मेरे पति मेरे देवता (भाग - 54)
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मेरे पति मेरे देवता (भाग - 54)
श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं
श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी
प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967)
शास्त्री जी की चिन्ता
दुर्भाग्यवश पाठक जी वाली घड़ी चोरी चली गई। मकान-मालिक ने मकान की पुताई के लिए मज़दूरों को लगाया था। उन्हीं में से किसी ने सामान हटाते समय घड़ी गायब कर दी थी। हम शास्त्री जी को घड़ी के सम्बन्ध में पहले लिख चुकी थी। जब वह चोरी चली गई, तब पुनः उन्हें सूचित किया और राय मांगी, क्योंकि पाठक जी की घड़ी तो लौटानी ही थी, वरना पूर्णिमा जी की पोज़ीशन बिगड़ती। शास्त्री जी ने लिखा कि हम मिर्ज़ापुर डिप्टी भैया को लिख कर ढाई सौ रुपए का इन्तजाम कराएं और वे रुपए पूर्णिमा जी को घड़ी के बदले दे दें।
शास्त्री जी की राय ठीक थी, पर डिप्टी भैया के घर की जो स्थिति थी, उसे देखते हुए ढाई सौ रुपए का जल्दी प्रबन्ध होना कठिन था। हम उसे भली-भांति समझती थी। पर घड़ी के रुपए देने भी बहुत ज़रूरी थे। यह शास्त्री जी की इज़्ज़त की बात थी। हमने दूसरा उपाय सोचा। भतीजे को बुला पठाया और जो गहने धरोहर थे, उन्हें बंधक रख कर ढाई सौ रुपए लाने को कहा। इस के सिवा और कोई चारा नहीं था। भतीजा रुपए ले आया। हम ने उसी के साथ रुपयों को एक लिफ़ाफ़े में बंद करके पूर्णिमा जी के पास भेज दिया।
जब घड़ी चोरी चली गई थी और हम बड़ी दुःखी थी, तब पूर्णिमा जी ने बार-बार समझा कर किसी प्रकार की चिन्ता नहीं करने को कहा था कि वह पाठक जी से जैसा जो कुछ होगा, कह-सुन लेंगी, लेकिन उस दिन जब हमारे भतीजे ने उन्हें लिफ़ाफ़ा थमाया और उन्होंने उसे खोल कर देखा, तब लिफ़ाफ़ा उन के हाथ से गिर पड़ा। उन्होंने बिना कुछ पूछे लिफ़ाफ़ा उठाकर भतीजे के हाथ में पकड़ा दिया और लौट जाने को कहा। शाम को जब मिलने आई, तब हमें अच्छी-खासी डांट बतानी ही थी।
क्रमशः
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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