मेरे पति मेरे देवता (भाग - 56)
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 56 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) नन्हें मियां की माँ आरम्भ में महीने में एक बार मिलाई का हुक्म हुआ, पर बाद में वह हफ्तेवारी का हो गया। हम हर हफ्ते जाने लगी। नैनी आने-जाने में एक-डेढ़ रुपए खर्च होते थे और इस खर्चे की पूर्ति हम पेट काट कर करती थी। कभी-कभी तो ऐसी भी स्थिति आ जाती थी कि 2-2 दिनों तक बच्चों को केवल भौरी खा कर पेट भरना होता था। एक बार ऐसा हुआ कि हमारे बच्चों के साथ खेलने के लिए मियां साहब की लड़की आया करती थी। हमें सवेरे और शाम दोनों जून भौरी बनाते देख कर आश्चर्य से पूछ बैठी - ‘बड़की अम्मा! (वह हमें इसी तरह सम्बोधित करती थी) आपको भौरी बहुत अच्छी लगती है क्या ? जब देखती हूँ, तब आप यही बनाती रहती हैं।’ हमारे पास ‘हां’ के अतिरिक्त और क्या उत्तर हो सकता था। लेकिन बात यहीं समाप्त नहीं हुई। उसने घर में जाकर अपनी दादी अम्मा से भी बताया कि बड़की अम्मा के यहां दोनों वक्त भौरी ही खाई जाती है। उन लोगों को भौरी बहुत पसंद है। शाम को न...