूँ।”
मैंने अंग्रेज़ी, फ्रेंच, हिन्दी सीखी।
फिर भी आज, अपनी मातृभाषा में ही समाचार पढ़ता हूँ।
प्रकृति मुस्कुराई और पूछा, “तुम कौन हो, मेरे मित्र?”
अब भी मेरा वही उत्तर था “मैं... मैं हूँ।”
कार्य और लाभ के लिए लगातार यात्रा करता रहा।
फिर भी आज, न जाने क्यों, उसके लाभ-हानि पर विचार करता हूँ।
मैंने व्यापार खड़ा किया, परिवार बसाया, कई रिश्ते बनाए।
फिर भी आज, सबसे गहरा रिश्ता पड़ोसी से है।
पढ़ाई में हज़ारों नियमों का पालन किया, किताबों से ज्ञान बटोरा।
फिर भी आज, ये जीवन जीने के लिए, व्यवहारिक ज्ञान पर निर्भर हूँ।
एक पूरी ज़िंदगी, संघर्ष करते और दुनिया के पीछे भागते हुए बीती।
परन्तु अब पहली बार, जब हाथों में माला घुमा रहा हूँ।
तब आत्मा की आवाज़ सुनाई दी है।
अब बहुत हो चुका.....जागो यात्री! अब अंतिम यात्रा की तैयारी करने का समय है।
प्रकृति फिर मुस्कुराई और पूछा, “तुम कौन हो, मेरे मित्र?”
अब मैंने उत्तर दियाः
“हे प्रकृति, मैं तो शायद सदा से तुम्हारा ही अंश हूँ।”
नहीं ! मैं तो एक ज्योर्तिबिंदु आत्मा हूँ, किंतु मैं महत्वाकांक्षाओं के आकाश में उड़ता था।
परन्तु अब सत्य के धरातल पर लौट आया हूँ।
मुझे क्षमा करो......
एक और अवसर दो, जीवन को तुम्हारे नियमों में बांधकर, जीने का।
एक सच्चे इंसान की तरह जीने का।
संस्कारों और मूल्यों के साथ जीने का।
परिवार और प्रेम के साथ जीने का।
--
सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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