क्या है शांत होने का असली मतलब?
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क्या है शांत होने का असली मतलब?
Image by StockSnap from Pixabay
एक राजा था जिसे चित्रकारिता से बहुत प्यार था। एक बार उसने घोषणा की कि जो कोई भी उसे एक ऐसा चित्र बना कर देगा जो शांति को दर्शाती हो तो वह उसे मुंह माँगा इनाम देगा।
फैसले के दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार इनाम जीतने की लालच में अपने-अपने चित्रों को लेकर राजा के महल पहुंचे। राजा ने एक-एक करके सभी चित्रों को देखा और उनमें से दो को अलग रखवा दिया।
अब इन्हीं दोनों में से एक को इनाम के लिए चुना जाना था।
पहला चित्र एक अति सुन्दर शांत झील का था। उस झील का पानी इतना साफ़ था कि उसके अन्दर की सतह तक नज़र आ रही थी और उसके आस-पास मौजूद हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो। ऊपर की ओर नीला आसमान था जिसमें रूई के गोलों के सामान सफ़ेद बादल तैर रहे थे।
जो कोई भी इस चित्र को देखता, उसको यही लगता कि शांति को दर्शाने के लिए इससे अच्छा चित्र हो ही नहीं सकता।
दूसरे चित्र में भी पहाड़ थे। पर वे बिल्कुल रूखे, बेजान, वीरान थे और इन पहाड़ों के ऊपर घने गरजते बादल थे जिनमें बिजलियाँ चमक रही थीं। घनघोर वर्षा होने से नदी उफान पर थी। तेज़ हवाओं से पेड़ हिल रहे थे और पहाड़ी के एक ओर स्थित झरने ने रौद्र रूप धारण कर रखा था।
जो कोई भी इस चित्र को देखता यही सोचता कि भला इसका “शांति” से क्या लेना देना? इसमें तो बस अशांति ही अशांति है।
सभी आश्वस्त थे कि पहले चित्र बनाने वाले चित्रकार को ही इनाम मिलेगा। तभी राजा अपने सिंहासन से उठे और ऐलान किया कि दूसरा चित्र बनाने वाले चित्रकार को वह मुंह माँगा इनाम देंगे।
हर कोई आश्चर्य में था!
पहले चित्रकार से रहा नहीं गया। वह बोला, “लेकिन महाराज! उस चित्र में ऐसा क्या है जो आपने उसे इनाम देने का फैसला लिया, जबकि हर कोई यही कह रहा है कि मेरा चित्र ही शांति को दर्शाने के लिए सर्वश्रेष्ठ है!”
“आओ मेरे साथ।” राजा ने पहले चित्रकार को अपने साथ चलने के लिए कहा।
दूसरे चित्र के समक्ष पहुँच कर राजा बोले, “झरने के बायीं ओर हवा से एक तरफ़ झुके इस वृक्ष को देखो। देखो! इसकी डाली पर बने इस घोसले को देखो। देखो, कैसे एक चिड़िया इतनी कोमलता से, इतने शांत भाव व प्रेम से पूर्ण होकर अपने बच्चों को भोजन करा रही है।” फिर राजा ने वहां उपस्थित सभी लोगों को समझाया - “शांत होने का मतलब ये नहीं है कि आप ऐसे स्थिति में हों जहाँ कोई शोर नहीं हो, कोई समस्या नहीं हो, जहाँ कड़ी मेहनत नहीं हो, जहाँ आपकी परीक्षा नहीं हो। शांत होने का सही अर्थ है कि आप हर तरह की अव्यवस्था, अशांति, अराजकता के बीच हों और फिर भी आप शांत रहें। अपने काम पर केन्द्रित रहें, अपने लक्ष्य की और अग्रसर रहें।”
अब सभी समझ चुके थे कि दूसरे चित्र को राजा ने क्यों चुना है।
मित्रों! हर कोई अपने जीवन में जगह चाहता है। पर अक्सर हम “शांति” को कोई बाहरी वस्तु समझ लेते हैं और उसे दूरवर्ती स्थानों और विस्तारित छुट्टियों में ढूंढते हैं। जबकि शांति पूरी तरह से हमारे अन्दर की चीज़ है और सत्य यही है कि तमाम दुःख-दर्दों, तकलीफ़ों और दिक्कतों के बीच भी शांत रहना ही असल में शांत होना है।
जय सियाराम।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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