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Showing posts from January, 2022

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 56)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 56 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) नन्हें मियां की माँ आरम्भ में महीने में एक बार मिलाई का हुक्म हुआ, पर बाद में वह हफ्तेवारी का हो गया। हम हर हफ्ते जाने लगी। नैनी आने-जाने में एक-डेढ़ रुपए खर्च होते थे और इस खर्चे की पूर्ति हम पेट काट कर करती थी। कभी-कभी तो ऐसी भी स्थिति आ जाती थी कि 2-2 दिनों तक बच्चों को केवल भौरी खा कर पेट भरना होता था। एक बार ऐसा हुआ कि हमारे बच्चों के साथ खेलने के लिए मियां साहब की लड़की आया करती थी। हमें सवेरे और शाम दोनों जून भौरी बनाते देख कर आश्चर्य से पूछ बैठी - ‘बड़की अम्मा! (वह हमें इसी तरह सम्बोधित करती थी) आपको भौरी बहुत अच्छी लगती है क्या ? जब देखती हूँ, तब आप यही बनाती रहती हैं।’ हमारे पास ‘हां’ के अतिरिक्त और क्या उत्तर हो सकता था। लेकिन बात यहीं समाप्त नहीं हुई। उसने घर में जाकर अपनी दादी अम्मा से भी बताया कि बड़की अम्मा के यहां दोनों वक्त भौरी ही खाई जाती है। उन लोगों को भौरी बहुत पसंद है। शाम को न...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 55)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 55 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) वज़न बढ़ाने का उपाय हमारी तबीयत सुधर तो रही थी, पर जिस हिसाब से सुधरनी चाहिए थी, उस तरह नहीं। शास्त्री जी हर चिट्ठी में हाल पूछते - ‘बुख़ार है कि नहीं और है तो कितना है! कितना घटा है और कितना बढ़ा है! खांसी आती है या नहीं।’ महीना समाप्त होने पर वज़न पूछते और उसे पिछले महीने के वज़न से मिला कर हमारी तन्दुरुस्ती की घटती-बढ़ती का अन्दाज़ लगाते। उन्हें इतने से संतोष नहीं होता था। बीच-बीच में पूर्णिमा जी से भी जानकारी कर लिया करते थे, क्योंकि वे समझते थे कि तबीयत ठीक न होने पर भी हम उन्हें ठीक लिख सकती थी। हमारी बीमारी को लेकर जिस तरह वे चिन्तित रहने लगे थे, उससे हमारी उलझन बढ़ गई थी। हम उन्हें सारी चिन्ताओं से बरी रख कर प्रसन्नचित्त रखना चाहती थी, लेकिन हो रहा था एकदम उसके उलट। बुख़ार व खांसी तो वैसे भी ख़त्म हो गई थी, पर जहाँ तक वज़न का सवाल था, वह नहीं बढ़ पा रहा था और वज़न न बढ़ने का मतलब था - रोग़ से छ...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 54)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 54 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) शास्त्री जी की चिन्ता दुर्भाग्यवश पाठक जी वाली घड़ी चोरी चली गई। मकान-मालिक ने मकान की पुताई के लिए मज़दूरों को लगाया था। उन्हीं में से किसी ने सामान हटाते समय घड़ी गायब कर दी थी। हम शास्त्री जी को घड़ी के सम्बन्ध में पहले लिख चुकी थी। जब वह चोरी चली गई, तब पुनः उन्हें सूचित किया और राय मांगी, क्योंकि पाठक जी की घड़ी तो लौटानी ही थी, वरना पूर्णिमा जी की पोज़ीशन बिगड़ती। शास्त्री जी ने लिखा कि हम मिर्ज़ापुर डिप्टी भैया को लिख कर ढाई सौ रुपए का इन्तजाम कराएं और वे रुपए पूर्णिमा जी को घड़ी के बदले दे दें। शास्त्री जी की राय ठीक थी, पर डिप्टी भैया के घर की जो स्थिति थी, उसे देखते हुए ढाई सौ रुपए का जल्दी प्रबन्ध होना कठिन था। हम उसे भली-भांति समझती थी। पर घड़ी के रुपए देने भी बहुत ज़रूरी थे। यह शास्त्री जी की इज़्ज़त की बात थी। हमने दूसरा उपाय सोचा। भतीजे को बुला पठाया और जो गहने धरोहर थे, उन्हें बंधक रख क...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 53)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 53 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) पूर्णिमा का स्नेह शास्त्री जी को इतने से भी संतोष नहीं हुआ। उन्होंने श्रीमती पूर्णिमा बनर्जी को लिख कर इस काम में मदद मांगी और हमें मिर्ज़ापुर से बुला कर डॉक्टरों को दिखाने को कहा। पूर्णिमा जी ने वैसा ही किया। उन्होंने हमारे भतीजे को मिर्ज़ापुर भेजा। हम बच्चों सहित इलाहाबाद आ गई। मुट्ठीगंज मोहल्ले में मकान लिया और हमारी दवाई होने लगी। डॉक्टरों ने हमें टी.बी. का रोगी घोषित कर दिया था। अवस्थी जी डॉक्टर हमारी दवा कर रहे थे और बड़ी तत्परता से कर रहे थे। शास्त्री जी के प्रति उन्हें बड़ी श्रद्धा थी। इस कारण और भी हमें शीघ्र निरोग कर देना चाहते थे। उन का यह वाक्य हमें आज तक नहीं भूला है, जो उन्होंने हमसे अपनी फ़ीस लेने को नाही करते हुए कहा था - ‘जो देश के लिए इतना कर सकता है, उसके लिए हम यह भी नहीं कर सकते हैं!’ दवा होती रही। पूर्णिमा जी रोज़ ‘जार्ज टाउन’ से आती, हमारा हाल-चाल पूछती और जो कुछ कहना-सुनना होता,...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 52)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 52 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) तिनके का सहारा एक दिन अचानक 50 रुपए का मनीआर्डर आ गया। पंडित निष्कामेश्वर प्रसाद जी ने भेजा था। डूबते को जैसे तिनके का सहारा मिला हो। लेकिन जब दुःखों के दिन होते हैं, तब इस तरह के सहारे भी बेसहारों में बदल जाया करते हैं। श्री रामस्वरूप, जो इस समय लोक सभा के हरिजन सदस्य हैं, उस समय हमारे यहाँ मिर्ज़ापुर में रहा करते थे। इनके पिता ने जब इनकी पढ़ाई के लिए मज़बूरी जाहिर की थी, तब हमारे स्वर्गीय डिप्टी भैया (स्कूलों में डिप्टी होने के कारण वे घर में डिप्टी भैया के नाम से सम्बोधित होते थे) ने उन्हें अपने पास रख लिया था और लड़के जैसा प्यार देकर उन्हें पढ़ाते रहे थे। उन दिनों रामस्वरूप इण्टर में थे और सालाना इम्तिहान की तैयारी कर रहे थे। उस दिन स्कूल से लौटते समय वे पकड़ लिए गए। उन्हें सरकार ने तोड़-फोड़ करने वालों का सहयोगी बता कर मुकद्दमा चलाया और 25 रुपए जुर्माना कर दिया। हमने उन्हीं 50 रुपयों में ये 25 ...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 51)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 51 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) भरोसा भगवान का शास्त्री जी नैनी जेल भेजे गए थे अथवा किसी दूसरी जेल में, इसका पक्का पता नहीं था, क्योंकि महीनों बीत जाने पर भी इन की कोई चिट्ठी नहीं मिल सकी थी। तबीयत घबराया करती थी। नाना प्रकार के विचार मन में उठते रहते थे। अशुभ की ओर अधिक ध्यान जाता था। बहुत रोकने पर भी आँखों से आँसू नहीं रुक पाते थे। यद्यपि मन को हर तरह से ढांढस देने का प्रयत्न करती थी, घर और बाहर वाले समझाते रहते थे, लेकिन उसका असर थोड़े समय तक ही होता था। उसके बाद वही पहले वाली हालत हो जाया करती थी। रात में लेटती तो घण्टों एक-टक तारों को निहारा करती और सोचा करती कि वे भी तो इन्हीं तारों के नीचे कहीं लेटे होंगे। हमें इस निहारने में कुछ सन्तोष अवश्य मिलता, लेकिन वह भी तो क्षणिक ही होता। फिर वही चिन्ताएं और व्यथाएं मथानी की तरह हृदय को मथने लगती। आँखों से पानी बहने लगता और सवेरा हो जाता। धीरे-धीरे हमारी तबीयत भी ख़राब रहने लगी। बुख़ार...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 50)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 50 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) बेईमान टी.टी. उन की गिरफ्तारी के बाद रात को एक सज्जन 25 रुपए दे गए। दूसरे दिन हम बच्चों को लेकर मिर्ज़ापुर चल दी। अम्मा जी रामनगर चली गई। हमारे संग में हमारा एक भतीजा भी था, जो वहीं इलाहाबाद में पढ़ा करता था। 25 रुपए में से 10 रुपए तो वहीं लोगों को देने दिलाने में ख़र्च हो गए थे। स्टेशन पर आने पर 10 रुपए टी.टी. बाबू को टिकट बनाने के लिए दिए, क्योंकि देर से आने के कारण टिकट लेने का समय नहीं रह गया था। फिर भीड़ भी बहुत थी। गाड़ी में घुसने के लिए भी बड़े चक्कर लगाने पड़े थे, तब कहीं एक खिड़की से घुसने का अवसर मिला। 2-3 स्टेशन बीत जाने पर भी जब टी.टी. बाबू टिकट बना कर नहीं दे गए, तब हमने अगले स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही भतीजे को टी.टी. के पास भेजा। भतीजा गया लेकिन बिना टिकट के वापिस आया। उसने जो कुछ बताया, वह सुन कर हमारी रुलाई छूट गई। टी.टी. की नीयत बेईमानी की हो गई। उसने कहा कि मिर्ज़ापुर जाकर सब का टि...

मेरे पति मेरे देवता (भाग - 49)

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 मेरे पति मेरे देवता (भाग - 49 ) श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967 ) गोली हमें लगनी चाहिए उधर शास्त्री जी घंटाघर चलने की तैयारी कर रहे थे और हम दूसरे कमरे में रो रही थी। हमारी आँखों से आंसू बहते देखकर सुमन शास्त्री जी से जा कर बोली - ‘बाबूजी! आपने अम्मा को डांटा है क्या ? ’ ‘क्यों ? ’ ‘वे उस कमरे में रो रही हैं।’ शास्त्री जी कमरे में आए। उन्हें अचम्भा हो रहा था, हमारी रुलाई पर। उन के अनुमान से हम उनके जेल जाने के कारण रो रही थी। उन्होंने हमारी इस तरह की कमज़ोरी और नादानी पर आश्चर्य प्रकट किया और रोने का कारण जानना चाहा। उन के जेल जाने का यह कोई पहला अवसर तो था नहीं। हम बात टालने के विचार से ‘वैसे ही’ कह कर चुप हो गई। जब उन्होंने दोबारा पूछा, तब हमें बताना पड़ा - ‘हमारे पास कुल छः पैसे हैं। आप से कह कर आपको परेशानी में नहीं डालना चाहती थी, पर यह भी चिन्ता थी कि कल आपने मिर्ज़ापुर जाने के लिए कहा है, तो हम जाएंगी कैसे ? यही सोच-सोच कर रो रही थी।’ शास्त्री जी को भी इसका ध...