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Showing posts from June, 2025

जीवन की सहजता

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  जीवन की सहजता जीवन की सहजता खोने न दें।   एक बार एक पारिवारिक कार्यक्रम चल रहा था, जिसमें बहुत से लोग उपस्थित थे। वहाँ बासमती चावल का पुलाव बन रहा था और सभी को पुलाव का बेसब्री से इंतजार था। भूख भी काफी जोर से लगी थी।  आखिरकार पुलाव परोसा गया। जैसे ही लोग खाना शुरू करने वाले थे, रसोइये ने आकर कहा, “पुलाव को संभलकर खाइएगा क्योंकि हो सकता है कि इसमें शायद एक आध कंकड़ रह गया हो। मैंने वैसे तो सारे कंकड़ निकाल दिए हैं।“ यह सुनकर सभी सावधानी से खाना खाने लगे। हर किसी को लगने लगा कि कंकड़ शायद उसी के मुँह में आएगा। यह सोचते-सोचते, पुलाव का सारा मजा किरकिरा हो गया। लोग चुपचाप, बिना किसी हंसी मजाक के, खाना खाने लगे। खाना खत्म होने के बाद सबने रसोइये से पूछा, “तुमने ऐसा क्यों कहा, जबकि किसी के भी मुँह में कंकड़ नहीं आया?“ रसोइये ने जवाब दिया, “मैंने अच्छी तरह चावल बिने थे, लेकिन चावल में कंकड़ ज्यादा थे, इसलिए मुझे लगा कि शायद एक दो कंकड़ बच गए हों।“ यह सुनकर सभी ने एक-दूसरे की ओर देखा। पुलाव स्वादिष्ट था, लेकिन कंकड़ की चिंता ने इतने स्वादिष्ट पुलाव का सारा आनंद छीन लिया। यही हमा...

सीख

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  सीख   महात्मा बुद्ध अपने भिक्षुओं से कहते थे कि तुम चौबीस घण्टे, राह पर कोई भी दिखे, उसकी मंगल की कामना करना! वृक्ष भी मिल जाए, तो उसकी मंगल की कामना करके उसके पास से गुज़रना! पहाड़ भी दिख जाए तो मंगल की कामना करके उसके निकट से गुज़रना! राहगीर दिख जाए, चाहे वह जानकार हो या अनजान, तो उसके पास से मंगल की कामना करके राह से गुज़रना! एक भिक्षु ने पूछा - इससे क्या फायदा? बुद्ध ने कहा - इसके दो फायदे हैं। पहला तो यह कि तुम्हें गाली देने का अवसर नहीं मिलेगा, तुम्हें बुरा खयाल करने का अवसर नहीं मिलेगा। तुम्हारी शक्ति नियोजित हो जाएगी मंगल की दिशा में। दूसरा फायदा यह कि जब तुम किसी के लिये मंगल की कामना करते हो, तो तुम उसके भीतर भी रिजोनेंस, प्रतिध्वनि पैदा करते हो। वह भी तुम्हारे लिए मंगल की कामना से भर जाता है ! लोग केवल सुख चाहते हैं; शांति, सत्य और मोक्ष नहीं। प्रवचन की समाप्ति के बाद भगवान गौतम बुद्ध के पास कई लोग आते थे और अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते थे। एक दिन एक ग्रामीण गौतम बुद्ध के पास आया और बोला- भगवन्! आप कई वर्षों से शांति, सत्य और मोक्ष की बात करते है, किंतु अब त...

टैक्सी चालक

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  टैक्सी चालक आज की कहानी दिल्ली के एक साधारण टैक्सी चालक देवेन्द्र की है। देवेन्द्र मूलतः नयासर के रहने वाले हैं। एक दिन देवेन्द्र की टैक्सी में राजस्थान का निवासी बैठा, जिसे एयरपोर्ट से पहाड़गंज तक जाना था। देवेन्द्र ने उसको पहाड़गंज छोड़ा, अपना किराया वसूला और वापिस टैक्सी स्टैंड की ओर चल पड़े। इसी बीच उनकी नज़र गाड़ी में पड़े एक बैग पर गयी। बैग को देखकर देवेंद्र समझ गए कि यह उसी सवारी का बैग है, जिसे कुछ ही समय पहले वह पहाड़गंज छोड़ कर आये हैं। बैग को खोलकर देखा तो उसमें कुछ स्वर्ण आभूषण, एक एप्पल का लैपटॉप, एक कैमरा और कुछ नगद पैसे थे। सब कुछ मिला कर लगभग 7 या 8 लाख का सामान था। एकदम देवेन्द्र की आँखों के सामने अपनी टैक्सी के फाइनेन्सर की तस्वीर आ गयी। इतने आभूषण बेच कर तो उनकी टैक्सी का कर्ज आसानी से उतर सकता था। वे एक दम से प्रसन्न हो उठे। उनके मन में बैठा रावण जाग उठा। पराया माल अपना लगने लगा। परन्तु जीवन की यही तो विडम्बना है। मन में राम और रावण दोनों निवास करते हैं। कुछ ही दूर गये थे कि मन में बैठे राम जाग उठे। देबेन्द्र को लगा कि वह कैसा पाप करने जा रहे थे। नैतिकता आड़े आ गयी। बड़ी...

सन्तुष्टि और प्रयास

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  सन्तुष्टि और प्रयास कहानी बहुत अच्छी है पढ़िएगा जरूर। किसी गांव मे एक चित्रकार रहता था, जो बहुत ही जीवंत चित्रकारी करता था। जिसके लिए वह अथाह मेहनत भी करता था। वह अपने बनाये चित्रों को बाजार में बेच आता, जिससे अच्छी कमाई हो जाती थी। उसके परिवार में उसकी 8 वर्षीय बेटी के अतिरिक्त और कोई नहीं था। अपनी बेटी से वह बहुत स्नेह करता था। साथ ही उसे अभी से चित्रकारी का अभ्यास भी कराता था। बेटी पिता के सान्निध्य में जल्दी ही अच्छी चित्रकारी करने लगी। प्रत्येक बार वह अपनी बनायी चित्रकारी पिता को हर्षित होकर दिखलाती और पिता भी उसकी चित्रकारी देखकर बहुत खुश होते, मगर हर बार कुछ न कुछ कमी बतला देते - “बहुत बढ़िया बनाया है तुमने, बेटी! किंतु थोड़े और सुधार की आवश्यकता है।“ पिता की बात सुनकर बेटी पुनः सुधार करने लगती और इस तरह सुधार करते हुए उसके चित्र उसके पिता से भी कहीं ज्यादा सुंदर और सजीव बनने लगे। और ऐसा समय भी आ गया कि बाजार में लोग बेटी के बनाये चित्रों को ज्यादा पैसा देकर खरीदने लगे, जबकि पिता की तस्वीरों को अभी भी पहले वाली कीमत ही मिलती थी। लेकिन पिता अब भी बेटी के द्वारा बनाई गई तस्वीर...

चमत्कार

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   चमत्कार  छोटी लड़की ने गुल्लक से सब सिक्के निकाले और उनको बटोर कर जेब में रख लिया, निकल पड़ी। घर के पास ही केमिस्ट की दुकान थी। वह उसकी सीढी धीरे धीरे चढ़ गयी। वह काउंटर के सामने खड़े होकर बोल रही थी, पर छोटी सी लड़की किसी को नज़र नहीं आ रही थी, न ही उसकी आवाज़ पर कोई गौर कर रहा था। सब व्यस्त थे।... दुकान मालिक का कोई दोस्त बाहर देश से आया था।....वह भी उससे बात करने में व्यस्त था।...तभी उसने जेब से एक सिक्का निकाल कर काउंटर पर फेका, सिक्के की आवाज़ से सबका ध्यान उसकी ओर गया। उसकी तरकीब काम आ गयी। दुकानदार उसकी ओर आया और उससे प्यार से पूछा - “क्या चाहिए, बेटा?“ वह जेब के सिक्के बताकर बोली - ’मुझे “चमत्कार” चाहिए...।’  दुकानदार समझ नहीं पाया। उसने फिर से पूछा, वह फिर से बोली - मुझे “चमत्कार“ चाहिए... दुकानदार हैरान होकर बोला - “बेटा, यहाँ चमत्कार नहीं मिलता...“ वह फिर बोली..- “अगर दवाई मिलती है, तो चमत्कार भी आपके यहाँ ही मिलेगा न..“ दुकानदार बोला - “बेटा, आप से यह किसने कहा?“ अब उसने विस्तार से बताना शुरु किया, अपनी तोतली जबान से ..... “मेरे भैया के सर में टुमर (ट्यूमर) हो...

ऑन लाइन शॉपिंग

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  ऑन लाइन शॉपिंग सोने-चांदी के व्यापारी नंदू भाई सोनी ने बाज़ार से धर्मेन्द्र भाई की दुकान से 20,000 रुपए का टी.वी. खरीदा। टी.वी. के व्यापारी धर्मेन्द्र भाई ने 20,000 रुपए का व्यापार होते ही रमेश ट्रेडिंग कम्पनी से  अपने घर के लिए पानी की नई मोटर और प्लंबिंग का सामान खरीदा। प्लंबिंग के व्यापारी राजाराम चौधरी ने अपनी ज़रूरत के हिसाब से उसी बाजार से दिनेश भाई की दुकान से कपड़े और किराना का सामान खरीदा।  दिनेश भाई ने उसी पैसे को अपने बच्चों की फीस श्रवण भाई के स्कूल में जमा करवाए।  श्रवण भाई ने देवीलाल जी से स्कूल में कंस्ट्रक्शन का काम करवाया और वे पैसे देवीलाल जी को दे दिये।  देवीलाल जी ने वे पैसे अपने मज़दूरों को दिये।  मजदूरों ने बाबू भाई से सब्जी व दूदाराम, सांवलाराम, मांगीलाल से अपने ज़रूरत का किराणा का सामान खरीदा और सब्जी व किराणे वालों ने अपनी अपनी ज़रूरत के हिसाब से नंदू भाई से गहनों की खरीदारी की। मतलब कि वही पैसा घूम फिर कर वापस ‘नंदू भाई सोनी’ के पास आया और सब का व्यापार हुआ..!! अब यहां सवाल यह है कि...  नंदू भाई ने टीवी ऑनलाइन खरीदा होता तो......?...

समस्या का दूसरा पहलु

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  समस्या का दूसरा पह लू पिताजी कोई किताब पढने में व्यस्त थे, पर उनका बेटा बार-बार आता और उल्टे-सीधे सवाल पूछ कर उन्हें डिस्टर्ब कर देता। पिता के समझाने और डांटने का भी उस पर कोई असर नहीं पड़ता. तब उन्होंने सोचा कि अगर बच्चे को किसी और काम में उलझा दिया जाए तो बात बन सकती है. उन्होंने पास ही पड़ी एक पुरानी किताब उठाई और उसके पन्ने पलटने लगे. तभी उन्हें विश्व मानचित्र छपा दिखा। उन्होंने तेजी से वह पेज फाड़ा और बच्चे को बुलाया - ”देखो ये वर्ल्ड मैप है, अब मैं इसे कई पार्ट्स में कट कर देता हूँ, तुम्हें इन टुकड़ों को फिर से जोड़ कर वर्ल्ड मैप तैयार करना होगा.” और ऐसा कहते हुए उन्होंने ये काम बेटे को दे दिया. बेटा तुरंत मैप बनाने में लग गया और पिता यह सोच कर खुश होने लगे कि अब वे आराम से दो-तीन घंटे किताब पढ़ सकेंगे. लेकिन ये क्या, अभी पांच मिनट ही बीते थे कि बेटा दौड़ता हुआ आया और बोला, ”ये देखिये, पिताजी! मैंने मैप तैयार कर लिया है.” पिता ने आश्चर्य से देखा, मैप बिलकुल सही था, - ”तुमने इतनी जल्दी मैप कैसे जोड़ दिया?  ये तो बहुत मुश्किल काम था?” कहाँ पापा, ये तो बिलकुल आसान था, आपने जो पे...

फूल और सुगंध

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  फूल और सुगंध एक व्यक्ति ने एक फूल से कहा- कल तो तुम मुरझा जाओगे, फिर क्यों मुस्कुराते रहते हो? और तुम व्यर्थ में ही यह ताजगी किसलिए लुटाते हो? फूल चुप रहा। इतने में एक तितली आई, पल भर फूल का आनंद लिया और फिर उड़ गई। एक भंवरा आया। फूल को गान सुनाया, उसकी सुगंध बटोरी और फिर आगे बढ़ गया।  एक मधुमक्खी आई। पल भर भिनभिनाई, फूल से पराग समेटा और फिर झूमती गाती हुई चली गई। खेलते हुए एक बालक ने फूल का स्पर्श सुख लिया, उसका रूप-लावण्य निहारा, मुस्कुराया और फिर खेलने लग गया। तब फूल बोला- मित्र! क्षण भर को ही सही, पर यह देखो कि मेरे जीवन ने कितनों को सुख दिया। क्या तुमने भी कभी ऐसा किया?  कल की मुरझाने की चिन्ता में आज के आनंद में विराम क्यों करूं? माटी ने जो रूप, रंग, रस और गंध दिए हैं, उसे बदनाम क्यों करूं। मैं हंसता हूं, क्योंकि हंसना मुझे आता है। मैं खिलता हूं, क्योंकि खिलना मुझे सुहाता है। मैं मुरझा गया तो क्या, कल फिर से एक नया फूल खिलेगा। न कभी मुस्कान रुकी है और न ही कभी सुगंध। जीवन तो एक सिलसिला है, और इसी तरह चलेगा। इसलिए..... जो कुछ भी आपको मिला है उसी में खुश रहिए, और हर प...

देने की खुशी

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  देने की खुशी हॉलीवुड की महान अभिनेत्री कैथरीन हेपबर्न शायद अकेली ऐसी शख्स थीं, जिन्होंने चार बार ऑस्कर अवॉर्ड जीता और दर्जनों बार नामांकित हुईं। लेकिन उन्होंने कभी भी भव्य समारोह में इसे प्राप्त करने के लिए उपस्थिति नहीं दी। उनका दृढ़ विश्वास था कि उनके अभिनय और सिनेमा को पसंद करने वाले लोगों का स्नेह और प्यार ही उनके लिए सबसे बड़ा इनाम है। कैथरीन हेपबर्न मध्यम वर्गीय परिवार से थीं, जिनका पालन-पोषण साधारण तरीके से हुआ। लेकिन उनके माता-पिता ने बचपन में ही उनमें मजबूत मूल्य स्थापित किए। उन्होंने खुद एक घटना को इस तरह से बयान कियाः- एक बार, जब मैं किशोरी थी; मैं और मेरे पिता सर्कस की टिकट खरीदने के लिए लाइन में खड़े थे। आखिरकार, हमारे और टिकट काउंटर के बीच केवल एक और परिवार रह गया। यह परिवार मुझ पर गहरा प्रभाव छोड़ गया। उनके साथ आठ बच्चे थे, जो शायद 12 साल से कम उम्र के थे। उनके कपड़ों से पता चलता था कि उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे, लेकिन उनके कपड़े साफ-सुथरे और सलीके से पहने हुए थे। बच्चे बेहद अनुशासित थे। सभी दो-दो की कतार में, अपने माता-पिता के पीछे हाथ पकड़कर खड़े थे। वे जोश और उत्साह स...

कारण और निवारण

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  कारण और निवारण  महात्मा बुद्ध अक्सर अपने शिष्यों को शिक्षा प्रदान किया करते थे। एक दिन प्रातः काल बहुत से भिक्षुक उनका प्रवचन सुनने के लिए बैठे थे। बुद्ध समय पर सभा में पहुंचे, पर आज शिष्य उन्हें देखकर चकित थे, क्योंकि आज  पहली बार वे अपने हाथ में कुछ लेकर आए थे। करीब आने पर शिष्यों ने देखा कि उनके हाथ में एक रस्सी थी।        बुद्ध ने आसन ग्रहण किया और बिना किसी से कुछ कहे वे रस्सी में गांठें लगाने लगे। वहाँ उपस्थित सभी लोग यह देख सोच रहे थे कि अब बुद्ध आगे क्या करेंगे; तभी बुद्ध ने सभी से एक प्रश्न किया, ‘मैंने इस रस्सी में तीन गांठें लगा दी हैं, अब मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि क्या यह वही रस्सी है, जो गाँठें लगाने से पूर्व थी?’ एक शिष्य ने उत्तर में कहा, ”गुरुजी! इसका उत्तर देना थोड़ा कठिन है। ये वास्तव में हमारे देखने के तरीके पर निर्भर है। एक दृष्टिकोण से देखें तो रस्सी वही है। इसमें कोई बदलाव नहीं आया है। दूसरी तरह से देखें तो अब इसमें तीन गांठें लगी हुई हैं, जो पहले नहीं थीं; अतः इसे बदला हुआ कह सकते हैं। पर यह बात भी ध्यान देने वाली है कि बाह...

तुलसी चौरा

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तुलसी चौरा एक बार तुलसीदास जी महाराज को किसी ने बताया कि जगन्नाथ जी में तो साक्षात् भगवान ही दर्शन देते हैं। बस! फिर क्या था? यह सुनकर तुलसीदास जी महाराज बहुत ही प्रसन्न हुए और अपने इष्टदेव का दर्शन करने श्री जगन्नाथ पुरी को चल दिए।  महीनों की कठिन और थका देने वाली यात्रा के उपरांत जब वह जगन्नाथ पुरी पहुंचे, तो मंदिर में भक्तों की भीड़ देख कर प्रसन्न मन से अंदर प्रविष्ट हुए। जगन्नाथ जी का दर्शन करते ही उन्हें धक्का-सा लगा। वह निराश हो गये और विचार किया कि यह हस्तपादविहीन देव हमारे जगत में सबसे सुंदर नेत्रों को सुख देने वाले मेरे इष्ट श्री राम नहीं हो सकते।  इस प्रकार दुःखी मन से बाहर निकल कर वे दूर एक वृक्ष के तले बैठ गये और उन्होंने सोचा कि इतनी दूर आना ब्यर्थ हुआ। क्या गोलाकार नेत्रों वाला हस्तपादविहीन दारुदेव मेरा राम हो सकता है? कदापि नहीं। रात्रि हो गयी। थके माँदे भूखे-प्यासे तुलसी का अंग-अंग टूट रहा था। अचानक एक आहट हुई। वे ध्यान से सुनने लगे - अरे! बाबा तुलसीदास कौन है? एक बालक हाथों में थाली लिए पुकार रहा था।  आपने सोचा - साथ आए लोगों में से शायद किसी ने पुजारियों ...

भाग्य

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  भाग्य भाग्य में लिखा कभी मिट नहीं सकता। चंदन नगर का राजा चंदन सिंह बहुत ही पराक्रमी एवं शक्तिशाली था। उसका राज्य भी धन-धान्य से पूर्ण था। राजा की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी।  एक बार चंदन नगर में एक ज्योतिषी पधारे। उनका नाम था भद्रशील। उनके बारे में विख्यात था कि वह बहुत ही पहुंचे हुए ज्योतिषी हैं और किसी के भी भविष्य के बारे में सही-सही बता सकते हैं। वह नगर के बाहर एक छोटी कुटिया में ठहरे थे। उनकी इच्छा हुई कि वह भी राजा के दर्शन करें। उन्होंने राजा से मिलने की इच्छा व्यक्त की और राजा से मिलने की अनुमति उन्हें सहर्ष मिल गई। राज दरबार में राजा ने उनका हार्दिक स्वागत किया। चलते समय राजा ने ज्योतिषी को कुछ हीरे-जवाहरात देकर विदा करना चाहा, परंतु ज्योतिषी ने यह कह कर मना कर दिया कि वह सिर्फ अपने भाग्य का खाते हैं। राजा की दी हुई दौलत से वह अमीर नहीं बन सकते। राजा ने पूछा - “इससे क्या तात्पर्य है आपका, गुरुदेव?“ “कोई भी व्यक्ति अपनी किस्मत और मेहनत से गरीब या अमीर होता है। पूर्वकृत अच्छे कर्म ही उसे अमीर बनाते हैं और पूर्वकृत दुष्कर्म उसे ग़रीब बनाते हैं। यदि राजा भी किसी को अमीर ...

मैल और धूल

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  मैल और धूल                  एक सेठ नदी पर आत्महत्या करने जा रहा था। संयोग से एक लंगोटीधारी संत भी वहाँ थे। संत ने उसे रोक कर कारण पूछा, तो सेठ ने बताया कि उसे व्यापार में बहुत बड़ी हानि हो गई है। संत ने मुस्कुराते हुए कहा - बस इतनी सी बात है? चलो मेरे साथ। मैं अपने तपोबल से लक्ष्मी जी को तुम्हारे सामने बुला दूंगा। फिर उनसे जो चाहे माँग लेना। सेठ उनके साथ चल पड़ा। कुटिया में पहुँच कर संत ने लक्ष्मी जी को साक्षात् प्रकट कर दिया। वे इतनी सुंदर, इतनी सुंदर थीं कि सेठ अवाक् रह गया और धन माँगना भूल गया। देखते देखते सेठ की दृष्टि उनके चरणों पर पड़ी। उनके चरण मैल से सने थे। सेठ ने हैरानी से पूछा- माँ! आपके चरणों में यह मैल कैसी? माँ - पुत्र! जो लोग भगवान को नहीं चाहते, मुझे ही चाहते हैं, वे पापी मेरे चरणों में अपना पाप से भरा माथा रगड़ते हैं। उनके माथे की मैल मेरे चरणों पर चढ़ जाती है। ऐसा कहकर लक्ष्मी जी अंतर्ध्यान हो गईं। अब सेठ धन न माँगने की अपनी भूल पर पछताया, और संत चरणों में गिर कर, एक बार फिर उन्हें बुलाने का आग्रह करने लगा। संत ने लक्ष्मी...

भगवान के भक्त निर्धन क्यूं?

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  भगवान के भक्त निर्धन क्यूं? भगवान कृष्ण के भक्त निर्धन जबकि अन्य देवी-देवताओं के धनवान; ऐसा क्यो? भगवान, जिनकी सेवा स्वयं लक्ष्मी जी करती हैं और जो स्वयं लक्ष्मी पति कहलाते हैं, फिर उनके भक्त निर्धन जबकि अन्य देवी-देवताओं के धनवान; यह कैसे हो सकता है? शास्त्रों के द्वारा हम जान सकते हैं कि शिवजी कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। जिनके पास स्वयं रहने के लिए कोई भवन नहीं, पर रावण ने अपनी भक्ति से प्रसन्न करके उनसे सोने की लंका मांग ली। दूसरी ओर भगवान स्वयं पांडवों के साथ थे, पर पाण्डवों को 13 वर्ष वन में रहना पड़ा, जबकि भगवान के पास ऐसे अन्य कितने लोक हैं, जो वे पांडवो को दे सकते थे। अंत समय में हम सभी जानते हैं कि रावण का क्या हुआ और पांडवों की भगवान ने किस प्रकार रक्षा की। इस प्रश्न को महाराज परीक्षित सुखदेव गोस्वामी से पूछते हैं कि भगवान ऐसा क्यों करते हैं?  सुखदेव गोस्वामी बताते हैं कि भगवान स्वयं कहते हैं, यदि मै किसी पर विशेष कृपा करता हूँ, तो उसका सब कुछ छीन लेता हूँ। सबसे पहले में उसका धन, ऐश्वर्य छीनता हूं। निःसहाय होने पर उसके पास अन्य कोई मार्ग नही बचता। इस प्रकार वह प...