मेरे पति मेरे देवता (भाग - 84)
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मेरे पति मेरे देवता (भाग - 84)
श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं
श्रीमती ललिता शास्त्री की ज़ुबानी
प्रस्तुतकर्ता - श्री उमाशंकर (जून, 1967)
रानी साहिबा का प्रस्ताव
बहुत पहले जब शास्त्री जी उत्तरप्रदेश में पुलिस मंत्री थे, तो एक बार हम बाल-बच्चों सहित नैनीताल गई थी। वहाँ एक ज्योतिषी जी ने हमें बताया था कि हमें अपने लड़कों के अतिरिक्त एक ऐसा लड़का और मिलेगा, जो अपने लड़कों से भी अधिक हमारा ध्यान रखेगा और हमारे लिए सब कुछ करने को सदा तैयार रहेगा। उस समय बात आई-गई हो गई।
पर ताशकंद जाने से पहले जब शास्त्री जी मांडा के राजा साहब के आग्रह पर मांडा में भाषण देने गए, तो जैसा राजा साहब ने शास्त्री जी का स्वागत किया, वह तो अनूठा था ही; उससे भी अनूठा था शास्त्री जी का तिलक करना। राजा साहब ने अपने अंगूठे को काट कर शास्त्री जी को अपने ख़ून से तिलक लगाया था। उसी समय न जाने क्यों, हमें राजा साहब के प्रति हृदय में पुत्रवत् भाव उमड़ पड़ा और ज्योतिषी जी वाली बात स्मरण हो आई। सर्किट हाउस में लौटने पर हम ने शास्त्री जी से भी अपने मन का भाव व्यक्त किया। शास्त्री जी को भी राजा साहब बड़े प्रिय लगे थे।
मेजा तहसील के अन्तर्गत मांडा एक कस्बानुमा गाँव है। स्वतन्त्रता से पूर्व यह मांडाराज से सम्बोधित होने वाली एक बड़ी रियासत थी। मांडा में राजा का महल देखने योग्य है। दूसरे दिन राजा साहब के संग रानी साहिबा भी मिलने आई। बातचीत में रानी साहिबा ने चर्चा चलाई - ‘सुनने में आया है माताजी! कि शास्त्री जी कोई आश्रम खोलना चाहते हैं। कहाँ खोलने का विचार है?’
‘वैसे तो गुलरिया गाँव में खोलने का सोचा गया था, पर हम समझती हैं कि मांडा अच्छा रहेगा।’
‘बहुत अच्छा रहेगा और जितना जो कुछ हम लोगों से हो सकेगा, हम हमेशा सेवा के लिए तैयार भी रहेंगे। मेरा निवेदन आप शास्त्री जी से अवश्य कहें। राजा साहब की भी यही इच्छा है। मांडा में आपको कई बातों की सुविधा रहेगी।’
क्रमशः
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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