Quarrel नहीं, Quality बढ़ाओ

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दुःख को सुख में बदलने की कला

Quarrel नहीं, Quality बढ़ाओ

Image by Evgeni Tcherkasski from Pixabay

दो बच्चे रोज़ Alphabet के प्रवचन सुनते थे। उन्हें मालूम था कि आज Q के बारे में बताएंगे। एक ने कहा कि आज के प्रवचन का मुख्य बिन्दु होगा - Quality, दूसरे बच्चे ने कहा कि नहीं, शायद आज Qualification ही प्रवचन का मुख्य बिन्दु होगा। बस! दोनों में इस छोटी-सी बात पर झगड़ा शुरू हो गया। 

अतः आज का मुख्य बिन्दु है - Quarrel

दुनिया में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जिसका कभी किसी के साथ झगड़ा न हुआ हो। माता-पिता में, भाई-बहिन में, सास-बहू में, आस-पड़ोस में या व्यापारी-ग्राहक में अक्सर झगड़ा होता रहता है। मानव की प्रकृति ही ऐसी बन गई है। पहले झगड़ा, फिर रगड़ा।

आखिर क्यों?

जब हम किसी के द्वारा किए हुए काम को या किसी की कही हुई बात को Ignore कर देते हैं तो मन में झगड़े का बीज ही नहीं पनपता और पकड़ कर बैठ जाते हैं तो मन में द्वन्द्व आरम्भ हो जाता है।

मान लो किसी ने आपको ‘गधा’ कह दिया। यों तो गधे को मूर्ख का प्रतिनिधि माना गया है, पर ग का अर्थ है - ग़लत और धा का अर्थ है - धारणा अर्थात् जो ग़लत धारणा रखता है, वह ‘गधा’ के समान है। सबके सामने ग़लत धारणा वाला कह दिया तो फिर भी इतनी Insult नहीं होती। लेकिन ‘गधा’ कह दिया तो उसके प्रति नकारात्मक Image बन कर हमारे Mind में Save हो जाती है और बेसिर-पैर के झगड़े शुरू हो जाते हैं।

1. झगड़े का पहला मूल कारण है - रुचि-भेद या चिंतन-भेद

अलग-अलग रुचि वाले लोग अपनी इच्छा के अनुसार जीना चाहते हैं। इसमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन जब वे आपको अपनी इच्छा के अनुसार चलाना चाहते हैं तो झगड़े होने लगते हैं। सास पुराने आदर्शों पर चलने वाली है और बहू आधुनिक विचारधारा वाली। सास की दृष्टि में बहू निर्लज्ज है और बहू की नज़रों में सास Orthodox. उन दोनों का व्यवहार कभी सौहार्दपूर्ण नहीं हो सकता। वह हमेशा विवादपूर्ण ही होगा।

कोई अपनी Life में Interference नहीं चाहता, बस! मर्यादा का हनन नहीं होना चाहिए। जीवन Quarrel से नहीं Compromise से चलता है।

'मुण्डे मुण्डे मतिर् भिन्ना।’

हर मनुष्य का सोचने का ढंग अलग होता है। अगर राज़ी-राज़ी नहीं रहे तो एक दूसरे से नाराज़ी अवश्य हो जाएगी। छोटी-छोटी बातों पर बड़ा बवाल मचाने से बड़े-बड़े काम छूट जाते हैं।

तुलसी इस संसार में भांति-भांति के लोग,

सबसे हिल-मिल चालिए, नदी-नाव संयोग।।

2. झगड़े का दूसरा मूल कारण है - अहम् या Ego

प्रायः इन बातों पर झगड़ा होता है कि यह काम मुझ से पूछ कर क्यों नहीं किया या मुझे पहले क्यों नहीं बताया?

एक भिखारी एक घर के द्वार पर खड़ा होकर भीख मांग रहा था। बहू उसकी आवाज़ सुन कर बाहर आई और बोली कि बाबा! आगे जाओ। अभी हमारे पास देने के लिए भोजन नहीं बना है। वह आगे चला गया। 

पीछे से सास ने पूछा कि कौन आया है?

बहू ने कहा कि कोई नहीं। एक भिखारी था। मैंने उसे आगे जाने को कह दिया है।

सास आग-बबूला हो गई। ऐसे कैसे आगे जाने को कह दिया? अभी तो मैं बैठी हूँ घर में!

सास ने भिखारी को आवाज़ देकर बुलाया तो भिखारी के मन में आस जगी कि शायद मां जी से मुझे कुछ मिल जाएगा। वह लौट कर आया तो सास ने कहा कि जाओ, बाबा! आगे जाओ। अभी हमारे पास देने के लिए कुछ नहीं है।

भिखारी ने कहा कि मां जी! मैं तो आगे ही जा रहा था। फिर आपने कुछ देना ही नहीं था तो आवाज़ देकर बुलाया क्यों?

सास ने कहा कि मेरे होते हुए बहू कौन होती है मना करने वाली? मना करना होगा तो मैं ही करूँगी न!

3. झगड़े का तीसरा मूल कारण है - आग्रह अर्थात् अड़ जाना

मैंने जो कहा है, वही होगा। जो अड़ेगा, वह लड़ेगा और आफ़त में पड़ेगा भी और डालेगा भी। Obstinacy की Nature नहीं, Adjustment का स्वभाव बनाओ। बिना बात आफ़त में पड़ना क्यों?

एक ट्रेन में दो व्यक्ति एक खिड़की को लेकर आपस में झगड़ा कर रहे थे। एक उठकर खिड़की बंद कर रहा था और दूसरा उठकर खोल रहा था। 

क्यों? मुझे गर्मी लगती है, मैं तो खोलकर बैठूंगा।

नहीं! मुझे ठंड लगती है, मैं तो बंद करके बैठूंगा।

अन्य यात्री भी परेशान हो गए। जब T.T. आया तो उन्होंने शिकायत की कि न तो खुद आराम से सफ़र कर रहे हैं और न हमें करने देते हैं। तभी T.T. की नज़र उस खिड़की पर पड़ी और वह हंसने लगा। सबने पूछा कि क्या हुआ? तो वह बोला कि तुम लोग झगड़े में इतने मशगूल हो गए कि यह भी नहीं देख पाए, इस खिड़की में काँच ही नहीं है। वास्तव में आदमी क्रोध में अंधा हो जाता है, ऐसा सुना तो बहुत बार था, पर देखा आज पहली बार है।

बात का बतंगड़ बनाने वाली बातों से बाहर आओ। दुराग्रही बनने से बचो और जीवन में समरसता लाओ।

एक बस में बहुत से लड़के-लड़कियां रोज़ चढ़ते थे और Ticket भी लेते थे, पर एक दबंग लड़का कभी Ticket नहीं लेता था। साथ में Conductor से ज़बान भी लड़ाता था कि नहीं लेता मैं Ticket! बोल क्या कर लेगा मेरा?

Bus Conductor इतना हट्टा-कट्टा नहीं था जो उससे मुकाबला करता। पर उसने Gym जाकर अपनी Body बनानी शुरू कर दी कि एक दिन तो इसको सबक सिखा कर ही छोड़ूँगा। 6 महीने बाद उसमें इतनी ताकत आ गई, Muscles बन गए कि वह उस लड़के पर रोब गाँठ सके।

एक दिन जब वह लड़का बस में चढ़ने लगा तो Conductor ने उसे नीचे ही रोक लिया कि Ticket लेगा, तभी ऊपर चढ़ने दूँगा। 

लड़का बोला कि तू क्या कर लेगा मेरा? मैं रोज़ इसी तरह बस में जाता हूँ। 

जब Conductor नहीं माना तो वह बोला कि मैं क्यों लूँ Ticket? जब मैंने Bus का Pass बनवा रखा है तो!

अपनी बात को पहले ही Clear कर देता तो यह नौबत ही नहीं आती।

4. झगड़े का चौथा मूल कारण है - स्वार्थ-भावना

अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए दूसरे के प्रति ईर्ष्या, विद्वेष और घृणा की भावना बढ़ती है। सभी झगड़ों के इतिहास में स्वार्थपरता ही मुख्य कारण होती है।

कारण के साथ हर समस्या का निवारण भी होता है।

1. झगड़े से बचने के लिए पहला उपाय है - समग्रता का चिंतन

मनमुटाव हो भी जाए तो केवल एक पक्षीय चिंतन न करो। Office से घर आते ही माँ पत्नी की शिकायतें करने लगती है और पत्नी माँ की बुराइयां शुरू कर देती है। पति जाए तो जाए कहाँ? धैर्य से काम लो। कई लोगों की तो AK-47 हर समय Load रहती है। बस! सुना नहीं कि दूसरे पर Fire.

ठंडे दिमाग़ से दोनों के मन की बात सुनो और बीच का रास्ता निकालो। माँ तुम्हें 25-30 साल से पाल रही है और पत्नी केवल तुम्हारे विश्वास पर अपने माता-पिता को छोड़कर तुम्हारा घर बसाने आई है। 

ये आपस के झगड़े असमग्र चिंतन के कारण ही होते हैं।

इसका उपाय यह है कि तुम अपने घर को Judge बन कर नहीं उसका अंग बन कर चलाओ। Judge की Judgement एक के घर में उजाला करती है और Adjustment से दोनों पक्षों में सुलह होती है, कलह नहीं।  

Decision नहीं, Detection (परीक्षण) करो।

2. सकारात्मक सोच - हर समस्या का Negative पक्ष नहीं, Positive पक्ष देखें

एक किरयाने की दुकान चलाने वाला युवक बहुत सुलझे हुए विचारों का और मधुरभाषी था। एक दिन उसकी दुकान पर एक व्यक्ति आया और बोला कि यह 5 किलो पीली शक्कर वापिस ले लो और इसके बदले सफेद चीनी दे दो।

दुकान के नौकर ने कहा कि यह हमारी दुकान की नहीं है। हम तो पीली शक्कर बेचते ही नहीं। मैं वापिस नहीं लूंगा।

वह व्यक्ति अड़ गया और अनाप-शनाप बोलने लगा। 

उस युवक के कानों में भी बात सुनाई दी। उसने नौकर को बुलाकर कहा कि कोई बात नहीं। तुम इसके बदले 5 किलो सफेद चीनी दे दो।

लेकिन मालिक......।

नहीं! जैसे यह कहता है, तुम वैसा ही करो।

बाद में उसने नौकर को समझाया कि मैं जानता हूँ, वह झूठ बोल रहा था या यह हमारी दुकान से गई है या नहीं, इस बारे में Sure नहीं था। लेकिन यह पीली शक्कर तो मात्र 200 रुपए की है और यह अपनी दुकान से हर महीने 15-20 हज़ार का सामान लेकर जाता है। हम अपना Customer नहीं खोना चाहते इसलिए हमने ऐसा कदम उठाया है।

केवल सकारात्मक सोच होने के कारण ग़लती न होने पर भी स्वीकार कर लिया और बड़े झगड़े से स्वयं को बचा लिया।

3. विनोद प्रिय बनो

पति-पत्नी में झगड़ा हो गया। पत्नी बोली कि मैं तो मायके जा रही हूँ। पति ने कहा कि चलो! ठीक है। इस बहाने छोटा पप्पू भी नाना के घर हो आएगा और मैं भी 5 दिन अपनी ससुराल का आनन्द ले लूंगा।

क्यों? आप वहाँ अपनी ससुराल में कैसे रह सकते हो? 

क्यों नहीं रह सकता? तुम 5 साल से अपनी ससुराल में रह रही हो तो क्या मैं 5 दिन भी नहीं रह सकता?

4. मौन रहो

मौनेन कलहो न अस्ति।

मौन रह कर भी झगड़ा सुलझ सकता है। सुलझेगा या नहीं, पर और अधिक उलझने से तो बच ही जाएगा। एक बाबा ने झगड़े के समय मुंह में ताबीज दबाकर बैठने के लिए बोला तो बात का बतंगड़ नहीं बना और जीवन फिर शांति से बीतने लगा। यह कहानी आप सब जानते ही हैं।

इसलिए Quarrel नहीं, Quiet रहो और Life की Quality को Maintain रखो।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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