शक्ति का बिखराव
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शक्ति का बिखराव
Image by Pezibear from Pixabay
हम जानते हैं कि एकता में ही बल है।
एक बार कबूतरों का झुण्ड, बहेलिये के बनाये जाल में फंस गया। सारे कबूतरों ने मिलकर फैसला किया और जाल सहित उड़ गये। “एकता में बल है” की यह कहानी आपने बचपन में पढ़ी है, पर यहाँ तक ही पढ़ी है। इसके आगे क्या हुआ, वह आज प्रस्तुत है -
वह बहेलिया इतनी मेहनत से पकड़े गए कबूतरों को ऐसे ही नहीं जाने दे सकता था। वह कबूतरों सहित उड़ रहे जाल के पीछे-पीछे भाग रहा था। एक सज्जन मिले और उसने पूछा - क्यों बहेलिये भाई! तुझे पता नहीं कि “एकता में बल होता है”, तो फिर क्यों अब उनका पीछा कर रहा है?
बहेलिया बोला, “आप को शायद पता नही कि एकता में शक्ति अवश्य होती है, पर शक्ति का दंभ बहुत ख़तरनाक होता है। जहां जितनी ज्यादा शक्ति होती है, उसके बिखरने के अवसर भी उतने ज्यादा होते हैं।”
वे सज्जन कुछ समझे नहीं।
बहेलिया बोला - आप मेरे साथ आइये।
सज्जन भी उसके साथ हो लिए।
उड़ते-उड़ते कबूतर थक चुके थे। अब उन्होंने नीचे उतरने के बारे में सोचा। एक नौजवान कबूतर जिसकी कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं थी, उस ने कहा कि किसी खेत में उतरा जाये। वहां इस जाल को कटवाएँगे और खेत में दाने भी खायेंगे।
एक समाजवादी टाइप के कबूतर ने तुरंत विरोध किया कि ग़रीब किसानों का हक़ हमने बहुत मारा है। अब और नहीं!!
एक अन्य कबूतर जो दलित विचारधारा का पक्षधर था, उस ने कहा, “जहाँ भी उतरें, पहले मुझे दाना देना और जाल से पहले मैं निकलूंगा। मैं तन-मन से ही नहीं, धन से भी सबसे कमज़ोर हूँ और क्योंकि इस जाल को उड़ाने में सबसे ज्यादा मेहनत भी मैंने ही की थी, इसलिए दाने पर पहला हक मेरा ही बनता है।”
दल के सबसे बुजुर्ग कबूतर ने कहा, “मै सबसे बड़ा हूँ और इस जाल को उड़ाने का Plan और नेतृत्व मेरा था। अतः मेरी बात सबको माननी पड़ेगी।
एक तिलकधारी कबूतर, जो रोज़ मंदिर की छत पर जाकर दाना चुगता था, उसने कहा - किसी मंदिर की छत पर उतरा जाए। बंसीवाले भगवान की कृपा से वहाँ खाने को भी मिलेगा और लोगों की दया से अपना जाल भी कट जायेगा।
अंत में सभी कबूतर एक दूसरे को धमकी देने लगे कि मैंने उड़ना बंद कर दिया तो कोई जाल को नहीं उड़ा पायेगा, क्योंकि सिर्फ़ मेरे दम पर ही ये जाल उड़ रहा है और अपनी शक्ति के घमंड में आकर सभी ने धीरे-धीरे करके उड़ना बंद कर दिया।
जानते हो कि इसका परिणाम क्या हुआ?
इसका परिणाम यह हुआ कि अंत में वे सभी जाल समेत धरती पर आ गये और बहेलिये ने आकर उनको जाल सहित पकड़ लिया।
कहानी का ऐसा अंत सुनकर सज्जन गहरी सोच में पड गए।
बहेलिया बोला - क्या सोच रहे हैं, महाराज!!
सज्जन बोले, “मैं ये सोच रहा हूँ कि ऐसी ही गलती तो हम सब भी इस समाज में रहते हुए कर रहे हैं।”
बहेलिया ने पूछा, “कैसे?”
सज्जन बोले, “हर व्यक्ति शुरू में समाजसेवा करने और समाज में अच्छा बदलाव लाने की चाह रखते हुए समाज का काम शुरू करता है, पर एक समय ऐसा आता है, जब उसे ऐसा लगने लगता है कि उससे ही ये समाज चल रहा है। अतः सभी को उसके हिसाब से चलना चाहिए। वह स्वयं सभी Plan बनाए और सबको उस पर चलने के लिए बाध्य करे। तब समस्या की शुरुआत होती है, क्योंकि जब लोग उसके तरीके से नहीं चलते तो उस व्यक्ति की अपनी समाज सेवा तो जरूर बंद हो ही जाती है। यद्यपि समाज पहले भी चलता रहा था और बाद में भी चलता रहता है।
पर हाँ! इस कारण उस व्यक्ति ने जो काम और दायित्व लिया था, वह ज़रूर अधूरा रह जाता है, जैसा इन कबूतरों के दल के साथ हुआ, क्योंकि जाल उड़ाने के लिए हर कबूतर के प्रयास ज़रूरी थे और सिर्फ़ किसी एक कबूतर की ताकत से जाल नहीं उड़ सकता था।
इसलिए यदि अन्य लोग भी ऐसी अभिमानात्मक सोच रखेंगे और सफलता के लिए अपने प्रयास बंद कर देंगे तो समाज में भी उतनी ही गिरावट आएगी, क्योंकि यदि हम जिस समाज में रहते हैं, उससे अपेक्षा रखते हैं और उसमें अच्छा बदलाव देखना चाहते हैं, तो हमें अपने हिस्से के प्रयासों को कभी भी बंद नहीं करना चाहिए और अपना काम करते रहना चाहिए।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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धन्यवाद।
No doubt a learnful topics
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