मेरे पति मेरे देवता (भाग - 83)
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मेरे पति मेरे देवता (भाग - 83)
श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं
श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी
प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967)
देशवासियों का प्यार
पाकिस्तान की तो पहले से ही तैयारी थी। इस योजना में अपने को असफ़ल होता देख कर उस ने एकदम से अपनी फौजों को हमला करने का हुक्म दे दिया। सैंकड़ों टैंकों को लेकर पाकिस्तानी सेना भारत पर टूट पड़ी। इन विशाल टैंकों की मार से जहाँ पहाड़ दहल उठते थे, वहाँ भारतीय जवानों की क्या बिसात थी? लेकिन फिर भी भारतीय जवान बिल्कुल निश्चिन्त थे क्योंकि उनकी विजय भी निश्चित थी।
शास्त्री जी को युद्ध के लिए विवश होना पड़ा, क्योंकि उनका यह भी सिद्धान्त था कि ‘हम रहें या न रहें, लेकिन हमारा झण्डा ऊँचा रहना चाहिए और देश सलामत रहना चाहिए।’ उन्होंने इसी सिद्धान्त पर अपने जीवन का निर्माण भी किया था।
उन्होंने भी अपने बहादुर जवानों को आदेश दिया और युद्ध छिड़ गया। जवानों ने अपनी जान की बाज़ी लगा दी। असम्भव को सम्भव कर दिखाया। विशाल टैंकों को धराशायी किया, पाकिस्तानी फौज को पीछे खदेड़ा और आगे बढ़ने लगे। जैसे वे शास्त्री जी के गौरव में चार चाँद लगाने को तुले बैठे हों, चाहे उनका सब कुछ क्यों न न्यौछावर हो जाए? और हुआ भी यही।
भारतीय जवान आगे बढ़े तो बढ़ते ही चले गए। सारी दुनिया उनकी वीरता को देख कर चकित रह गई। फिर दुनिया के दूसरे देशों ने मध्यस्थता की। संधि की बात चलाई। शास्त्री जी कब युद्ध चाहते थे? उन्होंने तो लड़ाई के दौरान भी सेना को आदेश दे रखा था कि पाकिस्तानी जनता की भरसक जितनी हिफ़ाजत हो सके, हिफ़ाज़त की जाए। सेनाएं रुक गई।
शास्त्री जी ने जैसा स्नेह और प्यार देशवासियों, जवानों और किसानों को दिया था, वैसा ही स्नेह और प्यार उन्हें मिला भी था। ऐसी आत्मीयता किसी नेता को सदियों में मिला करती है।
क्रमशः
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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