पुण्य और पुरुषार्थ
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 पुण्य और पुरुषार्थ यदि हमें किसी काम में मनवांछित सफलता न मिले तो अपनी किस्मत को दोष न देकर अपने परिश्रम को बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिए। हमेशा यही सोचना चाहिए कि मेरा पुण्य तो बहुत था, पर मैंने ही ठीक ढंग से पुरुषार्थ नहीं किया होगा। हो सकता है कि हम थोड़ी सी मेहनत और करते तो हमें उसका फल अवश्य मिल जाता। पुरुषार्थ किए बिना पुण्य की कमी कभी मत मानना। एक राजा था जो सुव्यवस्थित ढंग से अपने राज्य का संचालन कर रहा था। एक बार दैवीय संकट के कारण उसके राजकोष में धन की कमी हो गई। यहाँ तक कि उसमें अपने कर्मचारियों को वेतन देने की भी सामर्थ्य नहीं रही। वह चिन्तित रहने लगा। वहाँ का नगरसेठ उसका परम मित्र था और नगरसेठ के पास पर्याप्त धन था। उसने राजा से कहा कि मित्र! तुम चिन्ता न करो। तुम्हारे कर्मचारियों को मैं वेतन दूँगा। उसने 6 मास तक राजा की दिल खोल कर सहायता की। राजा का पुण्य बढ़ने लगा और धीरे-धीरे राजकोष पुनः अपनी समृद्धि को प्राप्त होने लगा। जैसे साइकिल का पहिया ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर आता रहता है, वैसे ही कालान्तर में नगरसेठ का पुण्य क्षीण होने लगा। एक समय ऐसा आया कि उ...