मेरे विट्ठल
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मेरे विट्ठल
Image by Kiều Trường from Pixabay
कन्धे पर कपड़े का थान लादे और हाट-बाजार जाने की तैयारी करते हुए नामदेव जी से पत्नी ने कहा - भगत जी! आज घर में खाने को कुछ भी नहीं है। आटा, नमक, दाल, चावल, गुड़ और शक्कर सब खत्म हो गए हैं। शाम को बाजार से आते हुए घर के लिए राशन का सामान लेते आइएगा।
भक्त नामदेव जी ने उत्तर दिया - देखता हूँ! जैसी विट्ठल जी की इच्छा। अगर कोई अच्छा मूल्य मिला, तो निश्चय ही घर में आज धन-धान्य आ जायेगा।
पत्नी बोली - संत जी! अगर अच्छी कीमत ना भी मिले, तब भी इस बुने हुए थान को बेचकर कुछ राशन तो ले आना। घर के बड़े-बूढ़े तो भूख बर्दाश्त कर लेंगे पर बच्चे अभी छोटे हैं, उनके लिए तो कुछ ले ही आना।
जैसी मेरे विट्ठल की इच्छा। ऐसा कहकर भक्त नामदेव जी हाट-बाजार को चले गए।
बाजार में उन्हें किसी ने पुकारा - वाह सांई! कपड़ा तो बड़ा अच्छा बुना है और ठोक भी अच्छी लगाई है। तेरा परिवार बसता रहे। ये फकीर ठंड में कांप-कांप कर मर जाएगा। दया कर के रब के नाम पर दो चादरों का कपड़ा इस फकीर के ऊपर ओढा़ दे।
भक्त नामदेव जी - दो चादरों में कितना कपड़ा लगेगा फकीर जी?
फकीर ने जितना कपड़ा मांगा, संयोग से भक्त नामदेव जी के थान में कुल कपड़ा उतना ही था और भक्त नामदेव जी ने पूरा थान उस फकीर को दान कर दिया।
दान करने के बाद जब भक्त नामदेव जी घर लौटने लगे तो उनके सामने परिजनों के भूखे चेहरे नजर आने लगे।
फिर पत्नी की कही बात, कि घर में खाने की सब सामग्री ख़त्म है। दाम कम भी मिले तो भी बच्चों के लिए तो कुछ ले ही आना।
अब दाम तो क्या, थान भी दान जा चुका था।
भक्त नामदेव जी एकांत मे पीपल की छाँव मे बैठ गए।
जैसी मेरे विट्ठल की इच्छा।
जब सारी सृष्टि की सार-पूर्ती वो खुद करता है, तो अब मेरे परिवार की सार भी वो ही करेगा और फिर भक्त नामदेव जी अपने हरि विट्ठल के भजन में लीन हो गए।
अब भगवान कहां रुकने वाले थे।
भक्त नामदेव जी ने सारे परिवार की जिम्मेवारी अब उनके सुपुर्द जो कर दी थी।
अब भगवान जी ने भक्त जी की झोंपड़ी का दरवाजा खटखटाया।
नामदेव जी की पत्नी ने पूछा - कौन है?
नामदेव का घर यही है न? भगवान जी ने पूछा।
अंदर से आवाज हां जी .... यही है, आपको कुछ चाहिये ....?
भगवान सोचने लगे कि धन्य है नामदेव जी का परिवार। घर में कुछ भी नहीं है फिर भी हृदय में देने की, सहायता की जिज्ञासा है।
भगवान बोले - दरवाजा खोलिये।
लेकिन आप हैं कौन?
भगवान जी ने कहा - सेवक की क्या पहचान होती है भगतानी? जैसे नामदेव जी विट्ठल के सेवक, वैसे ही मैं नामदेव जी का सेवक हूँ। ये राशन का सामान रखवा लो।
पत्नी ने दरवाजा पूरा खोल दिया।
फिर इतना राशन घर में उतरना शुरू हुआ कि घर के जीवों की घर में रहने की जगह ही कम पड़ गई।
इतना सामान! नामदेव जी ने भेजा है? मुझे नहीं लगता - पत्नी ने पूछा।
भगवान जी ने कहा - हाँ भगतानी! आज नामदेव का थान सच्ची सरकार ने खरीदा है।
जो नामदेव का सामर्थ्य था उसने भुगता दिया और अब जो मेरी सरकार का सामर्थ्य है वो चुकता कर रही है।
और जगह बताओ। सब कुछ आने वाला है भगत जी के घर में।
शाम ढलने लगी थी और रात का अंधेरा अपने पांव पसारने लगा था। सामान रखवाते-रखवाते पत्नी थक चुकी थी। बच्चे घर में अमीरी आते देख खुश थे। वो कभी बोरे से शक्कर निकाल कर खाते और कभी गुड़। कभी मेवे देख कर मन ललचाते और झोली भर-भर कर मेवे लेकर बैठ जाते। उनके बाल मन अभी तक तृप्त नहीं हुए थे।
भक्त नामदेव जी अभी तक घर नहीं आये थे, पर सामान आना लगातार जारी था।
आखिर पत्नी ने हाथ जोड़ कर कहा - सेवक जी! अब बाकी का सामान संत जी के आने के बाद ही आप ले आना।
हमें उन्हें ढूंढने जाना है क्योंकि वो अभी तक घर नहीं आए हैं।
भगवान जी बोले - वो तो गाँव के बाहर पीपल के नीचे बैठकर विट्ठल सरकार का भजन-सिमरन कर रहे हैं।
अब परिजन नामदेव जी को देखने गये। सब परिवार वालों को सामने देखकर नामदेव जी सोचने लगे, जरूर ये भूख से बेहाल होकर मुझे ढूंढ रहे हैं।
इससे पहले की संत नामदेव जी कुछ कहते उनकी पत्नी बोल पड़ी - कुछ पैसे बचा लेने थे। अगर थान अच्छे भाव बिक गया था तो सारा सामान संत जी, आज ही खरीद कर घर भेजना था क्या?
भक्त नामदेव जी कुछ पल के लिए विस्मित हुए। फिर बच्चों के खिलते चेहरे देखकर उन्हें एहसास हो गया कि जरूर मेरे प्रभु ने कोई खेल खेला है।
पत्नी ने कहा, अच्छी सरकार को आपने थान बेचा और वो तो समान घर में भेजने से रुकता ही नहीं था। पता नहीं कितने वर्षों तक का राशन दे गया। उससे मिन्नत कर के रुकवाया - बस कर! बाकी संत जी के आने के बाद उनसे पूछ कर कहीं रखवाएँगे।
भक्त नामदेव जी हँसने लगे और बोले -
वो सरकार है ही ऐसी। जब देना शुरू करती है तो सब लेने वाले थक जाते हैं। उसकी बख़्शीश कभी भी खत्म नहीं होती। वह शक्ति, परम तत्व एक ही है, उसको किसी भी नाम से पुकारो। विट्ठल के नाम से, या राम, कृष्ण, साहेब के नाम से या अन्य किसी नाम से।
जब तक ईश्वर के बताये मार्ग पर चलोगे नहीं, परोपकार करोगे नहीं, एकाग्रचित्त होकर भजन करोगे नहीं, हमारे अंतर में बैठे राम, कृष्ण, विट्ठल, साहेब प्रसन्न होने वाले नहीं हैं।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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