माता कैकयी

  माता कैकयी 

माता कैकयी के लिए धारणा बदलिए आप...

अध्यात्म रामायण कहती है कि एक रात जब माता कैकेयी सोती हैं, तो उनके स्वप्न में विप्र, धेनु, सुर, संत सब एक साथ हाथ जोड़ कर आते हैं और उनसे कहते हैं कि ‘हे माता कैकेयी, हम सब आपकी शरण में हैं। महाराजा दशरथ की बुद्धि जड़ हो गयी है। तभी वे राम को राजा का पद दे रहे हैं। अगर प्रभु राजगद्दी पर बैठ गए, तब उनके अवतार लेने का मूल कारण ही नष्ट हो जायेगा।

माता, सम्पूर्ण पृथ्वी पर सिर्फ आप में ही यह साहस है कि आप राम से जुड़े अपयश का विष पी सकती हैं। कृपया प्रभु को जंगल भेज कर सुलभ करिये, युगों-युगों से कई लोग उद्धार होने की प्रतीक्षा में हैं। त्रिलोक स्वामी का उद्देश्य भूलोक का राजा बनना नहीं है। अगर वनवास न हुआ, तो राम इस लोक के ’प्रभु’ न हो पाएंगे, माता।’ यह कहते-कहते देवता घुटनों पर आ गए।

माता कैकेयी की आँखों से आँसू बहने लगे। माता बोलीं - ’आने वाले युगों में लोग कहेंगे कि मैंने भरत के लिए राम को छोड़ दिया लेकिन असल में मैं राम के लिए आज भरत का त्याग कर रही हूँ। मुझे मालूम है इस निर्णय के बाद भरत मुझे कभी स्वीकार नहीं करेगा।’

रामचरित मानस में भी कई जगहों पर इसका संकेत मिलता है। जब गुरु वशिष्ठ दुःखी भरत से कहते हैं -

सुनहु भरत भावी प्रबल

बिलखि कहेउ मुनिनाथ।

हानि लाभु जीवनु मरनु

जसु अपजसु बिधि हाथ।

हे भरत ! सुनो भविष्य बहुत बलवान् है। हानि, लाभ, जीवन, मरण और यश, अपयश, ये सब विधाता के ही हाथ में है, बीच में केवल माध्यम आते हैं।

प्रभु इस लीला को जानते थे इसीलिए चित्रकूट में तीनों माताओं के आने पर प्रभु सबसे पहले माता कैकेयी के पास ही पहुँच कर प्रणाम करते हैं क्योंकि उनको पैदा करने वाली भले ही कौशल्या जी थीं, लेकिन उनको ’मर्यादा पुरुषोत्तम’ बनाने वाली माता कैकेयी ही थीं।

--

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏


विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद। 

Comments

Popular posts from this blog

अगली यात्रा - प्रेरक प्रसंग

Y for Yourself

आज की मंथरा

आज का जीवन -मंत्र

बुजुर्गों की सेवा की जीते जी

स्त्री के अपमान का दंड

आपस की फूट, जगत की लूट

वाणी बने न बाण

कठिनाईयां

दुर्वचनों की अपेक्षा मौन अच्छा