मैल और धूल

  मैल और धूल                 

एक सेठ नदी पर आत्महत्या करने जा रहा था। संयोग से एक लंगोटीधारी संत भी वहाँ थे। संत ने उसे रोक कर कारण पूछा, तो सेठ ने बताया कि उसे व्यापार में बहुत बड़ी हानि हो गई है।

संत ने मुस्कुराते हुए कहा - बस इतनी सी बात है? चलो मेरे साथ। मैं अपने तपोबल से लक्ष्मी जी को तुम्हारे सामने बुला दूंगा। फिर उनसे जो चाहे माँग लेना।

सेठ उनके साथ चल पड़ा। कुटिया में पहुँच कर संत ने लक्ष्मी जी को साक्षात् प्रकट कर दिया।

वे इतनी सुंदर, इतनी सुंदर थीं कि सेठ अवाक् रह गया और धन माँगना भूल गया। देखते देखते सेठ की दृष्टि उनके चरणों पर पड़ी। उनके चरण मैल से सने थे।

सेठ ने हैरानी से पूछा- माँ! आपके चरणों में यह मैल कैसी?

माँ - पुत्र! जो लोग भगवान को नहीं चाहते, मुझे ही चाहते हैं, वे पापी मेरे चरणों में अपना पाप से भरा माथा रगड़ते हैं। उनके माथे की मैल मेरे चरणों पर चढ़ जाती है।

ऐसा कहकर लक्ष्मी जी अंतर्ध्यान हो गईं। अब सेठ धन न माँगने की अपनी भूल पर पछताया, और संत चरणों में गिर कर, एक बार फिर उन्हें बुलाने का आग्रह करने लगा।

संत ने लक्ष्मी जी को पुनः बुला दिया। इस बार लक्ष्मी जी के चरण तो चमक रहे थे, पर माथे पर धूल लगी थी।

पुनः अवाक् होकर सेठ धन माँगना भूल कर पूछने लगा- माँ! आपके माथे पर मैल कैसे लग गई?

लक्ष्मी ने कहा- पुत्र! यह मैल नहीं है, यह तो प्रसाद है। जो लोग भगवान को ही चाहते हैं, उनसे मुझे अर्थात् लक्ष्मी को नहीं चाहते, उन भक्तों के चरणों में मैं अपना माथा रगड़ती हूँ। उनके चरणों की धूल से मेरा माथा पवित्र हो जाता है।

लक्ष्मी जी ऐसा कहकर पुनः अंतर्ध्यान हो गईं। सेठ रोते हुए संत चरणों में गिर गया।

संत ने मुस्कुराते हुए कहा- रोओ मत। मैं उन्हें फिर से बुला देता हूँ।

सेठ ने रोते-रोते कहा - नहीं स्वामी जी, वह बात नहीं है। आपने मुझ पर बहुत कृपा की। मुझे जीवन का सबसे बड़ा पाठ मिल गया। अब मैं धन नहीं चाहता। अब तो मैं अपने बचे हुए जीवन में भगवान का ही भजन करूंगा और सुख-शान्ति की शाश्वत लक्ष्मी को प्राप्त करूँगा।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏


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