मोहजीत राजा की कथा
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मोहजीत राजा की कथा
Image by Susann Mielke from Pixabay
एक बार एक राजकुमार अपने कई सैनिकों के साथ शिकार पर गया। वह बहुत अच्छा शिकारी था। शिकार के पीछे वह इतना दूर निकल गया कि सारे सिपाही पीछे छूट गये। अकेले पड़ने का अहसास होते ही वह रुक गया। उसे प्यास भी लग रही थी। उसे पास में ही एक कुटिया दिखाई दी। वहाँ एक सन्त ध्यान-मग्न होकर बैठे थे। राजकुमार ने संत के पास जाकर पानी माँगा। सन्त ने राजकुमार का परिचय पूछा।
राजकुमार ने सन्त से कहा कि वह एक राजा का लड़का है, जिसने मोह को जीत लिया है। सन्त बोला - असंभव! एक राजा और मोह पर विजयी? यहाँ मैं एक संन्यासी हूँ, तब भी मोह को जीत नहीं पा रहा हूँ और तुम कहते हो कि तुम्हारे पिता जी एक राजा हैं और मोह को जीत चुके हैं।
राजकुमार ने कहा - न केवल मेरे पिता जी बल्कि सारी प्रजा ने भी मोह को जीत रखा है। सन्त को इसका विश्वास नहीं हुआ तो राजकुमार ने कहा कि आप चाहें तो इस बात की परीक्षा ले लें। सन्त ने राजकुमार की कमीज़ माँगी और उसे अपने वस्त्र पहनने को दिये। सन्त ने तब एक जानवर के खून में राजकुमार की कमीज़ को डुबोया और वह शहर में चिल्लाता हुआ गया कि राजकुमार को एक शेर ने मार दिया।
शहर के लोग कहने लगे - अगर वह चला गया तो क्या हुआ? आप क्यों चिल्ला रहे हो? वह उसका भाग्य था। सन्त ने सोचा - प्रजा नहीं चाहती होगी कि वह राजकुमार भविष्य में राजा बने, इसलिए इस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही है।
सन्त महल में गया और राजकुमार की मौत की बात उसके भाई और बहन को सुनाई। उन्होंने कहा कि अब तक वह हमारा भाई था। अब किसी और का भाई बन जायेगा। कोई हमेशा के लिए साथ तो नहीं रह सकता, इसलिए रोने और चिल्लाने की आवश्यकता नहीं है।
सन्त को लगा कि बहन को दूसरा भाई अधिक पसंद है और भाई भी खुश हो गया है कि उसे अब राज्य मिलेगा इसलिए दोनों ने ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त की। फिर वह पिता के पास गया और ख़बर सुनाई। पिता बोले - आत्मा तो अमर और अविनाशी है, इसलिए चिल्लाने की कोई ज़रूरत नहीं है। वह मेरा ज्येष्ठ पुत्र था इसलिए मैंने सोचा था कि वह राजा बनने वाला है लेकिन अब दूसरे पुत्र को राज्य मिलेगा। मैं उसे वापस नहीं ला सकता हूँ, इसलिए दुःख क्यों करूँ?
सन्त सोच में पड़ गया, लेकिन अभी और भी दो लोग बाकी थे; राजकुमार की माता और पत्नी। सन्त ने सोचा कि ये दो व्यक्ति तो जरूर व्याकुल होंगे। लेकिन वहाँ से भी वैसा ही उत्तर पाकर सन्त आश्चर्य में पड़ गया। उसे अपने आप पर ही विश्वास नहीं हो रहा था कि वह सच देख-सुन रहा है। आख़िर हारकर उसने अपने आने का उद्देश्य और राजकुमार के जिन्दा होने की बात सबको सुना दी। राजकुमार ने वापस आकर अपना राज्य-भार सँभाला और हर काम पहले की तरह चलता रहा।
आध्यात्मिक पक्ष
मोह पाँच विकारों में से एक है। वह हमारी शान्ति को छीन लेता है। सत्य को परखने की शक्ति को खत्म कर देता है। मोह सच्चाई को न पहचान कर झूठ का सहारा लेता है। जिसके मन में मोह है, उसमें बुद्धिमानी नहीं हो सकती। अतः न हम दूसरों के मोह से ग्रस्त हों और न ही दूसरों का हमारे साथ मोह का सम्बन्ध हो, तब ही हम स्वयं के मालिक बन सकते हैं।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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