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Showing posts from August, 2021

मनुष्य जीवन की सार्थकता

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मनुष्य जीवन की सार्थकता Image by S. Hermann & F. Richter from Pixabay एक बार श्री गुरु नानक देव जी जगत का उद्धार करते हुए एक गाँव के बाहर पहुँचे और देखा वहाँ एक झोपड़ी बनी हुई थी। उस झोपड़े में एक आदमी रहता था, जिसे कुष्ठ का रोग था। गाँव के सारे लोग उससे नफ़रत करते थे। कोई उसके पास नहीं आता था। कभी किसी को दया आ जाती तो उसे खाने के लिए कुछ दे देते। गुरुजी उस कोढ़ी के पास गए और कहा - भाई! हम आज रात तेरी झोपड़ी में रहना चाहते हैं अगर तुझे कोई परेशानी न हो तो। कोढ़ी हैरान हो गया क्योंकि उसके तो पास में कोई आना नहीं चाहता था। फिर उसके घर में रहने के लिए कोई राजी कैसे हो गया ? कोढ़ी अपने रोग से इतना दुखी था कि चाह कर भी कुछ न बोल सका। सिर्फ गुरुजी को देखता ही रहा। लगातार देखते-देखते ही उसके शरीर में कुछ बदलाव आने लगे। पर कह नहीं पा रहा था। गुरुजी ने मरदाना को कहा - रबाब बजाओ और गुरुजी उस झोपड़ी में बैठ कर कीर्तन करने लगे। कोढ़ी ध्यान से कीर्तन सुनता रहा। कीर्तन समाप्त होने पर कोढ़ी के हाथ जुड़ गए जो ठीक से हिलते भी नहीं थे। उसने गुरुजी के चरणों में अपना माथा टेका। ...

क्या है शांत होने का असली मतलब?

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 क्या है शांत होने का असली मतलब ? Image by StockSnap from Pixabay एक राजा था जिसे चित्रकारिता से बहुत प्यार था। एक बार उसने घोषणा की कि जो कोई भी उसे एक ऐसा चित्र बना कर देगा जो शांति को दर्शाती हो तो वह उसे मुंह माँगा इनाम देगा। फैसले के दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार इनाम जीतने की लालच में अपने-अपने चित्रों को लेकर राजा के महल पहुंचे। राजा ने एक-एक करके सभी चित्रों को देखा और उनमें से दो को अलग रखवा दिया। अब इन्हीं दोनों में से एक को इनाम के लिए चुना जाना था। पहला चित्र एक अति सुन्दर शांत झील का था। उस झील का पानी इतना साफ़ था कि उसके अन्दर की सतह तक नज़र आ रही थी और उसके आस-पास मौजूद हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो। ऊपर की ओर नीला आसमान था जिसमें रूई के गोलों के सामान सफ़ेद बादल तैर रहे थे। जो कोई भी इस चित्र को देखता, उसको यही लगता कि शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छा चित्र हो ही नहीं सकता। दूसरे चित्र में भी पहाड़ थे। पर वे बिल्कुल रूखे, बेजान, वीरान थे और इन पहाड़ों के ऊपर घने गरजते बादल थे जिनमें बिजलियाँ चमक रही थीं। घनघोर वर्षा हो...

सच या झूठ

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सच या झूठ Image by Peggychoucair from Pixabay एक बार बुरी आत्माओं ने भगवान से शिकायत की कि उनके साथ इतना बुरा व्यवहार क्यों किया जाता है। अच्छी आत्माएं इतने शानदार महल में रहती हैं और हम सब खंडहरों में। आखिर ये भेदभाव क्यों है। जबकि हम सब आप ही की संतान हैं। भगवान ने उन्हें समझाया, “मैंने तो सभी को एक जैसा ही बनाया पर तुम ही अपने कर्मों से बुरी आत्माएं बन गयी।” पर भगवान के समझाने पर भी बुरी आत्माएं भेदभाव किये जाने की शिकायत करती रही। इस पर भगवान ने कुछ देर सोचा और सभी अच्छी-बुरी आत्माओं को बुलाया और बोले, “बुरी आत्माओं के अनुरोध पर मैंने एक निर्णय लिया है। आज से तुम लोगों को रहने के लिए मैंने जो भी महल या खंडहर दिए थे, वो सब नष्ट हो जायेंगे और अच्छी और बुरी आत्माएं अपने अपने लिए दो अलग-अलग शहरों का निर्माण करेंगी।” तभी एक आत्मा बोली, “लेकिन इस निर्माण के लिए हमें ईंटें कहाँ से मिलेंगी ? ” “जब पृथ्वी पर कोई इंसान सच या झूठ बोलेगा तो यहाँ पर उसके बदले में ईंटें तैयार हो जाएंगी। सभी ईंटें मजबूती में एक सामान होंगी। अब ये तुम लोगों को तय करना है कि तुम सच बोलने पर बन...

स्वयं का महत्व

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 स्वयं का महत्व Image by Hans Benn from Pixabay प्रसन्नता का गियर हमेशा अपने हाथ में रखें। वैवाहिक जीवन पर आधारित एक लाईफ स्किल सेशन में स्पीकर ने दर्शकों में उपस्थित एक महिला से पूछा, “क्या आपके पति आपको खुश रखते हैं ? ” इस प्रश्न पर उस महिला का पति बहुत ही आश्वस्त था क्योंकि उनका वैवाहिक जीवन काफी सफल था। उसे पता था, उसकी पत्नी क्या बोलेगी क्योंकि पूरी शादी-शुदा जिंदगी में उसकी पत्नी ने कभी भी किसी भी बात के लिए कोई शिकायत नहीं की थी। महिला ने बहुत ही गंभीर आवाज़ में जवाब दिया - “नहीं, मेरे पति मुझे प्रसन्न नहीं रखते।” पति बहुत ही चकित था और वहाँ मौजूद बहुत से दूसरे लोग भी। परन्तु उसकी पत्नी ने बोलना जारी रखा - “मेरे पति ने मुझे कभी खुश नहीं किया और न ही वे कर सकते हैं पर फिर भी मैं खुश हूँ। मैं खुश हूँ या नहीं, यह मेरे पति पर नहीं बल्कि मुझ पर निर्भर है। मैं स्वयं ही एकमात्र व्यक्ति हूँ जिस पर मेरी खुशी निर्भर करती है। मेरी ज़िन्दगी की हर परिस्थिति और हर पल में मैं खुश रहना पसंद करती हूँ, क्योंकि अगर मेरी खुशी किसी दूसरे व्यक्ति, किसी वस्तु या किसी हालात पर निर्भर...

सत्कार

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 सत्कार Image by GLady from Pixabay एक थका-मांदा शिल्पकार लंबी यात्रा के बाद एक छायादार वृक्ष के नीचे विश्राम के लिए बैठ गया। अचानक उसे सामने एक पत्थर का टुकड़ा पड़ा दिखाई दिया। उस शिल्पकार ने उस पत्थर के टुकड़े को उठा लिया, सामने रखा और औजारों के थैले से छेनी-हथौड़ी निकालकर उसे तराशने के लिए जैसे ही पहली चोट की, पत्थर जोर से चिल्ला पड़ा - उफ! मुझे मत मारो। दूसरी बार वो पत्थर रोने लगा - मत मारो मुझे, मत मारो, मत मारो। शिल्पकार ने उस पत्थर को छोड़ दिया और अपनी पसंद का एक अन्य टुकड़ा उठाया और उसे हथौड़ी से तराशने लगा। वो टुकड़ा चुपचाप छेनी-हथौड़ी के वार सहता गया और देखते ही देखते उस पत्थर के टुकड़े में से एक देवी की प्रतिमा उभर आई। उस प्रतिमा को वहीं पेड़ के नीचे रख वो शिल्पकार अपनी राह पकड़ आगे चला गया। कुछ वर्षों बाद उस शिल्पकार को फिर से उसी पुराने रास्ते से गुजरना पड़ा, जहां पिछली बार विश्राम किया था। वो उस स्थान पर पहुंचा तो देखा कि वहां उसी मूर्ति की पूजा-अर्चना हो रही है, जो उसने बनाई थी। भीड़ है, भजन और आरती हो रही है, भक्तों की पंक्तियां लगी हैं और जब उसके दर्शन का समय आया...

अहंकार और मोह

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 अहंकार और मोह Image by Thanks for your Like • donations welcome from Pixabay एक बार एक राजा एक गुरु जी की ख्याति से बहुत प्रभावित हुआ और उसने उन गुरु जी से मिलने हेतु उन्हें बहुमूल्य उपहारों के साथ निमंत्रण भेजा। गुरु ने उस निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया। राजा ने पुनः प्रयास किया - “गुरुदेव। मुझे मेरे महल में आपकी आवभगत करने का अवसर दीजिये। मेरा अनुग्रह स्वीकार करें।” गुरु ने पूछा - “क्यों ? वहाँ क्या तुम मुझे कोई विशेष भेंट दे पाओगे ? ” “गुरुदेव! मेरा पूरा राज्य आपके लिए भेंट है।” “नहीं राजन्! आप मुझे वही वस्तु भेंट में दें, जो वास्तव में आपकी हो।” “गुरु जी! मैं राजा हूँ। यह सारा राज्य मेरा है।” “राजन्! आपके पूर्वजों ने भी खुद का होने का राज्य पर दावा किया होगा। वे कहां हैं ? क्या राज्य उनका रहा ? अपने अतीत के जीवन काल में आपने भी अनेक चीजों को खुद का होने का दावा किया होगा। क्या आप अभी भी उन चीज़ों के मालिक हैं ? यह आपका भ्रम मात्र है। ऐसी भेंट दीजिये जो वास्तव में आपकी हो।” राजा अब सोचने लगा कि धन के अलावा वह गुरु को क्या भेंट करें। “गुरु जी! ऐसा है तो मैं अप...

नज़रिया

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 नज़रिया Image by A_Werdan from Pixabay एक गांव में कुछ मजदूर पत्थर के खंभे बना रहे थे। उधर से एक साधु गुजरे। उन्होंने एक मज़दूर से पूछा - तुम क्या बना रहे हो ? उसने कहा - देखते नहीं, पत्थर काट रहा हूँ ? साधु ने कहा - हाँ! देख तो रहा हूँ। लेकिन यहां बनेगा क्या ? मजदूर झुंझला कर बोला - मालूम नहीं। यहां पत्थर तोड़ते-तोड़ते जान निकल रही है और इनको यह चिंता है कि यहां क्या बनेगा। साधु आगे बढ़े। एक दूसरा मज़दूर मिला। साधु ने पूछा - यहां क्या बनेगा ? मज़दूर बोला - देखिए साधु बाबा। यहाँ कुछ भी बने। चाहे मंदिर बने या जेल। मुझे क्या ? मुझे तो दिन भर की मज़दूरी के रूप में 100 रुपए मिलते हैं। बस शाम को रुपए मिलें और मेरा काम बने। मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि यहां क्या बन रहा है। मुझे तो अपने परिवार का पेट पालना है, बस! साधु आगे बढ़े तो तीसरा मज़दूर मिला जो गुनगुनाते हुए अपना काम कर रहा था। साधु ने उससे पूछा - यहां क्या बनेगा ? मज़दूर ने कहा - मंदिर। इस गांव में कोई बड़ा मंदिर नहीं था न! इस गांव के लोगों को दूसरे गांव में उत्सव मनाने जाना पड़ता था। मैं भी इसी गांव का हूँ। ये सारे मज़दूर इसी...