मेरे पति मेरे देवता (भाग - 22)

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मेरे पति मेरे देवता (भाग - 22)

श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं

श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी

प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967)

घर पर कोई नहीं

किसी सत्याग्रह के आरम्भ होने के पहले या अन्य सूचनाओं के आधार पर अंग्रेज़ों द्वारा कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बड़ी चतुराई के साथ गिरफ्तार किए गए और उन का मुकदमा कचहरी में चलने लगा। शास्त्री जी तारीख़ पर जाया करते थे। एक तारीख़ पर उन्हें भी वारंट दिखाया गया और गिरफ्तार कर लिया गया। इनका भी मुकद्दमा चलने लगा। तारीख़ के दिनों पर सैंकड़ों लोग कचहरी में जाते।

हम लोग भी जाती। बातचीत तो हो नहीं सकती थी लेकिन जेल से कचहरी आते समय और कचहरी से जेल जाते समय देखने को मिल जाते थे। फैसले वाले दिन शास्त्री जी के बड़े बहनोई और उनकी बुआ जी आई थी। मिलाई की दरख़्वास्त पहले से दे दी गई थी और वह मंजूर भी हो गई थी। परन्तु मिलने कौन-कौन जाए, यही समस्या थी। तीन जनों से अधिक के मिलने का हुक्म नहीं था।

ननदोई जी तो मिलने के लिए ही आए थे। इसलिए उनका मिलना ज़रूरी था। अम्मा जी को मिलना ही था। बची बुआजी और हम। हमारी जो हालत थी, उसे हमारे सिवा कौन जान सकता था। रोकने का भरसक प्रयत्न करने पर भी आँसू बराबर बह रहे थे। ननदोई जी और अम्मा जी की राय बुआजी के लिए हुई और वे उन लोगों के साथ मिलाई के लिए गई।

हम जेल के फाटक के सामने बने चबूतरे पर पेड़ के नीचे बैठ गई। सामने जेलर वाला ऑफिस था। जहाँ तक हमारा अनुमान है कि जेलर ने अन्दर जाते समय हमें अम्मा जी के साथ देखा था और रोते हुए भी देखा था। जब अम्मा जी शास्त्री जी से मिलने पहुँची, तो जेलर ने वहीं से हमारी ओर अंगुली दिखा कर शास्त्री जी से हमारे संबंध में पूछा। शास्त्री जी के बताने पर उसने हमें भी बुलवा लिया। बातचीत हो चुकने पर जब चलने को हुए, तो हम जानबूझ कर थोड़ा पीछे रुक गई। शास्त्री जी को भी अवसर मिल गया। मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए धीरे से बोले - ‘ठीक से रहना। चिंता न करना।’ हमारे लिए सुनने के अतिरिक्त और चारा क्या था?

सजा के साथ-साथ शास्त्री जी को जुर्माना भी हुआ था और उसकी वसूली के लिए एक दिन अचानक कई पुलिस वाले और दरोगा कुर्की करने आ गए। घर पर हमारे सिवा कोई नहीं था। अम्माजी छोटी जीजी के साथ गंगा नहाने गई हुई थी। दरोगा के पूछने पर कि ‘घर में कौन-कौन है?’ 

हमने जवाब दिया - ‘कोई नहीं है। सब लोग नहाने गई हैं।’

‘और आप कौन हैं?

‘पड़ोस में रहती हैं।’

उसने फिर पूछा - ‘तुम्हारे पति का क्या नाम है?

हमने तुरन्त जवाब दिया - ‘चन्द्रिका प्रसाद जी।’

‘क्या वह घर पर हैं?

‘नहीं, कानपुर गए हुए हैं। कल तक आ जाएंगे।’

‘अच्छी बात है। कल हम फिर आएंगे।’ और सब चले गए।

अम्मा जी के आते ही कुछ असबाब छत ही छत से गौतम जी के घर पहुँचाया गया और कुछ इधर-उधर पड़ोस में। दूसरे दिन जब कुर्की के लिए पुलिस वाले आए, तो घर खाली था। उन्हें कुछ भी न मिल सका।

क्रमशः

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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