वाणी हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है
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वाणी बने वीणा (2)
वाणी हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है
वाणी हमारे व्यक्तित्व का सशक्त आईना है। हमारी चाल-ढाल और वेश-भूषा के साथ-साथ मधुर वाणी का भी हमारे व्यक्तित्व पर विशेष प्रभाव पड़ता है। यूँ तो कौआ और कोयल दोनों ही काले होते हैं, पर जैसे ही वे बोलने के लिए मुँह खोलते हैं तो उनकी वास्तविकता सबके सामने आ जाती है। कोयल सबकी प्रिय बन जाती है और कौए को देखते ही सब दूर भगाने लगते हैं।
काकः कृष्णः पिकः कृष्णः, कः भेदः पिक काकयो,
वसन्त समये तात, काकः काकः पिकः पिकः।
अतः हम कोयल की तरह सबके सम्मान का पात्र बनें न कि कौए की तरह सब ओर से दुत्कारे जाएं।
रहीम जी ने तो कड़वे मुख वाले के लिए दंड का भी प्रावधान किया है।
खीरा सिर ते काटिए, मलियत नमक लगाय,
रहिमन कड़वे मुखन को, चहियत यही सजाय।
क्या हम स्वयं को सजा के योग्य बनाना चाहते हैं या इनाम के योग्य? यह फैसला हमें स्वयं ही करना है।
अब प्रश्न यह भी उठता है कि चाहते तो हम भी हैं कि मीठा बोलें पर जब पानी सिर से ऊपर आ जाता है तो सहनशक्ति समाप्त हो जाती है और कटु वचन बोलने ही पड़ते हैं। इस परिस्थिति से बचने का उत्तम साधन है - मौन।
क्योंकि मधुर वचन हम बोल नहीं पा रहे और कटु वचन हम बोलना नहीं चाहते। हमें महीने में एक बार और ऐसा संभव न हो तो 3-4 महीने में एक बार 24 घंटे का मौन व्रत का अभ्यास करना चाहिए। एक साथ न रख सकें तो 6-6 घंटे का 4 बार मौन धारण कर सकते हैं। ऐसा भी असंभव लगे तो प्रतिदिन एक निश्चित समय पर 1 घंटे के मौन व्रत के अभ्यास से हमारी सहनशक्ति मज़बूत हो जाएगी और हम स्वयं को Neutral Zone में रख पाएंगे।
हमारा उद्देश्य होना चाहिए कि बुराई को भी भलाई में बदल कर उसे सही सबक सिखाया जाए।
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बनने के बाद एक बार नेल्सन मंडेला अपने सुरक्षा कर्मियों के साथ एक रेस्तरां में खाना खाने गए। सबने अपनी-अपनी पसंद का खाना आर्डर किया और खाना आने का इंतजार करने लगे।
उसी समय मंडेला की सीट के सामने वाली सीट पर एक व्यक्ति अपने खाने का इंतजार कर रहा था। मंडेला ने अपने सुरक्षा कर्मी से कहा कि उसे भी अपनी टेबल पर बुला लो। ऐसा ही हुआ। खाना आने के बाद सभी खाने लगे, वो आदमी भी अपना खाना खाने लगा, पर उसके हाथ खाते हुए कांप रहे थे।
खाना खत्म कर वो आदमी सिर झुका कर रेस्तरां से बाहर निकल गया। उस आदमी के जाने के बाद मंडेला के सुरक्षा अधिकारी ने मंडेला से कहा कि वो व्यक्ति शायद बहुत बीमार था क्योंकि खाते वक्त उसके हाथ लगातार कांप रहे थे और वह ख़ुद भी कांप रहा था।
मंडेला ने कहा - नहीं, ऐसा नहीं है। वह उस जेल का जेलर था, जिसमें मुझे कैद रखा गया था। जब कभी मुझे यातनाएं दी जाती थीं और मैं कराहते हुए पानी मांगता था तो ये मेरे घावों पर मूत्र-विसर्जन करता था।
मंडेला ने कहा - मैं अब राष्ट्रपति बन गया हूं तो उसने समझा कि मैं भी उसके साथ शायद वैसा ही व्यवहार करूंगा। पर मेरा चरित्र ऐसा नहीं है। मुझे लगता है बदले की भावना से काम करना विनाश की ओर ले जाता है। वहीं धैर्य और सहिष्णुता की मानसिकता हमें विकास की ओर ले जाती है।
अतः अपने जीवन की धारा को अमृत की ओर मोड़ो, फिर देखो कैसे जीवन में अमृत की वर्षा होने लगती है। विज्ञान कहता है कि जीभ पर होने वाला घाव बहुत जल्दी ठीक हो जाता है पर जीभ से होने वाला घाव कभी ठीक नहीं हो सकता। उस कड़वी बात की याद आते ही मन में टीस उठने लगती है।
इसलिए यदि हम स्वयं प्रसन्न रहना चाहते हैं और सबको प्रसन्न देखना चाहते हैं तो हमें ऐसे वचन नहीं बोलने चाहिए जिससे स्वयं को या दूसरे को संताप उत्पन्न हो।
वाणी को वीणा बना,
दे जग को संगीत,
बाण बना कर मत सता,
मीठे मुख, जग जीत।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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