संवाद या विवाद

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संवाद या विवाद


संवाद विवाद में कैसे बदलता है?

दो पक्के मित्र थे। वे अपना अधिकांश समय एक दूसरे के साथ बिताते थे। उनमें से एक मित्र दार्शनिक था और दूसरे मित्र को उसके साथ बात करने से बहुत ज्ञान मिलता था। उसका मन चाहता था कि वे एक पल के लिए भी एक-दूसरे से अलग न रहें। उन्हें एक--दूसरे के साथ रहना बहुत अच्छा लगता था।

एक दिन दूसरे मित्र ने अपने दार्शनिक मित्र से पूछा कि पता नहीं, लोग एक दूसरे के साथ मित्रवत् व्यवहार क्यों नहीं करते? जब देखो, लड़ते ही रहते हैं।

दार्शनिक मित्र ने कहा - जब व्यक्ति यह सोचने लगता है कि मैं ही सब कुछ, बाकी सब तुच्छ; तभी वे आपस में संवाद न करके विवाद करते हैं, क्योंकि वे स्वयं को केवल सर्वश्रेष्ठ ही नहीं समझते बल्कि सिद्ध भी करने की कोशिश करते हैं और विवाद करने पर उतारू हो जाते हैं, जबकि समस्याएं विवाद से नहीं बल्कि संवाद से सुलझती हैं। विवाद से तो और भी उलझ जाती हैं।

पहले मित्र ने पूछा कि फिर संवाद विवाद में कैसे बदल जाता है? मुझे अच्छी तरह समझाओ न!

हाँ, वह तो मैं समय आने पर बता दूँगा, पर अभी तो मुझे दक्षिण में जाना है हिमालय की यात्रा पर।’

‘अरे! तुम यह क्या कह रहे हो? हिमालय की यात्रा पर जाना है तो उत्तर में जाओ। हिमालय तो भारत के उत्तर में है, दक्षिण में नहीं।’

‘नहीं मित्र! मैंने तो दक्षिण में ही जाने का निर्णय किया है, हिमालय की यात्रा पर।’

‘भाई! मैं तुम्हें सही बता रहा हूँ। हिमालय दक्षिण में नहीं, उत्तर में है। इतना ज्ञान तो मुझे भी है, भारत के भूगोल का!’

‘नहीं! मैंने कह दिया न! मैं तो दक्षिण में ही जाऊँगा, हिमालय की यात्रा पर।’

बस! फिर क्या था?

देखते ही देखते उनका संवाद, विवाद में बदल गया।

पहला मित्र दार्शनिक मित्र को समझा-समझा कर थक गया पर वह मानने को तैयार ही नहीं था।

वह कहने लगा कि तुम्हें पता है न ! मैं दार्शनिक हूँ। तुमसे अधिक योग्यता रखता हूँ। तुम्हारे अंदर इतनी योग्यता नहीं है कि तुम मेरी बात को समझ सको।

अब तो पहले मित्र की सहनशक्ति ने ज़वाब दे दिया और वह बोला कि नहीं मानना है तो मत मान, पर आज से तेरी-मेरी दोस्ती खत्म। मैं तुमसे बात ही नहीं करना चाहता। मैं कसम खाता हूँ कि आज के बाद मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखूँगा।

तब दार्शनिक मित्र ने कहा - अब तो तुम्हें पता चल गया होगा कि संवाद कब विवाद में बदल जाता है। जब एक व्यक्ति अपनी बात पर ही अड़ा रहता है और दूसरे के दृष्टिकोण से नहीं देखता तो संवाद, विवाद में बदल जाता है और विवाद की परिणति ‘संवादहीनता’ में बदल जाती है। फिर वह उससे बोलना ही बंद कर देता है। यह किसी समस्या के समाधान का मार्ग नहीं है।

एक व्यक्ति अपने मित्र-दंपति का विवाद खत्म कराने के लिए संत के पास लाया।

संत ने उनसे पूछा कि कहो, क्या विवाद है?

वे बोले कि नहीं महाराज! कोई विवाद नहीं है। हम तो पिछले 6 माह से एक दूसरे से बोले ही नहीं हैं।

इसे कहते हैं - संवादहीनता।

एक बार जब पति-पत्नी खाना खाने मेज़ पर बैठे तो पत्नी ने कहा कि सुनो जी! मैंने आज रसगुल्ले बनाए हैं। हम दोनों खाना खाने के बाद खाएंगे, खा कर बताना कैसे बने हैं?

वाह! आज तो मज़े ही आ गए। दिखाओ तो ज़रा।

पति ने देखा - देखने में तो बहुत अच्छे लग रहे हैं। गिन कर देखा तो 13 थे। पत्नी ने भी देखा और बोली कि देखो जी! मैं सुबह से इन्हें बनाने में लगी हुई हूँ। 7 रसगुल्ले मैं खाऊँगी और 6 रसगुल्ले आप के। 

वाह जी! कमा कर मैं लाऊँ, सारा दिन मैं थकूँ और अच्छी तरह खाऊँ भी न!

बस! हो गई तू-तू मैं-मैं शुरू। 

बोलते ही गए। बोलते ही गए। चुप होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। थक भी गए और कोई समाधान भी नहीं निकला।

तब पति ने कहा कि चलो! ऐसा करते हैं कि दोनों मौन-व्रत धारण करते हैं। जो पहले बोलेगा वह 6 रसगुल्ले खाएगा और दूसरा जीत जाएगा, वह 7 रसगुल्ले खाएगा। 

ठीक है। हो गया मौन-व्रत शुरू। चुपचाप खाना खा लिया। शाम हो गई, कोई नहीं बोला। 

बोले तो-6 मिलेंगे, खाने कितने? -7.

रात हो गई। बिना बोले ही सो गए, न बोले और न ही रसगुल्ले खाए। सुबह हो गई। न बोले। 

क्यों? बोले तो-6 मिलेंगे, खाने कितने? -7

किसी ने घंटी बजाई। दरवाजा खोले कौन? 

दरवाजा खोले तो बोले और बोले तो-6 मिलेंगे, खाने कितने?-7

सांस रोक कर लेट गए, जैसे घर में कोई हो ही नहीं। पर लोगों ने सोचा कि ये उठ क्यों नहीं रहे? कोई अनहोनी तो नहीं हो गई?

लगे दरवाजा तोड़ने। अन्दर जाकर देखा तो दोनों बिस्तर पर लेटे हुए थे, सांस रुकी हुई थी। हिलाया डुलाया पर न कोई बोल रहा था, न शरीर में कोई हरकत थी। 

लो भई, हो गया इनका तो राम नाम सत्य। 

कफन-काठी का इंतजाम किया, अर्थी सजाई और उन्हें ले चले श्मशान की ओर। दोनों की आँखें खुली हुई थीं। वे एक-दूसरे को देख रहे थे पर बोले नहीं। 

क्यों? बोले तो-6 मिलेंगे, खाने कितने?-7

चिता पर लिटा दिया गया। आग लगाने लगे तो पति ने सोचा कि यह तो मुझे भी मरवाएगी और खुद भी मरेगी। वह उठ बैठा और बोलने लगा कि अच्छा! तू 7 खा लेना और मैं 6 खा लूंगा। संयोग से वहां 13 आदमी मौजूद थे।

यह क्या? लगता है कि अकाल मौत मरने के कारण ये दोनों भूत-चुडैल बन गए हैं और हमें ही खाने की बात कर रहे हैं। भागो.............................।

तो यह थी संवादहीनता की पराकाष्ठा जिसने उन दोनों को मौत के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया।

आधे विवाद तो इसीलिए सुलझ नहीं पाते क्योंकि इनमें संवादहीनता की ठंडी बर्फ की परत जम जाती है। यदि संतुलित संवाद होता रहे तो विवाद उत्पन्न ही न हो।

अतः एक दूसरे के दृष्टिकोण को समझना अति आवश्यक है, फिर संवाद विवाद में नहीं बदलता।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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