निष्काम भक्ति
👼👼💧💧👼💧💧👼👼
निष्काम भक्ति
Image by fernando zhiminaicela from Pixabay
एक भक्त था। वह रोज़ बिहारी जी के मंदिर जाता था, पर मंदिर में बिहारी जी की जगह उसे एक ज्योति दिखाई देती थी। मंदिर में बाकी के सभी भक्त कहते - वाह! आज बिहारी जी का श्रृंगार कितना अच्छा है, बिहारी जी का मुकुट ऐसा, उनकी पोशाक ऐसी, तो वह भक्त सोचता कि बिहारी जी सबको दर्शन देते हैं, पर मुझे क्यों केवल एक ज्योति दिखायी देती है।
हर दिन ऐसा होता। एक दिन वह बिहारी जी से बोला - ऐसी क्या बात है कि आप सबको तो दर्शन देते है पर मुझे दिखायी नहीं देते। कल आपको मुझे दर्शन देना ही पड़ेगा। अगले दिन मंदिर गया तो फिर बिहारी जी उसे जोत के रूप में दिखे। वह बोला बिहारी जी अगर कल मुझे आपने दर्शन नहीं दिये तो मैं यमुना जी में डूबकर मर जाँऊगा। उसी रात में बिहारी जी एक कोढ़ी के सपने में आये जो कि मंदिर के रास्ते में बैठा रहता था और बोले - तुम्हें अपना कोढ़ ठीक करना है? वह कोढ़ी बोला - हाँ भगवान! भगवान बोले - तो सुबह मंदिर के रास्ते से एक भक्त निकलेगा। तुम उसके चरण पकड़ लेना और तब तक मत छोड़ना जब तक वह यह न कह दे कि बिहारी जी तुम्हारा कोढ़ ठीक करें।
अगले दिन वह कोढ़ी रास्ते में बैठ गया। जैसे ही वह भक्त निकला, उसने चरण पकड़ लिए और बोला - पहले आप कहो कि मेरा कोढ़ ठीक हो जाये। वह भक्त बोला - मेरे कहने से क्या होगा? आप मेरे पैर छोड़ दीजिये। कोढ़ी बोला - जब तक आप यह नहीं कह देते कि बिहारी जी तुम्हारा कोढ़ ठीक करें, तब तक मैं आपके चरण नहीं छोडूंगा।
भक्त वैसे ही चिंता में था कि एक तो बिहारी जी दर्शन नहीं दे रहे, ऊपर से ये कोढ़ी पीछे पड़ गया। तो वह झुँझलाकर बोला - जाओ, बिहारी जी तुम्हारा कोढ़ ठीक करें और मंदिर चला गया। मंदिर जाकर क्या देखता है कि बिहारी जी के दर्शन हो रहे हैं। वह बिहारी जी से पूछने लगा - अब तक आप मुझे दर्शन क्यों नहीं दे रहे थे? तो बिहारी जी बोले - तुम मेरे निष्काम भक्त हो। आज तक तुमने मुझसे कभी कुछ नहीं माँगा। इसलिए मैं क्या मुँह लेकर तुम्हें दर्शन देता। यहाँ सभी भक्त कुछ न कुछ माँगते रहते हैं, इसलिए मैं उनसे नज़रें मिला सकता हूँ, पर आज तुमने रास्ते में उस कोढ़ी से कहा कि बिहारी जी तुम्हारा कोढ़ ठीक कर दें, इसलिए मैं तुम्हें दर्शन देने आ गया।
सार - भगवान की निष्काम भक्ति ही करनी चाहिये। भगवान की भक्ति करके यदि संसार के भोग, सुख ही माँगे तो फिर वह भक्ति नहीं कहलाती। वह तो सौदेबाजी है।
--
सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
विनम्र निवेदन
यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।
धन्यवाद।
निष्काम कर्म भी ईश्वर की उपासना है
ReplyDelete