आपस की फूट, जगत की लूट
आपस की फूट, जगत की लूट
आपसी फूट चाहे आपस में हो, परिवार में हो, समाज में या देश में कही भी हो नुकसानदायक ही होती है। भारतीय समाज की आज भी बहुत बड़ी कमजोरी है कि वे जात-पांत और वर्गों में विभक्त हैं, हर बार हमारी आपसी फूट सामने आई। पुराना इतिहास देखें तो अकसर देश की रियासतों ने एक दूसरे का सहयोग नहीं किया। इस कमजोरी का सबने खूब लाभ उठाया है और करीब 750 वर्षों तक अपना भारत देश गौरी, गजनी, गुलाम, सुलतान, लोधी, मुगल आदि वंशों का गुलाम रहा और आखिरी 150 वर्ष अंग्रेजों तथा पुर्तगालियों के पराधीन रहा।
सन् सोलह सौ बारह की बात है। ईस्ट इंडिया कंपनी का एक अंग्रेज कर्मचारी जेठ की भरी दुपहरी में कलकत्ता के बाजार का चक्कर लगा रहा था। उसने देखा कि बहुत से लोग मिट्टी का एक खास बर्तन खरीद रहे हैं। जिज्ञासावश वह भी दुकान पर पहुंचा। दुकानदार से उसने पूछा, इस बर्तन का क्या नाम है और इसे इतने लोग क्यों खरीद रहे हैं?
बूढ़े दुकानदार ने कहा - साहब! इसे घड़ा कहते हैं। इसमें पानी रखेंगे तो ठंडा रहेगा।
अंग्रेज कर्मचारी एक घड़ा खरीदकर आगे बढ़ा, कुछ फर्लांग दूर एक और मिट्टी के बर्तन की दुकान पर भीड़ लगी थी। इस दुकान पर एक विशेष प्रकार का घड़ानुमा बर्तन मिल रहा था, जिसकी लंबी गर्दन और छोटा मुंह था। चकित अंग्रेज ने दुकानदार से पूछा - भाई! इस बर्तन को क्या कहते हैं और इसका क्या उपयोग है?
व्यस्त दुकानदार ने कहा - साहब! इसे सुराही कहते हैं। ये जो आपके हाथ में घड़ा है न! उस की अपेक्षा सुराही में पानी अधिक ठंडा रहता है। आपने मेरे पिताजी की दुकान से घड़ा ले लिया है जबकि उसी कीमत पर मैं आपको ये सुराही दे देता। मेरे पिताजी की आदत बहुत खराब है। वे ग्राहक को पहले ही फांस लेते हैं, क्योंकि मैं उनसे बेहतर घड़ा उनसे कम कीमत पर बेचता हूं।
अंग्रेज एक सुराही खरीदकर मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ चला। कुछ दूर चला ही था कि एक और दुकान पर भीड़ दिखी, यहां भी मिट्टी का बर्तन बिक रहा था।यहां वाले बर्तन बड़े सुंदर थे, अंग्रेज ने एक बर्तन उठाया, जो आकार में घड़ा और सुराही से थोड़ा छोटा था, लेकिन उसके गर्दन के पास पतली सी टोंटी लगी थी। दुकानदार नौजवान था। अंग्रेज ने उस बर्तन की विशेषता पूछी, तो नौजवान दुकानदार बताने लगा - साहब! ये तुंबा है। आपने मेरे पिताजी और भैया से जो घड़ा, सुराही खरीदा है, उससे पानी ढालने में अधिक बर्बाद होता है, जबकि मेरे टोंटी लगे तुंबा से पानी बर्बाद नहीं होता। मेरे पिता और भाई जरा ईर्ष्यालु हैं। वे ग्राहक को पहले ही फांस लेते हैं और मेरे बर्तन की विशेषता को नहीं बताते।
अंग्रेज कर्मचारी ने एक तुंबा खरीद लिया और फिर मुस्कुराने लगा। इस बार की मुस्कुराहट थोड़ी कुटिलता लिए थी।
सुबह तीनों बर्तन लेकर वह अपने कैप्टन के ऑफिस में पहुंचा।
कैप्टन ने पूछा - यह क्या ले आए हो?
कर्मचारी कहने लगा - सर! ये पानी को ठंडा रखनेवाले बर्तन हैं, लेकिन इससे भी बड़ी बात जो मैं आपको बताने वाला हूं, उससे हमारी ब्रिटिश गवर्नमेंट को जबरदस्त फायदा हो सकता है।
कैप्टन की उत्सुकता बढ़ने लगी। उसने अधीरता से पूछा - ऐसा क्या खास है?
कर्मचारी बोला, “सर! भारत में अकूत संपत्ति तो है ही, भारतीय उससे कहीं अधिक हुनरमंद हैं और फिर सारा वृतांत कह सुनाया, लेकिन सर! जो सबसे बड़ी बात मैं बताना चाह रहा हूं, वह है भारतीयों में अत्यधिक अहं और ईर्ष्या का होना। ये तीन प्रकार के बर्तन एक ही परिवार के सदस्यों ने बनाया है, लेकिन तीनों को अपने हुनर का अत्यधिक घमंड है और एक दूसरे से उतनी ही ईर्ष्या भी। आप एक की तारीफ़ करके दूसरे को तोड़ सकते हैं।
जरा सोचिए, जिस देश की जनता में इतनी फूट है।उसके राजे-रजवाड़े, नवाब-सुल्तान और पड़ोसियों में कितनी स्पर्धा और फूट होगी! किसी एक रियासत को अपने में मिलाकर दूसरे पर आसानी से हम विजय पा सकते हैं!
कैप्टन की आंखों में चमक आ गई। उसने लंदन के लिए चिट्ठी लिखना शुरू कर दिया। उसके बाद की कहानी तो आप सब को पता ही है।
हम अपने विनाश का कारण स्वयं हैं, न कि कोई अन्य बाहरी ताकत।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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