जीवन की सहजता
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जीवन की सहजता जीवन की सहजता खोने न दें। एक बार एक पारिवारिक कार्यक्रम चल रहा था, जिसमें बहुत से लोग उपस्थित थे। वहाँ बासमती चावल का पुलाव बन रहा था और सभी को पुलाव का बेसब्री से इंतजार था। भूख भी काफी जोर से लगी थी। आखिरकार पुलाव परोसा गया। जैसे ही लोग खाना शुरू करने वाले थे, रसोइये ने आकर कहा, “पुलाव को संभलकर खाइएगा क्योंकि हो सकता है कि इसमें शायद एक आध कंकड़ रह गया हो। मैंने वैसे तो सारे कंकड़ निकाल दिए हैं।“ यह सुनकर सभी सावधानी से खाना खाने लगे। हर किसी को लगने लगा कि कंकड़ शायद उसी के मुँह में आएगा। यह सोचते-सोचते, पुलाव का सारा मजा किरकिरा हो गया। लोग चुपचाप, बिना किसी हंसी मजाक के, खाना खाने लगे। खाना खत्म होने के बाद सबने रसोइये से पूछा, “तुमने ऐसा क्यों कहा, जबकि किसी के भी मुँह में कंकड़ नहीं आया?“ रसोइये ने जवाब दिया, “मैंने अच्छी तरह चावल बिने थे, लेकिन चावल में कंकड़ ज्यादा थे, इसलिए मुझे लगा कि शायद एक दो कंकड़ बच गए हों।“ यह सुनकर सभी ने एक-दूसरे की ओर देखा। पुलाव स्वादिष्ट था, लेकिन कंकड़ की चिंता ने इतने स्वादिष्ट पुलाव का सारा आनंद छीन लिया। यही हमा...