धन की धारा

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धन की धारा

Image by S. Hermann & F. Richter from Pixabay

धन आ रहा है, धन जा रहा है।

बह रही धन की, यह शाश्वत धारा है।

धन का अभिमान आदमी को पतन की ओर ले जाता है। यदि उसी धन का सदुपयोग किया जाए तो वह हमें उत्थान की चरम सीमा तक पहुँचा सकता है।

एक व्यक्ति किसी Restaurant में दाखिल हुआ और बोला कि मुझे एक शानदार कमरा बुक कराना है क्योंकि कल मेरे खास मेहमान आने वाले हैं। Restaurant के मालिक ने कहा कि महोदय! आज तो सभी कमरे भरे हुए हैं। हाँ! कल एक कमरा खाली होने वाला है। यदि आप Advance में Booking कराना चाहते हैं तो वह कमरा आप के लिए खाली रखा जा सकता है।

व्यक्ति ने 500 रुपए Advance के रूप में देकर कहा कि ठीक है, यह रखो Advance। मैं कल आऊँगा और यदि मुझे कमरा पसंद आ गया तो लूँगा वरना मेरा Advance मुझे वापिस करना होगा।

मालिक ने उसकी शर्त मंजूर कर ली और उसके 500 रुपए जमा कर लिए।

बैठे-बैठे मालिक को ध्यान में आया कि कल तक तो मेरे पास दूसरे कमरे की भी Payment आ जाएगी। आज मैं इन 500 रुपए से उस घी वाले का उधार चुका देता हूँ जिससे मैंने कल घी मंगवाया था।

उसने तुरन्त अपने नौकर को घी वाले की दुकान पर 500 रुपए दे कर उधार चुकाने के लिए भेज दिया। साथ ही हिदायत भी दी कि खाते में से उधारी वसूल होने की रसीद ले लेना।

घी वाले ने उधारी वसूल होने की रसीद बना कर नौकर को दे दी। अब घी वाला सोचने लगा कि मैंने उस चाय वाले के पैसे चुकाने हैं, जहाँ से रोज़ 2 कप चाय आती है।

घी वाला उन 500 रुपयों से चाय वाले के पैसे चुकाने चल पड़ा।

चाय वाला 500 रुपयों से दूध बेचने वाले का उधार चुका आया, जहाँ से उसकी दुकान में दूध आता था।

दूध बेचने वाले ने चारा बेचने वाले को 500 रुपए दे कर अपना उधार चुका दिया, जो उसकी गाय के लिए चारा भेजता था।

संयोग से वह चारे वाला उसी Restaurant में खाना खाने आता था। उसे भी अपना पिछला बकाया देना था। इसलिए वह Restaurant के मालिक को वे 500 रुपए दे कर अपना उधार चुकता कर गया।

मालिक भी निश्चिन्त हो गया कि कल उस व्यक्ति को 500 रुपए वापिस देने पड़े तो अब कोई दिक्कत नहीं होगी। 

हुआ भी वही। अगले दिन वह व्यक्ति आया। मालिक ने उसे कमरा दिखाया जो अभी खाली हुआ था। कमरे में गंदगी फैली देखकर उस व्यक्ति ने कमरा लेने से मना कर दिया। मालिक ने कहा भी कि अभी साफ करा देते हैं पर वह व्यक्ति बोला कि अब तो मेरे पास इतना समय नहीं है जो मैं सफाई करवाने तक रुक सकूँ। मैंने दूसरे Restaurant में बात की हुई है और वहाँ साफ किया हुआ कमरा मुझे मिल रहा है। आप कृपया मेरा Advance मुझे वापिस कर दें।

आखिर मालिक को उसके 500 रुपए वापिस देने पड़े। यदि समय पर कमरा साफ कर लिया होता तो वह उन 500 रुपयों से 5000 रुपए कमा सकता था।

इस सन्दर्भ को गहराई से देखा जाए तो वह व्यक्ति है ‘परमात्मा’, जिसने हमें सांसों की पूंजी सौंप कर कहा था कि इसके प्रयोग से तुम अपने पुण्य बढ़ाने का व्यापार करो और अपने मन को साफ़ रखते हुए इसमें दिन दुगुनी, रात चौगुनी वृद्धि करो। हमने क्या किया? उस सारी पूंजी को पिछले जन्मों के उधार चुकाने में खर्च कर दी। वृद्धि करने की तो सोची ही नहीं। कहा जाता है न कि इस दुनिया में सब अपना पिछला हिसाब चुकाने के लिए ही सम्बन्धी बन कर आते हैं, वरना कोई किसी का सगा नहीं होता।

जब उसकी सांसों की पूंजी वापिस देने का अर्थात् मृत्यु का समय सामने आ गया तो परमात्मा के सामने गिड़गिड़ाने लगे कि बस! एक घंटे की मोहलत दे दो, अभी सफ़ाई करवा देता हूँ। अपने पाँचों नौकरों को काम पर लगा देता हूँ।

ये पाँचों नौकर हैं हमारी पाँच इन्द्रियां। अभी तक तो ये हमारी मालिक बनी हुईं थी और हम इनके दास।

अभी भी समय है। अभी वह व्यक्ति अपना Advance वापिस लेने नहीं आया है। समय रहते अपनी इन्द्रियों को अपना दास बना लो और अपने मन को साफ़ कर लो ताकि उसके 500 रुपए देने के बाद भी हमारी गाँठ में 4500 रुपए बचे रह सकें और हम गर्व से कह सकें कि दुनिया से कुछ कमा कर जा रहे हैं, खोकर नहीं।


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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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