एकता में ही बल है
👼👼💧💧👼💧💧👼👼
एकता में ही बल है
Image by Joëlle Ortet from Pixabay
एक गाँव में चार मित्र रहते थे।
चारों में इतनी घनी मित्रता थी कि हर समय साथ रहते, उठते, बैठते और योजनाएँ बनाते।
उनमें से एक ब्राह्मण, एक ठाकुर, एक बनिया और एक नाई था।
पर कभी भी चारों में जातिगत मतभेद का भाव नहीं था।
गज़ब की एकता थी।
इसी एकता के चलते वे गाँव के किसानों के खेत से गन्ने, चने आदि चीज़ें उखाड़ कर खाते थे। एक दिन इन चारों ने किसी किसान के खेत से चने के झाड़ उखाड़े और खेत में ही बैठकर हरी-हरी फलियों का स्वाद लेने लगे।
खेत का मालिक किसान आया। उसने चारों को दावत उड़ाते हुए देखा, तो उसे बहुत क्रोध आया। उसका मन किया कि लट्ठ उठाकर चारों को पीटे।
पर चार के आगे एक?
वह स्वयं पिट जाता। सो उसने एक युक्ति सोची। वह चारों के पास गया। ब्राह्मण के पाँव छुए। ठाकुर साहब की जयकार की, बनिया महाजन से राम जुहार की और फिर नाई से बोला - देख भाई! ब्राह्मण देवता धरती के देव हैं। ठाकुर साहब तो सबके मालिक हैं, अन्नदाता हैं। महाजन सबको उधारी दिया करते हैं।
ये तीनों तो श्रेष्ठ हैं, तो भाई! इन तीनों ने चने उखाड़े सो उखाड़े पर तू? तू तो ठहरा नाई। तूने चने क्यों उखाड़े?
इतना कहकर उसने नाई के दो-तीन लट्ठ रसीद किये। बाकी तीनों ने भी कोई विरोध नहीं किया, क्योंकि उनकी तो प्रशंसा हो चुकी थी। नाई ने बिना पीछे देखे वहाँ से भाग जाने में ही अपनी भलाई समझी।
अब किसान बनिए के पास आया और बोला - देख भई! तू साहूकार होगा तो अपने घर का। तू कोई पण्डित या ठाकुर साहब तो नहीं है न! तूने चने क्यों उखाड़े?
उसने बनिये के भी दो-तीन तगड़े-तगड़े लट्ठ जमाए। वह भी भाग गया।
पण्डित और ठाकुर ने कुछ नहीं कहा। अब किसान ने ठाकुर से कहा - ठाकुर साहब! माना आप अन्नदाता हो, पर किसी का अन्न छीनना तो ग़लत बात है। अरे! पण्डित महाराज की बात दीगर है। उनके हिस्से जो भी चला जाये, समझो कि दान-पुण्य हो जाता है। पर आपने तो बटमारी की न!
ऐसा कह कर उसने ठाकुर साहब को भी लट्ठ का प्रसाद दिया।
पण्डित जी कुछ बोले नहीं।
नाई और बनिया बाहर खड़े अभी तक अपनी चोट सहला रहे थे। जब ये तीनों पिट चुके, तब किसान पण्डित जी के पास गया और बोला - माना आप भूदेव हैं, पर इन तीनों के गुरु घण्टाल तो आप ही हैं। आपको कैसे छोड दूँ? ये तो अन्याय होगा, तो दो लट्ठ आपको भी पड़ने चाहिएं।
मार खा चुके बाकी तीनों बोल पड़े - हाँ! हाँ!! पण्डित जी को भी दण्ड मिलना चाहिए।
अब क्या पण्डित जी भी पीटे गए।
किसान ने इस तरह चारों को अलग अलग करके दण्ड दिया। किसी ने न तो किसी के पक्ष में कुछ कहा और न किसी से सहायता की गुहार लगाई। उसके बाद से चारों कभी भी एक साथ नहीं देखे गये।
मित्रों! पिछली कुछ सदियों से हिंदुओं के साथ यही होता आया है। अन्य लोग हम पर ‘फूट डालो और इनकी सत्ता हथिया लो’ के नियम से ही राज्य करते आए हैं। कहानी सच्ची लगी हो तो समझने का प्रयास करो और अगर कहानी केवल कहानी लगी हो, तो आने वाले समय के लिये लट्ठ खाने को तैयार रहो।
विचार कीजिएगा।
--
सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
विनम्र निवेदन
यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।
धन्यवाद।
Comments
Post a Comment