प्रेम का स्पर्श
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प्रेम का स्पर्श
Image by S. Hermann & F. Richter from Pixabay
टालस्टाय एक दिन सुबह एक गांव की सड़क से निकला। एक भिखारी ने हाथ फैलाया। टालस्टाय ने अपनी जेब तलाशी लेकिन जेब खाली थे। वह सुबह घूमने निकला था और पैसे नहीं थे।
उसने भिखारी को कहा - मित्र! क्षमा करो। मेरे पास पैसे नहीं हैं। तुम ज़रूर दुख मानोगे। लेकिन मैं मजबूरी में पड़ गया हूँ। इस समय मेरे पास पैसे नहीं हैं।
उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा- मित्र! क्षमा करो। पैसे मेरे पास नहीं हैं।
उस भिखारी ने कहा - कोई बात नहीं। तुमने मित्र कहा। मुझे बहुत कुछ मिल गया। You called me brother। तुमने मुझे बंधु कहा और बहुत लोगों ने मुझे अब तक पैसे दिए थे लेकिन तुमने जो दिया है, वह आज तक किसी ने भी नहीं दिया था। मैं बहुत अनुगृहीत हूँ।
एक शब्द प्रेम का ‘मित्र’ उस भिखारी के हृदय में क्या निर्मित कर गया? क्या बन गया? टालस्टाय सोचने लगा। उस भिखारी का चेहरा बदल गया। वह दूसरा आदमी मालूम पड़ा। यह पहला मौका था कि किसी ने उससे कहा था, ‘मित्र’। भिखारी को कौन मित्र कहता है? इस प्रेम के एक शब्द ने उसके भीतर एक क्रांति कर दी। वह दूसरा आदमी बन गया है, सबसे अलग। उसकी हैसियत बदल गयी। उसकी गरिमा बदल गयी। उसका व्यक्तित्व बदल गया। वह दूसरी जगह खड़ा हो गया।
वह पद-चलित एक भिखारी नहीं है। वह भी एक मनुष्य है। उसके भीतर एक नया creation शुरू हो गया। प्रेम के एक छोटे से शब्द ने उसे उसके अस्तित्व का बोध करा दिया!!!
प्रेम का जीवन ही creative जीवन है। प्रेम का जीवन ही सृजनात्मक जीवन है। प्रेम का हाथ जहां भी छू देता है, वहां क्रांति हो जाती है। वहां मिट्टी सोना हो जाती है। प्रेम का हाथ जहां स्पर्श देता है, वहां अमृत की वर्षा शुरू हो जाती है।
सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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