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दान देने से पहले

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  दान देने से पहले दान देने से पहले जरा सोच लें।  दान करना हमारे समाज में अति शुभ माना गया है, लेकिन कई बार यह दान दुःख का कारण भी बन जाता है। हमारे आसपास ऐसे कई व्यक्ति है जो ज्यादा दान, ज्यादा धर्म में लीन रहते है। फिर भी कष्ट उनका व उनके परिवार का पीछा नहीं छोड़ता। तब हम अपने को सांत्वना स्वरूप यह कह कर संतोष करते है कि भगवान शायद हमारी परीक्षा ले रहा है। अरे भाई! भगवान कोई तुम्हारी परीक्षा वगैरह नहीं ले रहा, बल्कि वह तो तुम्हारे ही कर्मो का फल तुम्हें दे रहा है। बहुत दान धर्म करने के बाद भी सुख नहीं मिलता क्योंकि तुम्हारे द्वारा दिया दान ही दुःख का कारण बन जाता है। एक समय की बात है। एक बार एक गरीब आदमी एक सेठ के पास जाता है और भोजन के लिए सहायता मांगता है। सेठ बहुत धर्मात्मा होता है। वह उसे पैसे देता है। पैसे लेकर व्यक्ति भोजन करता है और उसके पास कुछ पैसे बचते हैं, जिससे वह शराब पी लेता है। शराब पीकर घर जाता है और अपनी पत्नी को मारता है। पत्नी दुःखी होकर अपने दो बच्चों के साथ तालाब में कूद कर आत्म हत्या कर लेती है। कुछ समय बाद उस सेठ की भी असाध्य रोग से मृत्यु हो जाती है। ...

कोई काम छोटा नहीं

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  कोई काम छोटा नहीं एक बार भगवान अपने एक निर्धन भक्त से प्रसन्न होकर उसकी सहायता करने उसके घर साधु के वेश में पधारे। उनका यह भक्त जाति से चर्मकार था और निर्धन होने के बाद भी बहुत दयालु और दानी प्रवृत्ति का था। वह जब भी किसी साधु संत को नंगे पाँव देखता, तो अपने द्वारा गाँठी गई जूतियाँ या चप्पलें बिना दाम लिए उन्हें पहना देता।  जब कभी भी वह किसी असहाय या भिखारी को देखता तो घर में जो कुछ मिलता, उसे दान कर देता। उसके इस आचरण की वजह से घर में अकसर फाका पड़ता था। उसकी इन्हीं आदतों से परेशान होकर उसके माँ-बाप ने उसकी शादी करके उसे अलग कर दिया, ताकि वह गृहस्थी की ज़िम्मेदारियों को समझे और अपनी आदतें सुधारे। लेकिन इसका उस पर कोई असर नहीं हुआ और वह पहले की ही तरह लोगों की सेवा करता रहा।  भक्त की पत्नी भी उसे पूरा सहयोग देती थी। ऐसे भक्त से प्रसन्न होकर ही भगवान उसके घर आए थे, ताकि वे उसे कुछ देकर उसकी निर्धनता दूर कर दें तथा भक्त और अधिक ज़रूरत मंदों की सेवा कर सके। भक्त ने द्वार पर साधु को आया देख अपने सामर्थ्य के अनुसार उनका स्वागत सत्कार किया। वापस जाते समय साधु भक्त को पारस पत्थर ...

आज का जीवन -मंत्र

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 आज का जीवन -मंत्र  शब्दों को अपने अनुसार प्रयोग करके कुछ लोग दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं।  एक घोड़ा अपने अस्तबल में आता है, तो सोचता है कि थोड़ा आराम कर लूँ। इतने में कुत्ता उसके पास आता है और पूछता है, “कैसे हो?“  घोड़ा कहता है - थक गया हूँ, यार! अब थोड़ा आराम चाहता चाहता हूँ।  कुत्ता गाय के पास जाता है और कहता है, “घोड़े को देखा तुमने? आजकल उसका दिल यहाँ नहीं लग रहा। कहता है बहुत थक जाता हूँ।“  (यहाँ घोड़े ने ‘थक गया हूँ’ कहा था, जबकि कुत्ते ने उसके स्थान पर “थक जाता हूँ“ शब्दों का प्रयोग किया।) गाय भैंस के पास गई और बोली - “लगता है कि घोड़ा अब यहॉँ नहीं रहना चाहता। बोलता है कि बहुत काम करना पड़ता है।“   भैंस बकरी के पास गई और बोली, “लगता है घोड़े को अब यहाँ रहना अच्छा नहीं लग रहा। कहता है - मालिक बहुत काम करवाता है। मारता भी है।(शब्दों का हेर फेर चल रहा है, मसाला लग रहा है।) शाम को नौकर आया तो बकरी उसके पास गई और बोली, “ घोड़े के नखरे बढ़ गए हैं। उसे मालिक से बहुत शिकायतें हो गई हैं। अब शायद वह यहाँ नहीं रहेगा। कहीं भाग जाएगा।“  नौकर मालिक के पास ...

भिखारी पने का अनुभव

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भिखारी पने का अनुभव  एक भिखारी एक दिन अमेरिका के एक अरब पति एण्ड्रू कार्नेगी के पास गया। सुबह ही सुबह जाकर उसने बड़ा शोरगुल मचाया। तो एण्ड्रू कार्नेगी खुद बाहर आया और उसने कहा कि इतना शोर गुल मचाते हो! और भीख मांगनी हो तो वक्त से मांगने आओ! अभी सूरज भी नहीं निकला है, अभी मैं सो रहा था। उस भिखारी ने कहा - रुकिए। अगर मैं आपके व्यवसाय के संबंध में कोई सलाह दूं तो क्या आपको अच्छा लगेगा?  एण्ड्रू कार्नेगी ने कहा कि बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा। तुम सलाह दे भी क्या सकते हो मेरे व्यवसाय के संबंध में! तुम्हारा कोई अनुभव नहीं है।  उस भिखारी ने कहा - आप भी सलाह मत दें। आपको भी मेरे व्यवसाय का कोई अनुभव नहीं है। जब तक हम उत्पात न करें, शोर न करें, तब तक कोई भीख नहीं देता?  आपके अनुसार आपके वक्त से आने पर आपसे मिलना ही मुश्किल था। तब सेक्रेटरी होता, पहरेदार होते। अभी बेवक्त आया हूं तो सीधा आपसे मिलना हो गया। सलाह आप मुझको मत दें, मेरा पुराना धंधा है और बपौती है, बाप-दादा भी यही करते रहे हैं।  एण्ड्रू कार्नेगी ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि मैं खुश हुआ उस आदमी की बात से। मैंने उ...

सेवा का फल मेवा

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  सेवा का फल मेवा किसी की चोर लूटे, किसी की आग जलाए।  लेकिन धन उसकी सफल हो, जो ईश्वरीय अर्थ लगाए। एक बार एक महात्मा जी निर्जन वन में भगवद्चिंतन के लिए जा रहे थे, तो उन्हें एक व्यक्ति ने रोक लिया। वह व्यक्ति अत्यंत गरीब था। बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पाता था।  उस व्यक्ति ने महात्मा से कहा - महात्मा जी! आप परमात्मा को जानते हैं, उनसे बातें करते हैं। अब यदि परमात्मा से मिले तो उनसे कहियेगा कि मुझे सारी उम्र में जितनी दौलत मिलनी है, कृपया वह एक साथ ही मिल जाये ताकि कुछ दिन तो में चैन से जी सकूँ।  महात्मा ने उसे समझाया - मैं तुम्हारी दुःख भरी कहानी परमात्मा को सुनाऊंगा लेकिन तुम जरा खुद भी सोचो, यदि भाग्य की सारी दौलत एक साथ मिल जायेगी तो आगे की ज़िन्दगी कैसे गुजारोगे?  किन्तु वह व्यक्ति अपनी बात पर अडिग रहा। महात्मा उस व्यक्ति को आशा दिलाते हुए आगे बढ़ गए। इन्हीं दिनों में उसे ईश्वरीय ज्ञान मिल चुका था। महात्मा जी ने उस व्यक्ति के लिए अर्जी डाली। परमात्मा की कृपा से कुछ दिनों बाद उस व्यक्ति को काफी धन-दौलत मिल गई।  जब धन-दौलत मिल गई तो उसने सोचा - मैंने ...

आपस की फूट, जगत की लूट

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  आपस की फूट, जगत की लूट  आपसी फूट चाहे आपस में हो, परिवार में हो, समाज में या देश में कही भी हो नुकसानदायक ही होती है। भारतीय समाज की आज भी बहुत बड़ी कमजोरी है कि वे जात-पांत और वर्गों में विभक्त हैं, हर बार हमारी आपसी फूट सामने आई। पुराना इतिहास देखें तो अकसर देश की रियासतों ने एक दूसरे का सहयोग नहीं किया। इस कमजोरी का सबने खूब लाभ उठाया है और करीब 750 वर्षों तक अपना भारत देश गौरी, गजनी, गुलाम, सुलतान, लोधी, मुगल आदि वंशों का गुलाम रहा और आखिरी 150 वर्ष अंग्रेजों तथा पुर्तगालियों के पराधीन रहा। सन् सोलह सौ बारह की बात है। ईस्ट इंडिया कंपनी का एक अंग्रेज कर्मचारी जेठ की भरी दुपहरी में कलकत्ता के बाजार का चक्कर लगा रहा था। उसने देखा कि बहुत से लोग मिट्टी का एक खास बर्तन खरीद रहे हैं। जिज्ञासावश वह भी दुकान पर पहुंचा। दुकानदार से उसने पूछा, इस बर्तन का क्या नाम है और इसे इतने लोग क्यों खरीद रहे हैं? बूढ़े दुकानदार ने कहा - साहब! इसे घड़ा कहते हैं। इसमें पानी रखेंगे तो ठंडा रहेगा। अंग्रेज कर्मचारी एक घड़ा खरीदकर आगे बढ़ा, कुछ फर्लांग दूर एक और मिट्टी के बर्तन की दुकान पर भीड़ लगी थी। ...

दस रुपये के बदले 13 लाख

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  दस रुपये के बदले 13 लाख सेठ ने अभी दुकान खोली ही थी कि एक औरत आई और बोली :- “सेठ जी ये अपने दस रुपये लो..।“ सेठ उस गरीब-सी औरत को प्रश्नवाचक नजरों से देखने लगा, जैसे पूछ रहा हो कि मैंने कब तुम्हे दस रुपये दिये? औरत बोली :- कल शाम को मैं सामान ले गई थी, तब आपको सौ रुपये दिये थे। 70 रुपये का सामान खरीदा था। आपने 30 रुपये की जगह मुझे 40 रुपये वापस दे दिये।“  सेठ ने दस रुपये को माथे से लगाया, फिर गल्ले मे डालते हुए बोला :- एक बात बताइये, बहन जी? आप सामान खरीदते समय कितने मौल भाव कर रही थी। पांच रुपये कम करवाने के लिए आपने कितनी बहस की थी और अब ये दस रुपये लौटाने चली आई?  औरत बोली :- “पैसे कम करवाना मेरा हक है। मगर एक बार मौल भाव होने के बाद उस चीज के कम पैसा देना पाप है।“ सेठ बोला :- लेकिन, आपने कम पैसे कहाँ दिये? आपने पूरे पैसे दिये थे, ये दस रुपया तो मेरी गलती से आपके पास चला गया। रख लेती, तो मुझे कोई फर्क नही पड़ने वाला था।  औरत बोली :- आपको कोई फर्क नही पड़ता? मगर मेरे मन पर हमेशा ये बोझ रहता कि मैंने जानते हुए भी आपके पैसे खाये। इसलिए मैं रात को ही आपके पैसे वापस दे...

विश्वास

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  विश्वास 8 साल का एक बच्चा 1 रुपये का सिक्का मुट्ठी में लेकर एक दुकान पर जाकर कहा - क्या आपके दुकान में ईश्वर मिलेंगे? दुकानदार ने यह बात सुनकर सिक्का नीचे फेंक दिया और बच्चे को निकाल दिया। बच्चा पास की दुकान में जाकर 1 रुपये का सिक्का लेकर चुपचाप खड़ा रहा! ‘ए लड़के! 1 रूपये में तुम क्या चाहते हो?’ ‘मुझे ईश्वर चाहिए। आपके दुकान में है?’ दूसरे दुकानदार ने भी भगा दिया। लेकिन, उस अबोध बालक ने हार नहीं मानी। एक दुकान से दूसरी दुकान, दूसरी से तीसरी, ऐसा करते करते कुल चालीस दुकानों के चक्कर काटने के बाद एक बूढ़े दुकानदार के पास पहुंचा। उस बूढ़े दुकानदार ने पूछा - ‘तुम ईश्वर को क्यों खरीदना चाहते हो? क्या करोगे ईश्वर लेकर?’ पहली बार एक दुकानदार के मुंह से यह प्रश्न सुनकर बच्चे के चेहरे पर आशा की किरणें लहराईं।  लगता है इसी दुकान पर ही ईश्वर मिलेंगे! बच्चे ने बड़े उत्साह से उत्तर दिया - ‘इस दुनिया में मां के अलावा मेरा और कोई नहीं है। मेरी मां दिनभर काम करके मेरे लिए खाना लाती है। मेरी मां अब अस्पताल में हैं। अगर मेरी मां मर गई तो मुझे कौन खिलाएगा, डाक्टर ने कहा है कि अब मात्र ईश्वर ही तु...

खुशी क्या है?

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  खुशी क्या है?    तुर्की के प्रसिद्ध कवि नाजिम हिकमत ने अपने नामचीन चित्रकार मित्र आबिदीन से अनुरोध किया वह ’खुशी’ पर एक पेन्टिंग बनायें।   लिहाजा, आबिदीन ने एक चरमराये बिस्तर पर मधुर नींद सोये एक परिवार की पेन्टिंग बनायी। उस बिस्तर का एक पाया भी टूटा हुआ था और वहाँ दो ईंटे लगा रखी गयी थी। उस जर्जर घर की छत भी चू रही थी। बिस्तर पर घर का कुत्ता भी सुख की नींद सोया था। आबिदीन की यह पेन्टिंग अमर हो गयी। इस अमर चित्र को गहराई से देखिये और सोचिए कि खुशी वास्तव में है क्या!!  दरअसल, मुझे तो यह चित्र देखकर लगता है कि खुशी मुसीबतों की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि मुसीबत की स्थिति को भी सहज भाव से स्वीकारने में है। आपके पास जो भी है,उसमें अच्छा देखने की कोशिश करिए, चाहे कैसी भी बुरी स्थिति हो। ऐसी बातों के लिए दुःखी होना छोड़ दीजिए, जो आपके नियंत्रण में नहीं। दिल जब कभी डूबने लगे, तो आबिदीन की यह अमर पेन्टिंग देख लिया करें।  -- सरिता जैन सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका हिसार 🙏🙏🙏 विनम्र निवेदन यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comme...

एहसास

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  एहसास  रामायण कथा का एक अंश, जिससे हमें सीख मिलती है “एहसास“ की... श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता मैया चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे, राह बहुत पथरीली और कंटीली थी कि अचानक श्री राम के चरणों मे कांटा चुभ गया। श्रीराम क्रोधित नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से अनुरोध करने लगे। बोले- “माँ, मेरी एक विनम्र प्रार्थना है आपसे, क्या आप स्वीकार करेंगी?“ धरती बोली- “प्रभु प्रार्थना नहीं, आप आज्ञा दीजिए।“ प्रभु बोले, “माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज मे इस पथ से गुज़रे, तो आप फूलों जैसी नरम हो जाना। कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना। मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पाँव में आघात मत करना।“ श्री राम को यूँ परेशान देखकर धरा दंग रह गई। पूछा- “भगवन, धृष्टता क्षमा हो ! पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार (कोमल) हैं? जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नहीं कर पाँएंगे?...फिर उनको लेकर आपके चित मे ऐसी व्याकुलता क्यों?“ श्री राम बोले- “नहीं... नहीं माते! आप मेरे कहने का अभिप्राय नही समझीं। भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नही, उसक...

कठिनाईयां

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  कठिनाईयां  एक धनी राजा ने सड़क के बीचों बीच एक बहुत बड़ा पत्थर रखवा दिया और चुपचाप नजदीक के एक पेड़ के पीछे जाकर छिप गया। दरअसल वह देखना चाहता था कि कौन व्यक्ति बीच सड़क पर पड़े उस भारी-भरकम पत्थर को हटाने का प्रयास करता है।  कुछ देर इंतजार करने के बाद वहां से राजा के दरबारी गुजरते हैं। लेकिन वे सब उस पत्थर को देखने के बावजूद नजरअंदाज कर देते हैं। इसके बाद वहां से करीब बीस से तीस लोग और गुजरे, लेकिन किसी ने भी पत्थर को सड़क से हटाने का प्रयास नहीं किया।  करीब डेढ़ घंटे बाद वहां से एक ग़रीब किसान गुजरा। किसान के हाथों में सब्जियां और उसके कई औजार थे। किसान रुका और उसने पत्थर को हटाने के लिए पूरा दम लगाया। आखिर वह सड़क से पत्थर हटाने में सफल हो गया। पत्थर हटाने के बाद उसकी नजर नीचे पड़े एक थैले पर गई। इसमें कई सोने के सिक्के और जेवरात थे।  उस थैले में एक ख़त भी था जो राजा ने लिखा था कि ये तुम्हारी ईमानदारी, निष्ठा, मेहनत और अच्छे स्वभाव का इनाम है। जीवन में भी इसी तरह की कई रुकावटें आती हैं। उनसे बचने के बजाय उनका डटकर सामना करना चाहिए। मुसीबतों से डर कर भागो नहीं, उनका डट...

मानव चरित्र

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  !! मानव चरित्र !!  एक बार एक जिज्ञासु व्यक्ति ने एक संत से प्रश्न किया, “महाराज, रंग रूप, बनावट प्रकृति में एक जैसे होते हुए भी कुछ लोग अत्यधिक उन्नति करते हैं। जबकि कुछ लोग पतन के गर्त में डूब जाते हैं। संत ने उत्तर दिया, “तुम कल सुबह मुझे तालाब के किनारे मिलना। तब मैं तुम्हे इस प्रश्न का उत्तर दूंगा। अगले दिन वह व्यक्ति सुबह तालाब के किनारे पहुंचा। उसने देखा कि संत दोनों हाथ में एक-एक कमंडल लिए खड़े हैं। जब उसने ध्यान से देखा तो पाया कि एक कमंडल तो सही है। लेकिन दूसरे की पेंदी में एक छेद है। उसके सामने ही संत ने दोनों कमंडल तालाब के जल में फेंक दिए। सही वाला कमंडल तो तालाब में तैरता रहा। लेकिन छेद वाला कमंडल थोड़ी देर तो तैरा, लेकिन जैसे-जैसे उसके छेद से पानी अंदर आता गया। वह डूबने लगा और अंत में पूरी तरह डूब गया। संत ने जिज्ञासु व्यक्ति से कहा- “दोनों कमंडल रंग-रूप और प्रकृति में एक समान थे। किंतु दूसरे कमंडल में एक छेद था। जिसके कारण वह डूब गया। उसी प्रकार मनुष्य का दुर्गुण रहित चरित्र ही इस संसार सागर में उसे तैराता है। जिसके चरित्र में छेद (दोष) होता है। वह पतन के गर्त म...

स्त्री के अपमान का दंड

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  स्त्री के अपमान का दंड  दुर्योधन ने उस अबला स्त्री को दिखा कर अपनी जंघा ठोकी थी, तो उसकी जंघा तोड़ी गयी। दुःशासन ने छाती ठोकी, तो उसकी छाती फाड़ दी गयी। महारथी कर्ण ने एक असहाय स्त्री के अपमान का समर्थन किया, तो श्रीकृष्ण ने असहाय दशा में ही उसका वध कराया। भीष्म ने यदि प्रतिज्ञा में बंध कर एक स्त्री के अपमान को देखने और सहन करने का पाप किया, तो असँख्य तीरों में बिंध कर अपने पूरे कुल को एक-एक कर मरते हुए भी देखा...।  भारत का कोई बुजुर्ग अपने सामने अपने बच्चों को मरते देखना नहीं चाहता, पर भीष्म अपने सामने चार पीढ़ियों को मरते देखते रहे। जब तक सब देख नहीं लिया, तब तक मर भी न सके। यही उनका दण्ड था। धृतराष्ट्र का दोष था पुत्रमोह, तो सौ पुत्रों के शव को कंधा देने का दण्ड मिला उन्हें। सौ हाथियों के बराबर बल वाला धृतराष्ट्र सिवाय रोने के और कुछ नहीं कर सका। दण्ड केवल कौरव दल को ही नहीं मिला था। दण्ड पांडवों को भी मिला। द्रौपदी ने वरमाला अर्जुन के गले में डाली थी, सो उनकी रक्षा का दायित्व सबसे अधिक अर्जुन पर था। अर्जुन यदि चुपचाप उनका अपमान देखते रहे, तो सबसे कठोर दण्ड भी उन्हीं को...