क्या करें, क्या न करें?
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क्या करें, क्या न करें?
Image by Susanne Jutzeler, suju-foto from Pixabay
एक व्यक्ति ने अपनी कंपनी में नए C.E.O. को नियुक्त किया। प्रत्येक अधिकारी का काम करने का अपना अलग ढंग होता है। नव-नियुक्त अधिकारी ने आते ही सबसे पहले कर्मचारियों की Meeting बुलाई। सभी उनसे मिलने व उनका स्वभाव जानने के लिए बहुत उत्सुक थे।
सबका परिचय लेने के बाद अधिकारी ने कहा कि मैं तुमसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ। आप मुझे यह बताओ कि वे कौन से तरीके हैं जिनसे कंपनी को डुबोया जा सकता है।
अरे! यह क्या पूछ रहे हैं ये साहब। ये कंपनी को बढ़ाने आए हैं या डुबोने।
सब मौन हो कर बैठ गए। अधिकारी ने कहा कि मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूँ। डरने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हारी सर्विस को कोई नुकसान नहीं होगा। बस तुम निडर होकर मुझे वे सभी उपाय बता दो।
लोगों का डर कुछ कम हुआ और उनमें से एक ने उठ कर कहा कि साहब! जो कर्मचारी देर से ऑफिस आते हैं, आने के बाद भी अपना अधिकतर समय चाय पीने और गप्पे लगाने में बिता देते हैं वे कंपनी को डुबोने में बहुत सहायक सिद्ध हो सकते हैं क्योंकि उन्हें तो कंपनी द्वारा पूरा वेतन मिलता है पर वे कंपनी को पूरा लाभ नहीं पहुँचाते।
बहुत अच्छा! तुम लोग बोलते जाओ, मैं कागज़ पर नोट करता रहूँगा। सभी निसंकोच होकर अपनी बात कह सकते हो।
बस! फिर तो क्या था। सुझावों की झड़ी लग गई। किसी ने कहा कि बिल अधिक राशि का बनाया जाए और पेमेंट कम की जाए तो भी कंपनी को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ेगा और वह शीघ्र ही रसातल में जा सकती है।
इस प्रकार C.E.O. साहब के पास बहुत से Points इकट्ठे हो गए।
अब बारी आई साहब के बोलने की। वे बोले कि आप सभी ने जो सुझाव दिए हैं, यदि कोई भी कर्मचारी अपने काम के दौरान इन पर अमल करता हुआ पाया गया तो उसे उसी समय काम से निकाल दिया जाएगा। जैसे कोई देर से ऑफिस आया, आकर काम में ध्यान न दिया, बिलों में हेरफेर पाई गई आदि….। केवल 2 बार चेतावनी का नोटिस दिया जाएगा, तीसरी बार इस प्रकार की गलती पाए जाने पर सर्विस से निकाल दिया जाएगा। आपके द्वारा बताई गई लिस्ट को मैं हमेशा अपने हाथ में लेकर ही निरीक्षण करूँगा। आप की सभी कमियां मुझे पता चल चुकी हैं। हाँ, यदि आपके काम के सहयोग से कंपनी को लाभ होता है तो उसका लाभांश भी सबको बोनस के रूप में प्राप्त होगा। आशा है कि आप मेरी बात का आशय समझ गए होंगे।
कहना न होगा कि केवल एक माह बाद ही वह कंपनी शिखर पर पहुँच चुकी थी।
ऐसी ही अवस्था हम सब के घरों की है। हमारे घरों में से सुख, शांति, समृद्धि रसातल की ओर जा रही है। हमें सबसे पहले उन कारणों की सूची बनानी होगी जिनकी वजह से घर रूपी कंपनी डूब सकती है।
जब हम यह निश्चय कर लेंगे कि सबसे समानता के स्तर पर प्रेम व आदर का व्यवहार करेंगे, क्रोध व शिकायतों को अपनी दिनचर्या से बाहर निकाल फेकेंगे तो आप देखेंगे कि एक माह के भीतर ही हमारी कंपनी(घर) दिन दुगुनी, रात चौगुनी तरक्की करने लगेगी और हम सुख, शांति, समृद्धि से मालामाल हो जाएंगे।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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धन्यवाद।
Very very inspiring story,thank you for sgaring
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