वाणी बने न बाण

👼👼👼👼👼👼👼👼👼👼

वाणी बने वीणा (6)

वाणी बने न बाण

हमारी वाणी जब व्यंग्योक्ति में बदल जाती है, तब वह बाण की तरह सुनने वाले के मन को क्षत-विक्षत कर डालती है। कहते हैं कि कमान से छूटा हुआ तीर और मुख से निकला हुआ बोल कभी वापिस नहीं आता। तीर से हुआ घाव तो फिर भी ठीक हो सकता है, पर वचनों से होने वाले घाव कभी नहीं भरते।

द्रोपदी द्वारा की गई एक व्यंग्योक्ति ने 18 दिन तक चलने वाला महाभारत का युद्ध करवा दिया और हमारे आप के घरों में तो व्यंग्योक्ति के कारण न समाप्त होने वाली महाभारत हर रोज होती है। शायद हमने इस शीतयुद्ध के परिणाम पर कभी ध्यान ही नहीं दिया।

कबीर दास जी कहते हैं -

मधुर वचन है औषधि, कटु वचन है तीर,

श्रवण द्वार ह्वै संचरे, साले सकल शरीर।

हमारे द्वारा बोले गए मधुर वचन दूसरे के तन-मन के घावों पर औषधि का काम करते हैं और कटु वचन ऐसे बाण हैं जो कान के द्वार से शरीर में प्रवेश करते हैं और दूसरे के तन-मन को घायल कर देते हैं। कटु वचन पीड़ा देने के अलावा कुछ नहीं दे सकते। 

आपने देखा होगा कि यदि हम शांत झील में एक कंकर डाल दें तो वलय दर वलय पानी घूमने लग जाता है। उसे फिर से शांत होने में काफी समय लग जाता है।

वातावरण को शांत बनाए रखने के लिए हमें अपने कटु स्वभाव को विनोदी स्वभाव में बदलने का प्रयत्न करना चाहिए।

हमारे वचनों से सामने वाले का हृदय खिले, छिले नहीं। अपने घर में, ऑफिस में, दुकान पर कटुक्ति, व्यंग्योक्ति व अपशब्दों के प्रयोग से बचो। ये सब वैचारिक दरिद्रता के द्योतक हैं। एक अच्छे विचारों से सम्पन्न व्यक्ति ही मीठे और शालीन वचनों का प्रयोग कर सकता है।

एक बार दो दोस्त मोहन और सोहन रेगिस्तानी इलाके से गुज़र रहे थे। किसी बात पर दोनों में बहस छिड़ गई और मोहन ने सोहन को तमाचा मार दिया। सोहन सीधा ज़मीन पर बैठ गया और बालू पर लिखने लगा - ‘आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त मोहन ने मुझे तमाचा मारा।’ मोहन ने इसे पढ़ा, पर वह कुछ नहीं बोला। वे दोनों आगे चलने लगे। दो दिन के बाद दोनों दोस्त एक तालाब में नहाने के लिए उतरे, अचानक सोहन का पाँव फिसल गया। मोहन ने दूसरे को डूबते देखा तो अपनी जान की परवाह न करते हुए वह पानी में कूद गया और उसे बचा लिया। सोहन ने पत्थर पर खोद कर लिखा - ‘आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त मोहन ने मेरी जान बचाई।’

मोहन को यह बालू और पत्थर पर लिखने का अन्तर समझ नहीं आया। उसके पूछने पर सोहन ने बताया कि अच्छे दोस्त की ग़लती को बालू पर लिखी पंक्ति की तरह जल्द ही मन से मिटा देना चाहिए और उसके अच्छे काम को पत्थर की लकीर की तरह सदा याद रखना चाहिए।      

कच्चे, कड़वे और खट्टे फल कोई नहीं खाना चाहता। सभी पके और मीठे फल ही खाना पसंद करते हैं। क्या हमारे शब्दकोश में शब्दों की कमी है? नहीं न! तो अपनी वाणी में ऐसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए जिन्हें सुन कर सामने वाला हमारे प्रेमपाश में बंध जाए न कि द्वन्द्व में फंस जाए।

--

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏


विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

अगली यात्रा - प्रेरक प्रसंग

Y for Yourself

आज की मंथरा

आज का जीवन -मंत्र

वाणी हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है

बुजुर्गों की सेवा की जीते जी

स्त्री के अपमान का दंड

आपस की फूट, जगत की लूट

मीठी वाणी - सुखी जीवन का आधार