वीर हकीकत राय

👼👼💧💧👼💧💧👼👼

(बलिदान)

वीर हकीकत राय

विश्व की बलिदानी परम्परा पर दृष्टिपात करें तो दोनों ही प्रकार के बलिदानी हुए हैं। स्वदेश की रक्षा के लिए बलिदान देने वालों की लम्बी शृंखला है। धार्मिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए भी बलिदान देने वालों की संख्या कम नहीं है। कई बार देश/शासन की गुलामी, परतन्त्रता तो व्यक्ति ने स्वीकार कर भी ली किन्तु वे धार्मिक परतन्त्रता से मुक्ति के लिए सहर्ष बलिदान हुए हैं।

एक ग्यारह वर्षीय बालक ‘हकीकतराय’ स्यालकोट के मदरसे-विद्यालय में शिक्षा ग्रहण के लिए प्रविष्ट हुआ। वह अपने अध्यापक, जो एक मौलवी भी थे, उन की अनुपस्थिति में अपने सहपाठियों द्वारा अपने अभीष्ट देवी-देवताओं के लिए गालियाँ सुनकर उन्हें रोकने का प्रयत्न करता है। न मानने पर बीबी फातिमा के लिए उन्हीं शब्दों के प्रयोग की चेतावनी दे देता है।

इतना घटनाक्रम किसी सभ्य समाज के लिए उपेक्ष्य अथवा चेतावनी देने से अधिक महत्व का नहीं माना जा सकता, किन्तु फातिमा का नाम लिए जाने के कारण उस बालक को इस्लाम की तौहीन का दोषी मानकर कत्ल किए जाने योग्य मान लिया जाता है।

मौलवी की सिफारिश पर पहले काजी, फिर शहर-हाकिम और अन्त में नाजिम-लाहौर के यहाँ अभियोग चलता है। बालक के माता-पिता तथा शहर के अनेक गणमान्य व्यक्तियों के निवेदन को और बालक की अल्पायु आदि सभी को महत्त्वहीन मानकर उसे मौत की सजा दी जाती है। मौत से बचने का एकमात्र उपाय है - इस्लाम स्वीकार करना।

शहर-हाकिम से लेकर नाजिम तक के द्वारा अनेक प्रलोभन दिए जाते हैं, किन्तु ’तवैव वाहाः तव नृत्यगीते’ इस कठोपनिषद् के सन्देश को मानने वाले के लिए इनका मूल्य क्या है? प्रलोभनों से प्रलोभित न होकर हकीकत राय ने निम्न उत्तर दिया -

नुक़्स क्या हिन्दू रहने में जो इसको तुर्क मैं कर दूं,

बदल दूँ किसलिए अपने धर्म को मुसलमानी से।

अगर वेदों के मन्त्र ही न मुक्ति कर सके मेरी,

तशफ़्फी़ हो सकेगी फिर न आयाते कुरानी से।

- यशवंत सिंह ‘टोहानवी’

इस उत्तर से निराश हो नाजिम ने कत्ल का आदेश दे दिया और लगभग तेरह वर्ष के बालक को वसंत पंचमी के दिन जल्लाद ने उसकी गर्दन अलग कर बलिदान के पथ का पथिक बना दिया।

यद्यपि परिजनों के कष्टों-दुःखों का तो यहाँ से प्रारम्भ होता है, किन्तु धर्म-जाति-समाज के जीवन को ये बलिदान सदा नवजीवन प्रदान करते हैं। वीर हकीकतराय के अमर बलिदान ने इस जाति को अपनी धर्म-संस्कृति की रक्षा की वह अमर प्रेरणा दी जिससे आगे चलकर अनेक हुतात्माओं ने स्वजीवन समर्पित कर धर्म रक्षा की।

(संपादकीय, बलिदान, परोपकारी पाक्षिक फरवरी (प्रथम) 2022 से उद्धृत, संपादक - डॉ. वेदपाल)

आज की परिस्थितियों में भी वीर हकीकतराय का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। यह सदैव अपनी धर्म-संस्कृति की रक्षा के लिए प्रेरणा-स्रोत बना रहेगा।

--

सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏


विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद।

Comments

  1. यह अमर गाथा है मैंने अपने स्कूल के दिनों में इस चरित्र को जिया है

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

अगली यात्रा - प्रेरक प्रसंग

Y for Yourself

आज की मंथरा

आज का जीवन -मंत्र

वाणी हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है

बुजुर्गों की सेवा की जीते जी

स्त्री के अपमान का दंड

आपस की फूट, जगत की लूट

मीठी वाणी - सुखी जीवन का आधार

वाणी बने न बाण