बेटा-बेटी
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बेटा-बेटी (प्रेरणात्मक कहानी)
Image by S. Hermann & F. Richter from Pixabay
पायल बहुत उत्सुकता से अपनी सासु माँ के पास आयी और कहा “मम्मी! ये लीजिये पौधे का बीज, मैं आपके लिये लायी हूँ। आपको बागवानी का बहुत शौक है न!” सासू माँ ने बीज लेते हुए कहा कि “तुझे कब से बागवानी का शौक चढ़ गया?” पायल ने हँसते हुए कहा - अपने लिये नहीं, आपकी खुशी के लिये लायी हूँ। आपको देखा है मैंने। आप कितनी लगन से बागवानी करती हैं। अपने पौधो का कितना ख्याल रखती हैं।
सासू माँ ने बहुत प्यार से उस बीज को एक गमले में लगा दिया और मन से उसका ख्याल रखने लगी। समय पर पानी देना, खाद डालना, धूप बारिश से बचाना, सब बहुत प्यार और लगन से सासू माँ करती थी। सासु माँ के साथ पायल भी उस पौधे का विशेष ख्याल रखती। सासू माँ को थोड़ा आश्चर्य भी होता।
एक दिन सासू माँ ने पायल को आवाज़ देकर कहा “देख पायल तेरे पौधे में कली निकल आयी है।” पायल खुशी-खुशी दौड़ कर उस कली को देखने गयी लेकिन कली को देखते ही रोने लगी और रोते-रोते कहा - ये तो गेंदा की कली है। मुझे तो गुलाब चाहिए था। सासू माँ ने कहा कि बीज गेंदा के होंगे तो गेंदा के फूल ही न निकलेंगे, गुलाब कैसे आएंगे?
लेकिन पायल ने अपनी सासु माँ की एक भी न सुनी और रो-रो कर सारा घर सिर पे उठा लिया। सास-ससुर, पति किसी के भी कहने पर चुप ही नहीं हो रही थी और रोते ही जा रही थी। एक ही रट लगा रखी थी उसने कि “मुझे गुलाब का फूल चाहिए था।” बात इतनी बढ़ गयी कि पड़ोसी, ननद, चाची सास सबको आना पड़ा। सबने मिल कर समझाया कि तुमने जो बीज लगाया था, वह गेंदा के फूल का था। तुमने अपनी सासू माँ को दिया। उस बेचारी ने रोप दिया, अब उन्हें क्या पता था कौन से फूल खिलेंगे - गेंदा के या गुलाब के।
पायल ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा - यही बात तो मैं भी समझाना चाहती हूँ। अपनी सासु माँ को कि मुझे भी तो नहीं पता था कि मेरे अंदर कौन सा बीज था? बेटा का या बेटी का। अगर मैंने बेटी को जन्म दिया है तो इसमें मेरी क्या ग़लती है? क्यों सासू माँ ने मेरी इस छोटी सी कली को इतना कोसा, क्यों इसके जन्म पर वे इतना रोई? इसे प्यार भी नहीं किया।
उसने अपने पड़ोसियों, ननद और चाची सास की तरफ देख के कहा “उस समय क्यों आप लोगों ने मेरी सासू माँ को नही समझाया? क्यों उस वक़्त आप लोग चुप थे, जब वह मेरी नन्ही कली का तिरस्कार कर रही थी और उसके जन्म पर फूट-फूट कर रोई थी?
बीज धरती की कोख में स्थापित हो जाता है। इसके बाद अंकुरित होता है, पल्लवित और पुष्पित होता है, बढ़ता है और पूर्ण वृक्ष बन जाता है और पुनः अपनी सम्पूर्ण जीवनी शक्ति को बीज में स्थापित कर देता है, ताकि पुनः नया जन्म ले सके। एक सेब का बीज बड़ा पेड़ बनकर कई सेब देता है और एक सेब में कई सेब के बीज होते हैं।
बिटिया, स्त्री, महिला जननी बनकर अनेक बेटियों को जन्म देती है। वही बेटी बड़ी होकर स्त्री तथा महिला बनती है। जननी द्वारा बेटी के जन्म से ही वंशवृद्धि होती है। इसे गेंदा-गुलाब की तरह बेटा-बेटी में न बांटे। सभी का अपना-अपना महत्त्व होता है।
अब सासू माँ को अपनी ग़लती का अहसास हो गया और उन्होंने बेटा-बेटी के अन्तर के बारे में अपनी विचारधारा को परिवर्तित कर दिया। हमें भी बेटा-बेटी, दोनों के महत्त्व को समझना चाहिए और दोनों को एक समान पूरा प्यार व सम्मान देना चाहिए।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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धन्यवाद।
व्यक्ति के अंदर बौद्धिक और तर्कसंगत ज्ञान हो तो उसे सभी में गुणों की खान नजर आएगी। यही सार है। सुंदर विषय-वस्तु
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