स्वाभिमान, वात्सल्य और प्रेम
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स्वाभिमान, वात्सल्य और प्रेम
Image by Ulrike Leone from Pixabay
शाम हो चली थी। लगभग साढ़े छह बजे थे। वही Hotel, वही किनारे वाली Table और वही चाय, सिगरेट। वह सिगरेट के एक कश के साथ-साथ चाय की चुस्की ले रहा था। इतने में ही सामने वाली Table पर एक आदमी अपनी नौ-दस साल की लड़की को लेकर बैठ गया। उस आदमी का Shirt फटा हुआ था, ऊपर के दो बटन गायब थे, Pent भी मैली-सी थी। रास्ते पर खुदाई का काम करने वाला मजदूर जैसा लग रहा था।
लड़की का Frock धुला हुआ था और उसने बालों में वेणी भी लगाई हुई थी। उसके चेहरा अत्यंत आनंदित था और वह बड़े कौतूहल से पूरे Hotel को इधर-उधर से देख रही थी। उनके Table के ऊपर ही चल रहे पँखे को भी वह बार-बार देख रही थी, जो उनको ठंडी हवा दे रहा था।
बैठने के लिये गद्दी वाली कुर्सी पर बैठकर वह और भी प्रसन्न दिख रही थी। उसी समय Waiter ने दो स्वच्छ गिलासों में ठंडा पानी उनके सामने रखा। उस आदमी ने अपनी लड़की के लिए एक डोसा लाने का Order दिया।
यह Order सुनकर लड़की के चेहरे की प्रसन्नता और बढ़ गई।
‘और तुमको?’ Waiter ने पूछा।
‘नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिये’, उस आदमी ने कहा।
कुछ ही समय में गर्मा-गर्म बड़ा वाला, फूला हुआ डोसा आ गया, साथ में चटनी-सांभर भी। लड़की डोसा खाने में व्यस्त हो गई और वह उसकी ओर उत्सुकता से देखकर पानी पी रहा था।
इतने में उसका फोन बजा। वही पुराना वाला फोन। उसके मित्र का फोन आया था। वह बता रहा था कि आज उसकी लड़की का जन्मदिन है और वह उसे लेकर Hotel में आया है। वह बता रहा था कि उसने अपनी लड़की को कहा था, यदि वह अपने स्कूल में पहले नंबर पर आएगी तो वह उसे उसके जन्मदिन पर डोसा खिलायेगा और वह अब डोसा खा रही है।
फोन पर थोड़े अन्तराल के बाद वह फिर बोला।
‘नहीं रे, हम दोनों कैसे खा सकते हैं? हमारे पास इतने पैसे कहां हैं? मेरे लिए घर पर बेसन-भात बना हुआ है न!
उसकी बातों को सुनने में व्यस्त रहने के कारण मुझे गर्म चाय का चटका लगा और मैं वास्तविकता में लौटा।
कोई कैसा भी हो, अमीर या गरीब, दोनों ही अपनी बेटी के चेहरे पर मुस्कान देखने के लिये कुछ भी कर सकते हैं।
मैं उठा और Counter पर जाकर अपनी चाय और दो डोसे के पैसे दिये और कहा कि उस आदमी को एक और डोसा दे दो। उसने अगर पैसे के बारे में पूछा तो उसे कहना कि हमने तुम्हारी बातें सुनी। आज तुम्हारी बेटी का जन्मदिन है और वह स्कूल में पहले नंबर पर आई है, इसलिये Hotel की ओर से यह तुम्हारी लड़की के लिये इनाम है। उसे आगे चलकर इससे भी अच्छी पढ़ाई करने को बोलना।
परन्तु भूलकर भी “मुफ्त“ शब्द का उपयोग मत करना। उस पिता के “स्वाभिमान“ को चोट पहुंचेगी।
Hotel Manager मुस्कुराया और बोला कि यह बिटिया और उसके पिता आज हमारे मेहमान हैं, आपका बहुत-बहुत आभार कि आपने हमें इस बात से अवगत कराया। उनकी आवभगत का पूरा जिम्मा आज हमारा है। आप यह पुण्य कार्य और किसी अन्य जरूरतमंद के लिए कीजिएगा।
Waiter ने एक और डोसा उस Table पर रख दिया। मैं बाहर से देख रहा था। उस लड़की का पिता हड़बड़ा गया और बोला कि मैंने एक ही डोसा बोला था।
तब Manager ने कहा कि ‘अरे! तुम्हारी लड़की School में पहले नंबर पर आई है। इसलिए इनाम में आज Hotel की ओर से तुम दोनों को डोसा दिया जा रहा है।
उस पिता की आँखें भर आई और उसने अपनी लड़की को कहा, ‘देखा बेटी! ऐसे ही पढ़ाई करेगी तो देखना, क्या-क्या मिलेगा?’
उस पिता ने Waiter को कहा कि क्या मुझे यह डोसा बांधकर मिल सकता है? यदि मैं इसे घर ले गया तो मैं और मेरी पत्नी दोनों आधा-आधा मिलकर खा लेंगे, उसे ऐसा खाने को नहीं मिलता।
‘जी नहीं श्रीमान! आप अपना दूसरा डोसा यहीं पर खाइए। आपके घर के लिए मैंने 3 डोसे और मिठाइयों का एक Pack अलग से बनवाया है। आज आप घर जाकर अपनी बिटिया का Birthday बड़ी धूमधाम से मनाइए और मिठाईयां इतनी हैं कि आप पूरे मोहल्ले को बांट सकते हो।’
यह सब सुनकर मेरी आँखे खुशी से भर आई। मुझे इस बात पर पूरा विश्वास हो गया कि जहां चाह है, वहां राह है। अच्छे काम के लिए एक कदम आप आगे तो बढ़ाइए, फिर देखिए आगे-आगे होता है क्या!
टिप्पणी : देने से कभी कम नहीं होता, बल्कि कई गुणा बढ़कर मिलता है। इसे कहते हैं “देने का आनन्द“।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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