परमात्मा से शिकायत
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परमात्मा से शिकायत
Image by ChiemSeherin from Pixabay
परमात्मा से शिकायत मत किया करो। हम अभी इतने समझदार नहीं हुए कि उसके इरादे समझ सकें। अगर उस ईश्वर ने आपकी झोली खाली की है तो चिंता मत करना क्योंकि शायद वह पहले से कुछ बेहतर उसमें डालना चाहता हो।
एक बार गुरु जी ने पूछा कि सबसे ज्यादा बोझ कौन-सा जीव उठा कर घूमता है? किसी ने कहा - गधा, तो किसी ने बैल, तो किसी ने ऊंट। सबने अलग-अलग प्राणियों के नाम बताए। लेकिन गुरु जी किसी के भी जवाब से संतुष्ट नहीं हुए। गुरु जी ने हंसकर कहा - गधे, बैल और ऊँट के ऊपर से हम मंजिल आने पर रखा हुआ बोझ उतार देते हैं, लेकिन इंसान अपने मन के ऊपर मरते दम तक विचारों का बोझ लेकर घूमता है। किसी ने कुछ बुरा किया है तो उसे न भूलने का बोझ, आने वाले कल का बोझ, अपने किये पापों का बोझ। इस तरह कई प्रकार के बोझ लेकर इंसान जीता है। जिस दिन इस बोझ को इंसान उतार देगा तब सही मायने में जीवन जीना सीख जाएगा।
क्यों सोचे तू कल की, कल के कौन ठिकाने हैं।
ऊपर बैठा वह बाजीगर, जाने क्या मन में ठाने है।
इस दुनिया को अच्छा या बुरा बनाना, सब कुछ तुम्हारे हाथ में है।
एक आदमी रेगिस्तान से गुज़रते वक़्त बुदबुदा रहा था - “कितनी बेकार जगह है ये। बिलकुल भी हरियाली नहीं है और हो भी कैसे सकती है? यहाँ तो पानी का नामो-निशान भी नहीं है”।
तपती रेत में वह जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था, उसका गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था। अंत में वह आसमान की तरफ देख झल्लाते हुए बोला - क्या भगवान! आप यहाँ पानी क्यों नहीं देते? अगर यहाँ पानी होता तो कोई भी यहाँ पेड़-पौधे उगा सकता था और तब ये जगह भी कितनी खूबसूरत बन जाती!
ऐसा बोल कर वह आसमान की तरफ ही देखता रहा, मानो वह भगवान के उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हो।
तभी एक चमत्कार होता है। नज़र झुकाते ही उसे सामने एक कुआं नज़र आता है।
वह उस इलाके में बरसों से आ-जा रहा था पर आज तक उसे वहां कोई कुआं नहीं दिखा था। वह आश्चर्य में पड़ गया और दौड़ कर कुएं के पास गया। कुआं लबालब पानी से भरा था।
उसने एक बार फिर आसमान की तरफ देखा और पानी के लिए धन्यवाद करने की बजाय बोला - “पानी तो ठीक है लेकिन इसे निकालने के लिए कोई उपाय भी तो होना चाहिए”।
उसका ऐसा कहना था कि उसे कुएं के बगल में पड़ी रस्सी और बाल्टी दिख गयी।
एक बार फिर उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ!
वह कुछ घबराहट के साथ आसमान की ओर देख कर बोला - “लेकिन मैं ये पानी ढोऊंगा कैसे?”
तभी उसे महसूस होता है कि कोई उसे पीछे से छू रहा है। पलट कर देखा तो एक ऊंट उसके पीछे खडा था।
अब वह आदमी एकदम घबरा जाता है। उसे लगता है कि कहीं वह रेगिस्तान में हरियाली लाने के काम में न फंस जाए और इस बार वह आसमान की तरफ देखे बिना तेज क़दमों से आगे बढ़ने लगता है।
अभी उसने दो-चार कदम ही बढ़ाया था कि उड़ता हुआ पेपर का एक टुकड़ा उससे आकर चिपक जाता है।
उस टुकड़े पर लिखा होता है - मैंने तुम्हे पानी दिया, बाल्टी और रस्सी दी, पानी ढोने का साधन भी दिया। अब तुम्हारे पास वह हर एक चीज है जो तुम्हें रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने के लिए चाहिए; अब सब कुछ तुम्हारे हाथ में है।
आदमी एक क्षण के लिए ठहरा, पर अगले ही पल बिना कुछ किए वह आगे बढ़ गया और रेगिस्तान कभी भी हरा-भरा नहीं बन पाया।
मित्रों! कई बार हम चीजों के अपने मन मुताबिक न होने पर दूसरों को दोष देते हैं, कभी हम सरकार को दोषी ठहराते हैं, कभी अपने बुजुर्गों को, कभी कम्पनी को तो कभी भगवान को। पर इस दोषारोपण के चक्कर में हम इस आवश्यक चीज को अनदेखा कर देते हैं कि एक इंसान होने के नाते हममें वह शक्ति है कि हम अपने सभी सपनों को खुद साकार कर सकते हैं।
शुरुआत में भले ही लगे कि ऐसा कैसे संभव है पर जिस तरह इस कहानी में उस इंसान को रेगिस्तान हरा-भरा बनाने के सारे साधन मिल जाते हैं, उसी तरह हमें भी प्रयत्न करने पर अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए ज़रूरी सारे उपाय या साधन मिल सकते हैं।
पर समस्या ये है कि ज्यादातर लोग इन उपायों के होने पर भी उस आदमी की तरह बस शिकायतें करना जानते हैं। अपनी मेहनत से अपनी दुनिया बदलना नहीं चाहते! तो चलिए! आज इस कहानी से सीख लेते हुए हम शिकायत करना छोड़ें और जिम्मेदारी लेकर अपनी दुनिया बदलना शुरू करें क्योंकि सचमुच सब कुछ तुम्हारे हाथ में है। तो आइए! इस पॉजिटिव विचार के साथ अपने दिन की शुरुआत करें।
सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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