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Showing posts from August, 2020

पुण्य और पुरुषार्थ

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 पुण्य और पुरुषार्थ यदि हमें किसी काम में मनवांछित सफलता न मिले तो अपनी किस्मत को दोष न देकर अपने परिश्रम को बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिए। हमेशा यही सोचना चाहिए कि मेरा पुण्य तो बहुत था, पर मैंने ही ठीक ढंग से पुरुषार्थ नहीं किया होगा। हो सकता है कि हम थोड़ी सी मेहनत और करते तो हमें उसका फल अवश्य मिल जाता। पुरुषार्थ किए बिना पुण्य की कमी कभी मत मानना। एक राजा था जो सुव्यवस्थित ढंग से अपने राज्य का संचालन कर रहा था। एक बार दैवीय संकट के कारण उसके राजकोष में धन की कमी हो गई। यहाँ तक कि उसमें अपने कर्मचारियों को वेतन देने की भी सामर्थ्य नहीं रही। वह चिन्तित रहने लगा। वहाँ का नगरसेठ उसका परम मित्र था और नगरसेठ के पास पर्याप्त धन था। उसने राजा से कहा कि मित्र! तुम चिन्ता न करो। तुम्हारे कर्मचारियों को मैं वेतन दूँगा। उसने 6 मास तक राजा की दिल खोल कर सहायता की। राजा का पुण्य बढ़ने लगा और धीरे-धीरे राजकोष पुनः अपनी समृद्धि को प्राप्त होने लगा। जैसे साइकिल का पहिया ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर आता रहता है, वैसे ही कालान्तर में नगरसेठ का पुण्य क्षीण होने लगा। एक समय ऐसा आया कि उ...

धर्म का आधार - श्रद्धा और विश्वास

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 धर्म का आधार - श्रद्धा और विश्वास एक व्यक्ति बहुत शंकालु प्रवृत्ति का था। किसी की बात पर विश्वास करना तो उसके लिए ऐसा था जैसा कि अमावस्या की रात में चाँद का निकलना। इसी कारण कोई उसे पसंद नहीं करता था।  एक बार राजा ने अपने हरकारे के हाथ उसके लिए एक फरमान भेजा। जब हरकारे ने उसे राजा का फरमान दिखाया तो उसने पूछा -  ‘तुम कौन हो? मैं तुम्हें नहीं जानता।’ उसने कहा - ‘मैं राजा का हरकारा हूँ।’ ‘मैं कैसे मान लूँ? मैंने तुम्हें पहले तो कभी देखा ही नहीं।’ ‘साहब, यह देखो! मैंने राज-दरबार की पोशाक भी पहन रखी है।’ ‘चलो! मान लिया कि तुम राजा के यहाँ नौकर हो, पर इस बात का क्या प्रमाण है कि यह फरमान राजा ने ही भेजा है?’  ‘जी, आप स्वयं देख लीजिए। इस फरमान पर राजा की मुद्रिका की मोहर भी लगी है।’ ‘पर इस बात की क्या गारंटी है कि यह मोहर असली है या नकली? क्या मालूम तुम मुझे धोखा देने के लिए नकली मोहर लगा लाए हो?’ ‘साहब, आप स्वयं चल कर राजा जी से पूछ सकते हैं।’ ‘अच्छा! यह तो बताओ कि क्या तुम्हें यह फरमान स्वयं राजा जी ने दिया है?’ ‘जी नहीं, मेरा केवल हरकारे का काम करना है। उन...

नाम स्मरण का महत्त्व

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 नाम स्मरण का महत्त्व कहा जाता है कि   ‘दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय’ ‘जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय।’   दुःख में तो भगवान का नाम स्वतः ही ज़ुबान पर आ जाता है - ‘हे भगवान! मुझे इस दुःख से बाहर निकलने का रास्ता दिखाओ। अब तो तुम्हारा ही सहारा है।’ पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने खाते में पुण्य का बैलैंस न होते हुए भी पाप से तुरन्त मुक्ति पाना चाहते हैं। ऐसे में तो भगवान भी उनकी मदद नहीं कर सकता। वे सोचते हैं कि इतना पूजा-पाठ करने के बाद भी दुःखों से पीछा नहीं छूट रहा तो भगवान का नाम लेने से क्या लाभ? जैसे कभी हम बिना मन के जल्दी-जल्दी खाना खा लेते हैं तो पेट भी भरता है और कुछ-न- कुछ ताकत भी साथ में मिलती है, उसी प्रकार दुःख के समय मन न होते हुए भी नाम-स्मरण करने से सुख मिले या न मिले, दुःख का समय तो कटता ही है। अतः बिना प्रतिफल की चिन्ता किए सतत नाम-स्मरण करते रहना चाहिए। समय आने पर उसका फल अवश्य मिलेगा।   एक व्यक्ति ने देखा कि कोई आदमी एक सुन्दर कद-काठी वाले घोड़े पर सवार हो कर चला जा रहा था। उसके मन में आया कि मैं किसी प्रका...

काल का प्रभाव

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 काल का प्रभाव क्या हमारे मन-मस्तिष्क पर अच्छे-बुरे काल का अच्छा-बुरा प्रभाव पड़ता है? हाँ, तन के साथ-साथ हमारा मन-मस्तिष्क भी काल से प्रभावित होता है। अच्छे काल में हम स्वयं को स्वस्थ महसूस करते हैं तो हमारे मन में भी सबके लिए कल्याण की भावना पैदा होती है और बुरे काल में जैसे महामारी इत्यादि के काल में शरीर तो बीमार होता ही है, साथ-साथ लूट-खसोट की वारदातें भी बढ़ जाती हैं। पंचतन्त्र में इसे एक कहानी के माध्यम से समझाया गया है, जो आज के सन्दर्भ में भी उतना ही प्रासंगिक है। एक ब्राह्मण पाठ-पूजा से मिली दान-दक्षिणा से अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। कुछ समय से लोगों में पाठ-पूजा के प्रति रुचि कम हो गई थी जिसके कारण उसको पर्याप्त दान-दक्षिणा नहीं मिलती थी। एक समय ऐसा आया कि 4 दिन से फाका करने की नौबत आ गई। यों तो पाठ-पूजा के प्रति रुचि कम होना स्वयं ही इस बात का संकेत है कि अधर्म का साम्राज्य बढ़ने लगा है। यदि अभी सावधान न हुए तो धर्म का विलोप हो सकता है। ब्राह्मण के मन में भी बुरे-बुरे ख्याल आने लगे और एक दिन ऐसा आया कि वह अपनी जीवन लीला ही समाप्त करने का निश्चय कर बै...

संवाद या विवाद

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 संवाद या विवाद संवाद विवाद में कैसे बदलता है? दो पक्के मित्र थे। वे अपना अधिकांश समय एक दूसरे के साथ बिताते थे। उनमें से एक मित्र दार्शनिक था और दूसरे मित्र को उसके साथ बात करने से बहुत ज्ञान मिलता था। उसका मन चाहता था कि वे एक पल के लिए भी एक-दूसरे से अलग न रहें। उन्हें एक--दूसरे के साथ रहना बहुत अच्छा लगता था। एक दिन दूसरे मित्र ने अपने दार्शनिक मित्र से पूछा कि पता नहीं, लोग एक दूसरे के साथ मित्रवत् व्यवहार क्यों नहीं करते? जब देखो, लड़ते ही रहते हैं। दार्शनिक मित्र ने कहा - जब व्यक्ति यह सोचने लगता है कि मैं ही सब कुछ, बाकी सब तुच्छ; तभी वे आपस में संवाद न करके विवाद करते हैं, क्योंकि वे स्वयं को केवल सर्वश्रेष्ठ ही नहीं समझते बल्कि सिद्ध भी करने की कोशिश करते हैं और विवाद करने पर उतारू हो जाते हैं, जबकि समस्याएं विवाद से नहीं बल्कि संवाद से सुलझती हैं। विवाद से तो और भी उलझ जाती हैं। पहले मित्र ने पूछा कि फिर संवाद विवाद में कैसे बदल जाता है? मुझे अच्छी तरह समझाओ न! हाँ, वह तो मैं समय आने पर बता दूँगा, पर अभी तो मुझे दक्षिण में जाना है हिमालय की यात्रा पर।’ ‘अर...

आत्म-निर्भर

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 आत्म-निर्भर     क्या आप अपने बच्चों को आत्म-निर्भर बनाना चाहते हैं? हाँ! क्या आप अपने बच्चों को मज़बूत बनाना चाहते हैं?  हाँ, भई हाँ!! बिल्कुल ठीक।  हर माता-पिता की यही इच्छा होती है कि उनके बच्चों में स्वयं अपने निर्णय लेने की क्षमता विकसित हो पर इसके लिए हमें उनकी जड़ों को मज़बूत बनाना होगा। एक युवक आस्ट्रेलिया से उच्च शिक्षा प्राप्त करके आया।  वह बहुत होनहार व हर काम में निपुण था। एक दिन वह अपने घर के बगीचे में खड़ा होकर माली को काम करते हुए देख रहा था। उसने देखा कि वहाँ कुछ अनार के वृक्ष थे। एक वृक्ष पर कुछ अनार भी लगे हुए हैं और कुछ अभी पकने की तैयारी में हैं। फलों के बोझ से उन का झुकाव एक तरफ हो रहा था। युवक ने माली को हिदायत देते हुए कहा कि इन झुके हुए वृक्षों को support की आवश्यकता है। ये इतना बोझ सहन नहीं कर पा रहे हैं। माली पहले तो हंसा और फिर बोला कि ठीक है! जैसा आप कहेंगे, वैसा ही मैं कर दूँगा। युवक ने पूछा कि तुम हंसे क्यों? "नहीं, कुछ नहीं।" "कुछ तो है। मुझे बताओ।" माली ने कहा कि मैं इन्हें support तो दे दूंगा पर बिना सहारे के तो एक...