बस कंडक्टर
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बस कंडक्टर
Image by Annette Meyer from Pixabay
हैलो भाईसाहब! टिकट ले लीजिए, टिकट....। बस कंडक्टर ने उस आदमी से कहा।
उस आदमी ने पीछे मुड़कर देखा और रौबदार आवाज में बोला - मैं टिकट नहीं लेता।
दुबले-पतले कंडक्टर ने उस 6 फुट लम्बे और बॉडी-बिल्डर आदमी को देखा तो उसकी दोबारा बोलने की हिम्मत ही नहीं हुई। वह चुपचाप आगे बढ़ गया।
अगले दिन वह आदमी फिर मिल गया।
कंडक्टर ने फिर उससे टिकट के लिए पूछा - मैं कभी टिकट नहीं लेता। फिर वही उत्तर मिला।
अगले दिन वह बस में फिर चढ़ा और फिर उसने टिकट नहीं लिया। अगले कई दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा।
उसके टिकट न लेने से कंडक्टर के आत्म-सम्मान को ठेस पहुंचती और फ्लाइंग की चैकिंग का भी डर बना रहता। लेकिन उसके हट्टे-कट्टे शरीर को देखकर उसका आत्मविश्वास कमज़ोर पड़ जाता।
एक दिन कंडक्टर के भीतर की कर्त्तव्यनिष्ठ आत्मा जाग उठी। उसने सोचा कि आखिर कब तक इसके डर से मैं नुकसान उठाता रहूंगा। अब तो इज्जत का सवाल है। आखिरकार कंडक्टर एक महीने की छुट्टी ले कर अखाड़े में भर्ती हो गया।
अखाड़े में उसने खूब मेहनत की, खूब पसीना बहाया। एक महीने बाद फिर वह अपने काम पर वापस आया तो उसकी खूब बॉडी बन चुकी थी और उसका आत्मविश्वास भी बढ़ गया था।
वह बस में फिर चढ़ा और फिर उसने टिकट नहीं लिया।
हाँ भाई! टिकट के पैसे निकालो, कंडक्टर ने सोच लिया था कि आज इसे टिकट दे कर ही रहूँगा।
कहा था न कि मैं टिकट नहीं लेता! फिर वही जवाब मिला।
अबे! ऐसे कैसे नहीं लेगा, कंडक्टर ने रोबदार आवाज में बोला।
क्योंकि मैंने एक साल के लिए पास बनवा रखा है। यह कहते हुए उसने पास निकाल कर बढ़ा दिया।
अब तो कंडक्टर की ऐसी स्थिति हो गई जैसे खोदा पहाड़ और निकली चुहिया।
सीख - ऐसा अक्सर हमारे साथ होता है कि हम बिना जाने-समझे सामने वाले के प्रति अपनी राय बना लेते हैं। यह अच्छा है वह बुरा है, यह गलत है, वह सही है। उसकी बात को समझने की कोशिश ही नहीं करते कि वह ऐसा क्यों कह रहा है। इस प्रकार हम मन ही मन कल्पनाओं के पहाड़ खड़े करते रहते हैं। मगर जब परिणाम सामने निकलता है तो हमें या तो शर्मिन्दा होना पड़ता है या पछताना पड़ता है।
इसलिए हमें ऐसे नकारात्मक विचारों से बचना चाहिए। हर समस्या का हल स्वस्थ वातावरण में, शांत मन से बातचीत करके निकाला जा सकता है। यदि बस कंडक्टर पहले दिन ही उससे कारण पूछ लेता कि भाई क्यों नहीं लेते टिकट, तो हो सकता है कि बात वहीं समाप्त हो जाती।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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