मेरे पति मेरे देवता (भाग - 50)
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मेरे पति मेरे देवता (भाग - 50)
श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं
श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी
प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967)
बेईमान टी.टी.
उन की गिरफ्तारी के बाद रात को एक सज्जन 25 रुपए दे गए। दूसरे दिन हम बच्चों को लेकर मिर्ज़ापुर चल दी। अम्मा जी रामनगर चली गई। हमारे संग में हमारा एक भतीजा भी था, जो वहीं इलाहाबाद में पढ़ा करता था। 25 रुपए में से 10 रुपए तो वहीं लोगों को देने दिलाने में ख़र्च हो गए थे। स्टेशन पर आने पर 10 रुपए टी.टी. बाबू को टिकट बनाने के लिए दिए, क्योंकि देर से आने के कारण टिकट लेने का समय नहीं रह गया था। फिर भीड़ भी बहुत थी। गाड़ी में घुसने के लिए भी बड़े चक्कर लगाने पड़े थे, तब कहीं एक खिड़की से घुसने का अवसर मिला।
2-3 स्टेशन बीत जाने पर भी जब टी.टी. बाबू टिकट बना कर नहीं दे गए, तब हमने अगले स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही भतीजे को टी.टी. के पास भेजा। भतीजा गया लेकिन बिना टिकट के वापिस आया। उसने जो कुछ बताया, वह सुन कर हमारी रुलाई छूट गई। टी.टी. की नीयत बेईमानी की हो गई। उसने कहा कि मिर्ज़ापुर जाकर सब का टिकट बनेगा, जहां से गाड़ी चलती है।
हमें चिन्ता यह थी कि जब लोग सुनेंगे कि शास्त्री जी की पत्नी बिना टिकट सफ़र कर रही है, तब क्या होगा? यह बदनामी हमारी ही नहीं, शास्त्री जी की भी थी। गाड़ी चलने पर लोगों ने पूछताछ की। उन्हें टी.टी. की बेईमानी का पता लगा और यह परिवार शास्त्री जी का है, ऐसा ज्ञान होने पर उन्होंने हमें भरोसा दिया।
बाद में लोगों ने झगड़े के स्थान पर दूसरा रास्ता निकाला। तीन आदमियों ने हमें अपनी टिकट दे दी और वे विन्ध्याचल स्टेशन से मिर्ज़ापुर इक्कों में गए। स्टेशन पर उन्होंने एक साहब से प्लेटफार्म टिकट मंगवाया। उन्हें स्टेशन से निकलने में कोई दिक्कत नहीं हुई। मिर्ज़ापुर स्टेशन आने पर जब हम उतरी, तब वह टी.टी. साथ में कई टी.टी. ले कर आ पहुँचा। उसने हमसे टिकट मांगा। हमने टिकट दिखा दिए। वह भौंचक्का रह गया। उस ने कहा - ‘तुम्हारे पास ये टिकट कहाँ से आए?’
हम बच्चों को लेकर चल दी। सब टी.टी. हक्का-बक्का देखते रहे। उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ सका।
क्रमशः
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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