भक्ति का रंग
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भक्ति का रंग
Image by Goran Horvat from Pixabay
एक भक्त थे। उन्होंने भगवान का नाम जपते हुए जीवन बिता दिया, पर भगवान से कभी कुछ नहीं मांगा।
एक दिन वे भक्त बांके बिहारी मंदिर गए, पर वहाँ उन्हें भगवान नहीं दिखे। वे आसपास के अन्य भक्तों से पूछने लगे कि आज भगवान कहाँ चले गए?
सब उनकी ओर हैरानी से देखते हुए कहने लगे - भगवान तो ये रहे, सामने ही तो हैं। तुझे नहीं दिखते? तू अंधा है क्या?
उन भक्त ने सोचा कि सब को दिख रहे हैं, मुझे क्यों नहीं दिख रहे? मुझे ये सब दिख रहे हैं, पर भगवान ही क्यों नहीं दिख रहे?
ऐसा विचार कर उनका अंतःकरण ग्लानि से भर गया। वे सोचने लगे - लगता है कि मेरा पाप कर्म ही सामने आ गया है, इसीलिए मुझे भगवान नहीं दिखते। ऐसे शरीर का क्या लाभ। मैं इस शरीर का अन्त कर दूंगा, जिससे भगवान ही न दिखते हों।
ऐसा सोच कर वे यमुना में डूबने चले।
इधर अंतर्यामी भगवान एक ब्राह्मण का वेष बना कर एक कोढ़ी के पास पहुँचे और कहा कि एक उच्च श्रेणी के भक्त यमुना की तरफ जा रहे हैं। उनके आशीर्वाद में बहुत बल है। यदि वे तुझे आशीर्वाद दे दें, तो तेरा कोढ़ तुरंत ठीक हो जाए।
यह सुन कर कोढ़ी यमुना की ओर दौड़ा। उन भक्त को पहचान कर, उनका रास्ता रोक लिया। उनके पैर पकड़कर, उनसे आशीर्वाद मांगने लगा।
भक्त कहने लगे - भाई! मैं तो पापी हूँ, मेरे आशीर्वाद से क्या होगा?
पर जब बार-बार समझाने पर भी कोढ़ी ने पैर न छोड़े, तो उन भक्त ने अनमने भाव से कह ही दिया - भगवान तेरी इच्छा पूरी करें।
ऐसा कहते ही कोढ़ी बिल्कुल ठीक हो गया, पर वे भक्त हैरान हो गए कि यह चमत्कार कैसे हो गया? वे अभी वहीं स्तब्ध खड़े ही थे कि साक्षात् भगवान सामने आ खड़े हुए।
उन भक्त ने भगवान को देखा तो अपने को संभाल न सके और रोते हुए भगवान के चरणों में गिर गए।
भगवान ने उठाया।
वे भगवान से पूछने लगे - भगवन्! यह आपकी कैसी लीला है? पहले तो आप मंदिर में भी दिखाई न दिए और अब अनायास आपका दर्शन ही प्राप्त हो रहा है?
भगवान ने कहा - भक्तराज! आपने जीवन भर जप किया, पर कभी कुछ मांगा नहीं। आपका मुझ पर बहुत ऋण चढ़ गया था। मैं आपका ऋणी हो गया था। इसलिए पहले मुझे आपके सामने आने में संकोच हो रहा था। आज आपने उस कोढ़ी को आशीर्वाद देकर, अपने पुण्यपुंज में से कुछ घटा लिया। जिससे अब मैं कुछ ऋण मुक्त हो सका हूँ। इसीलिए मैं आपके सामने प्रकट होने की हिम्मत कर पाया हूँ।
मेरे भाईयों-बहनों! वे भक्त धन्य हैं जो भगवान का नाम तो जपते हैं, पर बदले में भगवान से कभी कुछ नहीं मांगते।
जिनके भगवान भी ऋणी हैं, ऐसे भक्तों को इंसान तो क्या, भगवान भी महत्व देते हैं, तो इसलिए हमें केवल प्रभु का नाम जपना है या नाम कीर्तन करना है, लेकिन मांगना नहीं है।
कलियुग में नाम कीर्तन से ही हमारा कल्याण होगा।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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Bahut Sundar
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