मनुष्य जीवन की सार्थकता
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मनुष्य जीवन की सार्थकता Image by S. Hermann & F. Richter from Pixabay एक बार श्री गुरु नानक देव जी जगत का उद्धार करते हुए एक गाँव के बाहर पहुँचे और देखा वहाँ एक झोपड़ी बनी हुई थी। उस झोपड़े में एक आदमी रहता था, जिसे कुष्ठ का रोग था। गाँव के सारे लोग उससे नफ़रत करते थे। कोई उसके पास नहीं आता था। कभी किसी को दया आ जाती तो उसे खाने के लिए कुछ दे देते। गुरुजी उस कोढ़ी के पास गए और कहा - भाई! हम आज रात तेरी झोपड़ी में रहना चाहते हैं अगर तुझे कोई परेशानी न हो तो। कोढ़ी हैरान हो गया क्योंकि उसके तो पास में कोई आना नहीं चाहता था। फिर उसके घर में रहने के लिए कोई राजी कैसे हो गया ? कोढ़ी अपने रोग से इतना दुखी था कि चाह कर भी कुछ न बोल सका। सिर्फ गुरुजी को देखता ही रहा। लगातार देखते-देखते ही उसके शरीर में कुछ बदलाव आने लगे। पर कह नहीं पा रहा था। गुरुजी ने मरदाना को कहा - रबाब बजाओ और गुरुजी उस झोपड़ी में बैठ कर कीर्तन करने लगे। कोढ़ी ध्यान से कीर्तन सुनता रहा। कीर्तन समाप्त होने पर कोढ़ी के हाथ जुड़ गए जो ठीक से हिलते भी नहीं थे। उसने गुरुजी के चरणों में अपना माथा टेका। ...