काल का प्रभाव

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काल का प्रभाव

क्या हमारे मन-मस्तिष्क पर अच्छे-बुरे काल का अच्छा-बुरा प्रभाव पड़ता है?

हाँ, तन के साथ-साथ हमारा मन-मस्तिष्क भी काल से प्रभावित होता है। अच्छे काल में हम स्वयं को स्वस्थ महसूस करते हैं तो हमारे मन में भी सबके लिए कल्याण की भावना पैदा होती है और बुरे काल में जैसे महामारी इत्यादि के काल में शरीर तो बीमार होता ही है, साथ-साथ लूट-खसोट की वारदातें भी बढ़ जाती हैं।

पंचतन्त्र में इसे एक कहानी के माध्यम से समझाया गया है, जो आज के सन्दर्भ में भी उतना ही प्रासंगिक है।

एक ब्राह्मण पाठ-पूजा से मिली दान-दक्षिणा से अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। कुछ समय से लोगों में पाठ-पूजा के प्रति रुचि कम हो गई थी जिसके कारण उसको पर्याप्त दान-दक्षिणा नहीं मिलती थी। एक समय ऐसा आया कि 4 दिन से फाका करने की नौबत आ गई।

यों तो पाठ-पूजा के प्रति रुचि कम होना स्वयं ही इस बात का संकेत है कि अधर्म का साम्राज्य बढ़ने लगा है। यदि अभी सावधान न हुए तो धर्म का विलोप हो सकता है।

ब्राह्मण के मन में भी बुरे-बुरे ख्याल आने लगे और एक दिन ऐसा आया कि वह अपनी जीवन लीला ही समाप्त करने का निश्चय कर बैठा। वह जंगल की ओर चलता जा रहा था। रास्ते में उसे एक साँप मिला। साँप ने उसके मन की बात जान ली और वह ब्राह्मण से बोला कि आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं है। मरने के बाद भी तो कहीं-न-कहीं जन्म लेना ही पड़ेगा, तब ये ही समस्याएं हमारे सामने आएंगी।

इस सन्दर्भ में एक घटना याद आती है। एक बार एक सी.ए. का विद्यार्थी 3 बार परीक्षा में असफल होने के कारण निराश होकर आत्महत्या का विचार बना बैठा। उसने सोचा कि मरने से पहले एक बार संत के दर्शन करने चाहिएं। जब वह संत के सामने पहुँचा तो वे युवक के चेहरे पर झलकती उदासी को पहचान गए। संत के बार-बार पूछने पर युवक ने अपने मन की पीड़ा बयान कर दी। संत ने उससे पूछा कि तुमने सी.ए. तक पहुँचने में कितने वर्ष तक पढ़ाई की है? युवक ने बताया कि 15 वर्ष लग गए मुझे यहाँ तक पहुँचने में लेकिन आख़िरी सीढ़ी पर अटक गया हूँ। संत ने कहा कि मैं तुमसे अपना विचार बदलने के लिए नहीं कहूँगा पर इतना अवश्य कहूँगा कि जब तुम मरकर किसी के यहाँ जन्म लोगे तो अ,आ..... से फिर से पढ़ाई शुरू करनी पड़ेगी। तब तुम्हारी ये 15 वर्ष की भी पढ़ाई भी व्यर्थ हो जाएगी, अभी तो केवल एक वर्ष की कड़ी मेहनत से तुम सी.ए बन सकते हो। युवक के मन में नई स्फूर्ति का संचार हुआ और अगले वर्ष वह अपने लक्ष्य में सफल हो गया।  

इसी प्रकार साँप ने ब्राह्मण के मन में नई स्फूर्ति का संचार किया और कहा कि तुम राजा के पास जाओ और कहो कि महाराज! मेरे द्वारा की गई भविष्यवाणी कभी निष्फल नहीं होती। मैं देख रहा हूँ कि इस वर्ष आपके राज्य में अकाल पड़ने वाला है। उसके लिए कोई प्रबन्ध करना हो तो कर लीजिए। शर्त यह है कि राजा द्वारा दिए गए ईनाम में से आधी मुद्राएं मुझे देनी होंगी।

ब्राह्मण राजा के पास गया और साँप के कहे मुताबिक अपनी भविष्यवाणी राजा को सुनाई। राजा ने उसे सोने की 100 मोहरें दक्षिणा के रूप में दी। राजा ने अकाल से निपटने के प्रबन्ध और तेज़ कर दिए। 

वैसा ही हुआ जैसा ब्राह्मण ने कहा था पर प्रबन्ध अच्छे होने के कारण राजा ने अकाल की समस्या पर विजय प्राप्त कर ली।

उधर ब्राह्मण के मन में लोभ आ गया और उसने सोचा कि 50 मोहरें साँप को दे दी तो उसके पास क्या बचेगा? साँप ने कौन-सा कुनबा पालना है? खाने तो कीड़े-मकोड़े ही हैं न! मैं 100 मोहरों से अपने परिवार को भोजन तो खिला लूँगा!

ऐसा सोच कर ब्राह्मण ने जंगल वाला रास्ता छोड़ दिया और शहर के रास्ते से अपने घर आ गया। चोरों को भी भनक लग चुकी थी कि ब्राह्मण को राजा ने सोने की 100 मोहरें दक्षिणा के रूप में दी हैं।

बस! रात को ही उसकी 100 मोहरें चुरा ली। ब्राह्मण को बहुत दुःख हुआ लेकिन अब क्या हो सकता था? वह फिर दान-दक्षिणा से जैसे-तैसे जीवन चलाने लगा।

अगले वर्ष फिर भूखे मरने की नौबत आ गई तो उसकी पत्नी ने कहा कि जाओ, साँप से कोई उपाय पूछ कर आओ।

ब्राह्मण साँप के पास गया और बोला कि सर्पराज! मैं आपकी मोहरें देने आ ही रहा था कि चोरों ने मेरी सारी मोहरें चुरा ली। अब मुझे धन कमाने का कोई उपाय बताओ।

साँप ने कहा कि तुम राजा के पास जाओ और कहो कि महाराज! इस वर्ष तो आपके राज्य में भीषण अकाल पड़ने वाला है। उसके लिए कोई प्रबन्ध करना हो तो कर लीजिए। शर्त यह है कि राजा द्वारा दिए गए ईनाम में से आधी मुद्राएं मुझे देनी होंगी।

ब्राह्मण राजा के पास गया और साँप के कहे मुताबिक अपनी भविष्यवाणी राजा को सुनाई। राजा ने उसे सोने की 500 मोहरें दक्षिणा के रूप में दी। उधर ब्राह्मण के मन में फिर लोभ आ गया और उसने सोचा कि क्यों न साँप को जान से मार दूँ? न रहेगा साँप और न उसे मोहरें देनी पड़ेंगी।

इधर तो वह पत्थर उठाकर साँप को मारने चला और उधर उसके घर में घुसकर चोरों ने मोहरों पर अपना हाथ साफ कर दिया। जैसे ही उस ब्राह्मण ने साँप को मारने के लिए पत्थर फेंका, वैसे ही साँप अपने बिल में घुस गया। ब्राह्मण दोनों तरफ से खाली का खाली!

तीसरे वर्ष राजा का बुलावा आया कि बताओ! इस वर्ष क्या हाल रहेगा? ब्राह्मण को फिर साँप  की याद आई, लेकिन वह क्या मुँह लेकर जाता? ब्राह्मण की पत्नी ने उस पर दबाव डाला कि साँप के पास तो जाना ही पड़ेगा, वरना राजा तुम्हें जेल में डाल देगा।

ब्राह्मण के लिए ‘इधर पड़े तो कुआँ और उधर पड़े तो खाई’ वाली स्थिति हो गई। डरते-डरते साँप के पास गया और बोला कि सर्पराज! अब की बार तो मैं निश्चित रूप से आपकी मोहरें देने आ रहा था कि चोरों ने फिर मेरी सारी मोहरें चुरा ली। अब राजा की आज्ञा से एक बार उनके राज्य के लिए भविष्यवाणी करनी होगी। कृपया मेरी मदद कीजिए।

साँप ने कहा कि तुम राजा के पास जाओ और कहो कि महाराज! इस वर्ष तो आपके राज्य में भरपूर वर्षा होगी और राज्य धन-धान्य से समृद्ध हो जाएगा। पर मेरी शर्त मत भूलना कि राजा द्वारा दिए गए ईनाम में से आधी मुद्राएं मुझे देनी होंगी।

ब्राह्मण राजा के पास गया और साँप के कहे मुताबिक अपनी भविष्यवाणी राजा को सुनाई। राजा ने उसे सोने की 1000 मोहरें दक्षिणा के रूप में दी। ब्राह्मण उन मोहरों को लेकर सीधा साँप के पास गया और बोला कि सर्पराज! इनमें से 800 मोहरें आपकी और 200 मेरी। मैं अपना पिछला कर्ज़ भी उतारना चाहता हूँ । आपने मेरी हर विपत्ति में सहायता की और मैंने आपको हर बार धोखा दिया।

साँप ने कहा कि हे ब्राह्मण! हम प्रकृति के निकट रहते हैं और उसे अच्छी तरह समझते हैं। हमें मानव की प्रकृति का भी ज्ञान है। तुम्हारे लोभ-लालच के पीछे तुम्हारा नहीं, प्रकृति का दोष था। साधारण अकाल के समय तुम्हारे मन में मोहरें न देने का भाव आया, भीषण अकाल के समय तुम्हारे मन में मोहरें न देने के साथ-साथ मुझे मार देने का भाव आया और अब सुभिक्ष के काल में तुम्हारे मन में श्रद्धा व कृतज्ञता का भाव आया है।

यह तो ‘काल का प्रभाव’ था। मुझे मोहरों की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम इनका लाभ उठाओ और मेरी तरह दीन-दुखियों की सेवा में अपना मन लगाओ।

यह है काल का हमारे जीवन पर पड़ने वाला प्रभाव!

इसके अच्छे प्रभाव को अपने आचरण में लाना है और बुरे प्रभाव से स्वयं को बचाना है।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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