परोपकार का फल
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परोपकार का फल
एक बार एक गाँव में कुछ ग्रामीण मिलकर एक सांप को मार रहे थे, तभी उसी रास्ते से संत एकनाथ का निकलना हुआ। भीड़ को देख संत एकनाथ भी वहां आ पहुंचे, बोले - भाइयों! इस प्राणी को क्यों मार रहे हो, कर्मवश सांप होने से क्या हुआ? यह भी तो एक आत्मा है। तभी भीड़ में खड़े एक युवक ने कहा - “आत्मा है तो फिर हमें काटता क्यों है?”
व्यक्ति की बात सुनकर संत एकनाथ ने कहा - तुम लोग सांप को बेवजह मारोगे तो वह भी तुम्हें काटेगा ही। अगर तुम सांप को नहीं मारोगे तो वह भी तुम्हें क्यों काटेगा? ग्रामीण संत एकनाथ का काफी आदर सम्मान करते थे, इसलिए संत की बात सुनकर लोगों ने सांप को छोड़ दिया।
कुछ दिनों बाद एकनाथ शाम के वक़्त घाट पर स्नान करने जा रहे थे। तभी उन्हें रास्ते में सामने फण फैलाए एक सांप दिखाई दिया। संत एकनाथ ने सांप को रास्ते से हटाने की काफी कोशिश की लेकिन वह टस से मस न हुआ।
आखिर में एकनाथ मुड़कर दूसरे घाट पर स्नान करने चले गए। उजाला होने पर लौटे तो देखा, पहले घाट के रास्ते पर बरसात के कारण एक गड्ढा हो गया था। अगर सांप ने न बचाया होता तो संत एकनाथ उस गड्ढे में कब के समा चुके होते।
इसीलिए कहा गया है - दया और परोपकार कभी व्यर्थ नहीं जाते। वे हमेशा अच्छा फल लेकर आते हैं।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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धन्यवाद।
परोपकार का कृत्य कभी निष्फल नहीं जाता। अच्छी कहानी है। हार्दिक साधुवाद।
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