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Showing posts from December, 2021

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 25)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 25 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) जेल का खाना भी गया हम दोनों उनके पीछे-पीछे प्लेटफार्म तक आई। शास्त्री जी खिड़की से सिर निकाले इधर-उधर देख रहे थे। उन के डिब्बे के पास पहुँचते-पहुँचते गाड़ी चल पड़ी। वे झट से कूद कर नीचे आ गए। पुलिस वाले बड़बड़ाने लगे - ‘यह क्या कर रहे हैं, बाबूजी! हम लोगों की रोज़ी चली जाएगी, आप का क्या बिगड़ेगा ? यह धोखे का काम है। आप लोग.........’ लेकिन शास्त्री जी ने जैसे-तैसे हम लोगों को डिब्बे में चढ़ा लिया। टण्डन जी और उनके एक साथी भी चढ़ आए। टण्डन जी जब शास्त्री जी से बातें करने लगे, तब हमसे बोले - ‘तुम बाद में बात करना, बहू। हम कुछ ज़रूरी बातें करके अगले स्टेशन पर उतर जाएंगे।’ फाफामाऊ (फैजाबाद लाइन पर एक स्टेशन) पर टण्डन जी ने दो टिकट व एक पत्र लाकर दिया। जिस स्टेशन पर जिनको पत्र देना था, उन के सम्बन्ध में उन्होंने शास्त्री जी से बता दिया और यह भी कहा कि हम लोगों के खाने-पीने की और लौटने की वे समुचित व्यवस्था ...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 24)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 24 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) सिपाही द्वारा चकमा शास्त्री जी द्वारा लिखे दिन पर हम छोटी बीबी के साथ मलाका जेल पहुंची। जेल के फाटक पर एक दाढ़ी वाला सिपाही तैनात था। उसे हम देखते ही पहचान गई। पहले दिन जब कुर्की करने पुलिस वाले आए थे, तो वह भी उनके संग था। छोटी बीबी ने उससे शास्त्री जी के बारे में पूछा। पहले तो उसने बीबी की बातों पर ध्यान नहीं दिया। बाद में बोला - ‘अभी इन्तज़ार कीजिए। आने वाले हैं।’ हम दोनों फाटक से कुछ हट कर खड़ी हो गई। दाढ़ी वाला सिपाही बार-बार हमें घूरता और मुस्कुराता जाता। फिर बगल में खड़े हुए सिपाही से हमें सुनाता हुआ बोला - ‘जानते हो, यह कौन है ? यह है श्रीमती चन्द्रिका प्रसाद उर्फ श्रीमती लाल बहादुर। क्या समझे ? कांग्रेसियों की औरतें भी बड़ी चालाक हुआ करती हैं। उस दिन बड़ा चकमा दिया था।’ खड़े-खड़े कुछ समय और बीता। कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इतने में एक सज्जन हम लोगों के पास आए और धीरे से बोले - ‘आप लोग लाल बह...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 23)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 23 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) जेल में आमों की भेंट मलाका जेल में शास्त्री जी का कार्ड आया कि वे फैजाबाद जेल में भेजे जा रहे हैं। कार्ड में जाने का दिन और तारीख़ भी लिखी हुई थी। इसी में उन्होंने मटर की पूड़ियों के लिए भी लिखा था। मटर भरी हुई पूड़ियाँ शास्त्री जी को बहुत पसंद थी। बदली के दिन जेल अधिकारियों की ओर से घरवालों के लिए मिलवाई की छूट होती ही थी। सामान वगैरह देने और घर का भोजन खिलाने की भी छूट हुआ करती थी। फैजाबाद जाने के समाचार से जो दुःख हुआ, वहीं उसी समय मलाका जेल जाने और वहाँ से स्टेशन तक आने के लिए इक्के-भाड़े का प्रबंध कहाँ से हो पाएगा, यह चिन्ता भी हो रही थी। पूड़ियों के लिए अलग मन कचोट रहा था। न अम्माजी के पास पैसा था, न हमारे पास। और कोई चारा न देख कर गौतम जी की पत्नी से कहा। उन बेचारी के पास भी रुपए नहीं थे। जो 2 रुपए थे, वे उन्होंने दे दिए थे। किराए-भाड़े का इन्तजाम तो हुआ, लेकिन पूड़ियों का फिर भी रह गया। क्रमशः...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 22)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 22 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) घर पर कोई नहीं किसी सत्याग्रह के आरम्भ होने के पहले या अन्य सूचनाओं के आधार पर अंग्रेज़ों द्वारा कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बड़ी चतुराई के साथ गिरफ्तार किए गए और उन का मुकदमा कचहरी में चलने लगा। शास्त्री जी तारीख़ पर जाया करते थे। एक तारीख़ पर उन्हें भी वारंट दिखाया गया और गिरफ्तार कर लिया गया। इनका भी मुकद्दमा चलने लगा। तारीख़ के दिनों पर सैंकड़ों लोग कचहरी में जाते। हम लोग भी जाती। बातचीत तो हो नहीं सकती थी लेकिन जेल से कचहरी आते समय और कचहरी से जेल जाते समय देखने को मिल जाते थे। फैसले वाले दिन शास्त्री जी के बड़े बहनोई और उनकी बुआ जी आई थी। मिलाई की दरख़्वास्त पहले से दे दी गई थी और वह मंजूर भी हो गई थी। परन्तु मिलने कौन-कौन जाए, यही समस्या थी। तीन जनों से अधिक के मिलने का हुक्म नहीं था। ननदोई जी तो मिलने के लिए ही आए थे। इसलिए उनका मिलना ज़रूरी था। अम्मा जी को मिलना ही था। बची बुआजी और हम। हमारी...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 21)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 21 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) काले जामुन एक बार शास्त्री जी जामुन लेकर आए। बड़े-बड़े काले जामुन देख कर खाने को मन ललचा आया। सोचा कि गिने तो होंगे नहीं, चुपके-से 4-5 उठाकर खा गई। थोड़ी देर बाद चारपाई पर रखे आइना को उठाकर मुँह में देखने लगी, तो काले-काले दाँत चमक उठे। हम जल्दी से भाग कर गुसलखाने में गई और जल्दी-जल्दी दाँतों को साफ़ किया। जामुन खाने से दाँत काले हो गए थे, जिसके कारण हमारी चोरी पकड़े जाने की गुँजाइश थी। इसी तरह एक बार नुमाइश चलने की बात हुई। पास-पड़ोस की सभी औरतें देख आई थी। हमने भी शास्त्री जी से चलने को कहा। पहले तो इधर-उधर टालते रहे, पर बार-बार कहने पर एक दिन राजी हुए और शाम को आने पर चलने के लिए कहा। उस दिन हमने दूसरी वाली धोती में विशेष रूप से साबुन लगाया। शाम को जल्दी-जल्दी खाना बना कर हाथ मुँह धोया और धोती पहन कर तैयार हो गई। स्वतन्त्रता मिलने के पहले तक कभी 2 , तो कभी 3 ; उससे अधिक धोतियाँ हमारे पास नहीं रही थ...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 20)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 20 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) शास्त्री जी पर डाँट-फटकार बहादुरगंज के मकान में नीचे भी जगह थी। रसोई नीचे होती थी। गौतम जी बगल के मकान में रहते थे। गौतम जी की पत्नी से हमारी बहुत बनती थी। किसी काम से अम्माजी को रामनगर जाना पड़ा। जाते समय हमें जो समझाना था, उसे तो समझाया ही था, शास्त्री जी को भी सिद्धा-बारी के लिए सहेज गई थी, क्योंकि आटा और दूसरे गृहस्थी के सामान लगभग ख़त्म हो चले थे। शास्त्री जी आरम्भ से दिन में दो रोटियां और थोड़ा चावल और शाम को सिर्फ़ दो रोटियां खाया करते थे। अम्माजी के जाने के बाद हम एक चुटकी आटा सानती, तीन रोटियों के लिए। एक चौथी रोटी भी लगा लेती, जो टिक्की के बराबर होती। दो रोटी और थोड़ा चावल शास्त्री जी को परोस कर कमरे में दे आती और सवा रोटी और थोड़ा चावल हम अपने लिए रख लेती। जब तक शास्त्री जी भोजन करके, मुँह-हाथ धोने के लिए बाहर निकलते, हम भी खाना खा कर छुट्टी पा लेती। ऐसा हम कई कारणों से करती थी। अगर हम उनके ...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 19)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 19 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) असल गहना जिन दिनों हम बहादुरगंज वाले मकान में थे, उन्हीं दिनों शास्त्री जी के चाचाजी को किसी धन्धे में घाटा लग गया, या किसी तरह का कोई बाकी रुपया देना पड़ा था, जिसकी ठीक से हमें जानकारी नहीं है और न ही कभी हमने शास्त्री जी से इस बारे में पूछा था। एक दिन शास्त्री जी ने दुनिया की मुसीबतों और मनुष्यों की मज़बूरियों को समझाते हुए जब हमसे गहनों की माँग की, तब क्षण भर के लिए हमें कुछ अच्छा नहीं लगा और गहनों को देने में भी तनिक हिचकिचाहट हुई। पर यह सोच कर कि उनकी प्रसन्नता में ही अपनी प्रसन्नता है, हमने गहने दे दिए। केवल टीका, नथनी और बिछिया रख लिए थे। ये हमारे सुहाग वाले गहने थे। शास्त्री जी ने उस समय तो कुछ नहीं कहा, पर दूसरे दिन वे भी अपनी पीड़ा न रोक सके - ‘जब तुम मिर्ज़ापुर जाओगी और लोग गहनों के सम्बन्ध में पूछेंगे, तब क्या कहोगी ? ’ हम मुस्कुराई और कहा - ‘उसके लिए आप चिन्ता न करें। हमने बहाना सोच लिया ह...