अगली यात्रा - प्रेरक प्रसंग
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अगली यात्रा - प्रेरक प्रसंग
बहुत समय पहले एक राजा था। वह अपनी न्यायप्रियता के कारण प्रजा में बहुत लोकप्रिय था। एक बार वह अपने दरबार में बैठा ही था कि अचानक उसके दिमाग में एक सवाल उभरा। सवाल था कि मनुष्य का मरने के बाद क्या होता होगा?
इस अज्ञात सवाल के उत्तर को पाने के लिए उस राजा ने अपने दरबार में सभी मंत्रियों आदि से मशवरा किया। सभी लोग राजा की इस जिज्ञासा भरी समस्या से चिंतित हो उठे। काफी देर सोचने-विचारने के बाद राजा ने यह निर्णय लिया कि मेरे सारे राज्य में यह ढिंढोरा पिटवा दिया जाए कि जो आदमी कब्र में मुर्दे के समान लेटकर रात भर कब्र में मरने के बाद होने वाली सभी क्रियाओं का हवाला देगा, उसे पांच सौ सोने की मोहरें भेंट दी जाएंगी।
राजा के आदेशानुसार सारे राज्य में उक्त ढिंढोरा पिटवा दिया गया।
अब समस्या आई कि कौन अच्छा-भला जीवित व्यक्ति मरने को तैयार हो? आखिर सारे राज्य में एक ऐसा व्यक्ति इस काम को करने के लिए तैयार हो गया, जो इतना कंजूस था कि वह सुख से खाता, पीता, सोता नहीं था।
उसको राजा के पास पेश किया गया। राजा के आदेशानुसार उसके लिए बढ़िया फूलों से सुसज्जित अर्थी बनाई गई। उसको उस पर लिटाकर बाकायदा श्वेत कफन से ढक दिया गया और उसे कब्रिस्तान ले जाया गया।
घर से जाने पर रास्ते में एक फकीर ने उसका पीछा किया और उससे कहा कि अब तो तुम मरने जा रहे हो, घर में तुम अकेले हो। इतना धन तुम्हारे घर में ही कैद पड़ा रहेगा, मुझे कुछ दे दो।
कंजूस के बार-बार मना करने पर भी फकीर ने कंजूस का पीछा नहीं छोड़ा और बार-बार कुछ मांगने की रट लगाए रहा।
कंजूस जब एकदम परेशान हो गया तो उसने कब्रिस्तान में पड़े बादाम के छिलकों के एक ढेर में से मुट्ठी भर छिलके उठाए और उस फकीर को दे दिए।
फकीर ने गुस्से में आकर वे छिलके वहीं कब्र पर फेंक दिए।
बाद में कंजूस को एक कब्र में लिटा दिया गया और ऊपर से पूरी कब्र बंद कर दी गई। बस एक छोटा सा छेद सिर की तरफ इस आशा के साथ कर दिया गया कि यह इससे सांस लेता रहे और अगली सुबह राजा को मरने के बाद का पूरा हाल सुनाए।
सभी लोग कंजूस को उस कब्र में लिटाकर चले गए। रात हुई। रात होने पर फूलों की सुगंध से एक सांप कब्र पर आया और छेद देखकर उसमें घुसने का प्रयत्न करने लगा। यह देखकर कब्र में लेटे कंजूस की घबराहट का ठिकाना न रहा। सांप ने जैसे ही घुसने का प्रयत्न किया तो उस छेद में बादाम के छिलके आड़ बनकर आ गए।
सुबह होते ही राजा के सभी नौकर बड़ी जिज्ञासा के साथ कब्रिस्तान आए और जल्दी ही कब्र को खोदकर कंजूस को निकाला। मरने के बाद क्या होता है, यह हाल सुनाने के लिए कंजूस को राजा के पास चलने को कहा।
कंजूस ने राजा के नौकरों की बात को थोड़ा भी नहीं सुना। वह पहले अपने घर गया और अपनी तमाम धन-संपत्ति को गरीबों में बांट दिया।
सब लोग कंजूस की अचानक दान करने की इस दयालुता को देखकर हैरत में पड़ गए। उनके मन में कई सवाल उठने लगे। अंत में कंजूस को राज-दरबार में पूरा हाल सुनाने के लिए राजा के सामने पेश किया गया।
कंजूस ने बीती रात, सांप व बादाम के छिलकों के संघर्ष की पूरी कहानी कह सुनाई और कहा, “महाराज, मरने के बाद सबसे ज्यादा काम में तो दिया गया दान ही आता है, अतः दान करना ही सब धर्मों से श्रेष्ठ है।”
धन वही श्रेष्ठ है जो सत्कार्यों में लगे क्योंकि या तो धन को एकत्रित करने के बाद छोड़ो या एकत्रित करने की भावना करना छोड़ो। हर स्थिति में छोड़ना तो पड़ेगा ही, तो फिर क्यों न आज से ही सत्कार्यों में एवं जरूरतमंदों की सहायता में उसका सदुपयोग करें।
धन का सही उपयोग सिर्फ सत्कार्य में और धर्म की प्रभावना में लगाना ही है। हम सब अपनी सामर्थ्य अनुसार सदैव दान करें और गुरुओं के बताए मार्ग पर चलकर जीवन भर भी सुखी रहें और मृत्यु के बाद भी बिना क्लेश के अगली यात्रा सम्पन्न कर सकें।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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