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Showing posts from September, 2024

भक्ति का रंग

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 भक्ति का रंग Image by Goran Horvat from Pixabay एक भक्त थे। उन्होंने भगवान का नाम जपते हुए जीवन बिता दिया, पर भगवान से कभी कुछ नहीं मांगा। एक दिन वे भक्त बांके बिहारी मंदिर गए, पर वहाँ उन्हें भगवान नहीं दिखे। वे आसपास के अन्य भक्तों से पूछने लगे कि आज भगवान कहाँ चले गए? सब उनकी ओर हैरानी से देखते हुए कहने लगे - भगवान तो ये रहे, सामने ही तो हैं। तुझे नहीं दिखते? तू अंधा है क्या? उन भक्त ने सोचा कि सब को दिख रहे हैं, मुझे क्यों नहीं दिख रहे? मुझे ये सब दिख रहे हैं, पर भगवान ही क्यों नहीं दिख रहे? ऐसा विचार कर उनका अंतःकरण ग्लानि से भर गया। वे सोचने लगे - लगता है कि मेरा पाप कर्म ही सामने आ गया है, इसीलिए मुझे भगवान नहीं दिखते। ऐसे शरीर का क्या लाभ। मैं इस शरीर का अन्त कर दूंगा, जिससे भगवान ही न दिखते हों। ऐसा सोच कर वे यमुना में डूबने चले। इधर अंतर्यामी भगवान एक ब्राह्मण का वेष बना कर एक कोढ़ी के पास पहुँचे और कहा कि एक उच्च श्रेणी के भक्त यमुना की तरफ जा रहे हैं। उनके आशीर्वाद में बहुत बल है। यदि वे तुझे आशीर्वाद दे दें, तो तेरा कोढ़ तुरंत ठीक हो जाए। यह सुन कर कोढ़ी ...

प्रेरणात्मक प्रसंग

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 प्रेरणात्मक प्रसंग Image by beauty_of_nature from Pixabay एक गरीब आदमी की झोपड़ी पर रात को जोरों की वर्षा हो रही थी। वह सज्जन था। उसकी छोटी-सी झोपड़ी थी। स्वयं और उसकी पत्नी, दोनों सोए हुए थे। आधी रात को किसी ने द्वार पर दस्तक दी। उन सज्जन ने अपनी पत्नी से कहा - उठ, द्वार खोल दे। पत्नी द्वार के करीब सो रही थी। पत्नी ने कहा - इस आधी रात में जगह कहाँ है? कोई अगर शरण मांगेगा तो तुम मना न कर सकोगे? वर्षा जोर की हो रही है। कोई शरण मांगने के लिए ही द्वार आया होगा न! जगह कहाँ है? उस सज्जन ने कहा - जगह? दो के सोने के लायक तो काफी है, तीन के बैठने के लायक काफी हो जाएगी। तू दरवाजा खोल। लेकिन द्वार आए आदमी को वापिस तो नहीं लौटाना है। दरवाजा खोला। कोई शरण ही मांग रहा था। वह भटक गया था और वर्षा मूसलाधार थी। वह अंदर आ गया। तीनों बैठकर गपशप करने लगे। सोने लायक तो जगह न थी। थोड़ी देर बाद किसी और आदमी ने दस्तक दी। फिर फकीर ने अपनी पत्नी से कहा - खोल। पत्नी ने कहा - अब करोगे क्या? जगह कहाँ है? अगर किसी ने शरण मांगी तो? उस सज्जन ने कहा - अभी बैठने लायक जगह है, फिर खड़े रहेंगे। मगर दरवाज...

दो पोटली

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 दो पोटली Image by For commercial use, some photos need attention. from Pixabay एक बार भगवान ने जब इंसान की रचना की तो उसे दो पोटली दी। कहा कि एक पोटली को आगे की तरफ लटकाना और दूसरी को कंधे के पीछे पीठ पर। आदमी दोनों पोटलियां लेकर चल पड़ा। हां, भगवान ने उसे यह भी कहा था कि आगे वाली पोटली पर नज़र रखना, पीछे वाली पर नहीं। समय बीतता गया। वह आदमी आगे वाली पोटली पर बराबर नज़र रखता। आगे वाली पोटली में उसकी कमियां थी और पीछे वाली में दुनिया की। वह अपनी कमियां सुधारता गया और तरक्की करता गया। पीछे वाली पोटली को उसने नजरंदाज कर रखा था। एक दिन तालाब में नहाने के पश्चात, दोनों पोटलियां अदल-बदल हो गई। आगे वाली पीछे और पीछे वाली आगे आ गई। अब उसे दुनिया की कमियां ही कमियां नजर आने लगी। यह ठीक नहीं, वह ठीक नहीं। बच्चे ठीक नहीं, पड़ोसी बेकार है, सरकार निक्कमी है आदि-आदि। अब वह खुद के अलावा सब में कमियां ढूंढने लगा। परिणाम यह हुआ कि और कोई तो नहीं सुधरा, पर उसका पतन होने लगा। वह चक्कर में पड़ गया कि यह क्या हुआ है? वह वापस भगवान के पास गया। भगवान ने उसे समझाया कि जब तक तेरी नज़र अपनी कमिय...

बस कंडक्टर

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 बस कंडक्टर Image by Annette Meyer from Pixabay हैलो भाईसाहब! टिकट ले लीजिए, टिकट....। बस कंडक्टर ने उस आदमी से कहा। उस आदमी ने पीछे मुड़कर देखा और रौबदार आवाज में बोला - मैं टिकट नहीं लेता। दुबले-पतले कंडक्टर ने उस 6 फुट लम्बे और बॉडी-बिल्डर आदमी को देखा तो उसकी दोबारा बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई। वह चुपचाप आगे बढ़ गया। अगले दिन वह आदमी फिर मिल गया। कंडक्टर ने फिर उससे टिकट के लिए पूछा - मैं कभी टिकट नहीं लेता। फिर वही उत्तर मिला। अगले दिन वह बस में फिर चढ़ा और फिर उसने टिकट नहीं लिया। अगले कई दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा। उसके टिकट न लेने से कंडक्टर के आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचती और फ्लाइंग की चैकिंग का भी डर बना रहता। लेकिन उसके हट्टे-कट्टे शरीर को देखकर उसका आत्मविश्वास कमज़ोर पड़ जाता। एक दिन कंडक्टर के भीतर की कर्त्तव्यनिष्ठ आत्मा जाग उठी। उसने सोचा कि आखिर कब तक इसके डर से मैं नुकसान उठाता रहूंगा। अब तो इज्जत का सवाल है। आखिरकार कंडक्टर एक महीने की छुट्टी ले कर अखाड़े में भर्ती हो गया। अखाड़े में उसने खूब मेहनत की, खूब पसीना बहाया। एक महीने बाद फिर वह अपने काम पर व...

मूर्ख हैं हम

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मूर्ख हैं हम ज़रा सोचिए....। एक बार एक अजनबी किसी के घर गया। वह अंदर गया और मेहमान कक्ष में बैठ गया। वह खाली हाथ आया था तो उसने सोचा कि कुछ उपहार देना अच्छा रहेगा। उसने वहाँ टंगी एक पेंटिंग उतारी और जब घर का मालिक आया उसको पेंटिंग देते हुए कहा, ‘यह मैं आपके लिए लाया हूँ।’ घर का मालिक, जिसे पता था कि यह मेरी चीज मुझे ही भेंट दे रहा है, सन्न रह गया। अब आप ही बताएं कि क्या वह भेंट पा कर, जो कि पहले से ही उसकी है, उस आदमी को खुश होना चाहिए? मेरे ख्याल से नहीं। लेकिन यही चीज हम भगवान के साथ भी करते हैं। हम उन्हें रुपया, पैसा चढ़ाते हैं और हर चीज़, जो उनकी ही बनाई हुई है, उन्हें भेंट करते हैं। लेकिन मन में भाव रखते हैं कि यह चीज मैं भगवान को दे रहा हूँ और सोचते हैं कि इससे ईश्वर खुश हो जाएंगे। मूर्ख हैं हम....। हम यह नहीं समझते कि उनको इन सब चीज़ों की कोई जरुरत नहीं। अगर आप सच में उन्हें कुछ देना चाहते हैं, तो अपनी श्रद्धा दीजिए, उन्हें अपने हर एक श्वास में याद कीजिये और किसी जरूरत मन्द की सहायता कीजिये। विश्वास कीजिए, प्रभु ज़रूर खुश होगें। अजब हैरान हूँ भगवन्, तुझे कैसे रिझाऊ...

मेहनत और अक्ल

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेहनत और अक्ल Image by Pexels from Pixabay मेहनत के साथ अक्ल का होना भी जरूरी है। जिंदगी में हमेशा मेहनत ही काफी नहीं है, मेहनत के साथ-साथ दिमाग का सही उपयोग करना भी बहुत जरूरी होता है। ऐसी ही एक मोटिवेशनल स्टोरी आज हम पढ़ेंगे, जिससे हम बहुत अच्छे तरीके से इस बात से परिचित हो जाएंगे कि मेहनत के साथ-साथ अक्ल का होना बहुत जरूरी होता है। यह कहानी शहर में रहने वाले दो दोस्तों की है, जो शहर में साथ-साथ रहते थे और साथ-साथ पढ़ने के लिए जाते थे। इनका बचपन एक साथ बीता और बाद में इन्होंने कॉलेज की पढ़ाई भी एक साथ की। दोनों दोस्तों ने एक साथ जॉब के लिए प्रस्ताव दिया और भाग्य से दोनों को उस जॉब के लिए चुन लिया गया। उन दोनों दोस्तों का नाम चंदन और कुंदन था। चंदन की जॉब में बढ़ोतरी होती गयी। उसकी एक के बाद एक बढ़ोतरी हो रही थी और कुंदन की जॉब में बढ़ोतरी नहीं हो रही थी। अब धीरे-धीरे उसे चंदन से जलन होने लगी। वह सिर्फ य़ह सोचता रहता कि ऐसा क्या है कि जो वह कर रहा है। एक दिन जब बॉस ने उसे कुछ काम दिया तो वह बॉस से लड़ने लगा, झगड़ने लगा। वह बॉस से कहने लगा कि चंदन आपके पास अब बहुत अधिक समय...

खुश रहना है

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 खुश रहना है Image by Annette Meyer from Pixabay खुश रहना है तो जितना है उतने में ही संतोष करो। एक बार की बात है। एक गाँव में एक महान संत रहते थे। वे अपना स्वयं का आश्रम बनाना चाहते थे, जिसके लिए वे कई लोगों से मुलाकात करते थे और इसके लिए उन्हें एक जगह से दूसरी जगह यात्रा के लिए जाना पड़ता था। इसी यात्रा के दौरान एक दिन उनकी मुलाकात एक साधारण-सी विदुषी कन्या से हुई। विदुषी ने उनका बड़े हर्ष से स्वागत किया और संत से कुछ समय कुटिया में रुक कर विश्राम करने की याचना की। संत उसके व्यवहार से प्रसन्न हुए और उन्होंने उसका आग्रह स्वीकार किया। विदुषी ने संत को अपने हाथों से स्वादिष्ट भोजन कराया और उनके विश्राम के लिए खटिया पर एक दरी बिछा दी और वह खुद धरती पर टाट बिछा कर सो गई। विदुषी को सोते ही नींद आ गई। उसके चेहरे के भाव से पता चल रहा था कि विदुषी चैन की सुखद नींद ले रही है। उधर संत को खटिया पर भी नींद नहीं आ रही थी। उन्हें मोटे नरम गद्दे की आदत थी जो उन्हें दान में मिला था। वह चैन की नींद नहीं सो सके और विदुषी के बारे में ही सोचते रहे। वे सोच रहे थे कि वह कैसे इस कठोर जमीन ...