एक पहेली (भाग - 6)
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एक पहेली (भाग - 6)
Image by Hanshin Jo from Pixabay
दोस्तों! सम्राट विक्रमादित्य से सम्बंधित कहानी का छठा भाग अब मैं आप सभी के सम्मुख रखने जा रहा हूं....।
पिछली कड़ी में आपने पढ़ा था कि वृद्ध ब्राह्मण ने अपने विषय में सम्राट् विक्रमादित्य को बताना शुरू किया - “हे राजन्! मैं तुम्हें बताता हूँ कि मैं कौन हूँ। जो भी मैं बताऊँगा, एक-एक शब्द ध्यान लगाकर सुनना।
मेरा नाम “काल” है। तुम जानते हो कि इस संसार में जितने भी प्राणी जन्म लेते हैं, उनकी मृत्यु निश्चित है। इसलिए इस भूमि को मृत्युलोक भी कहा जाता है।
जब प्राणी माता के गर्भ में आता है, तो आत्मा उसमें प्रवेश करती है अर्थात् वह सजीव हो उठता है। उसी समय, उसकी मृत्यु का समय, स्थान और परिस्थिति, अर्थात् मृत्यु किस प्रकार से होगी, यह सब विधाता की ओर से निश्चित कर दिया जाता है। राजन्! तुम यह भी जानते हो कि दुनिया के हर प्राणी के जन्म-मरण का लेखा-जोखा चित्रगुप्त के पास है।
जब भी किसी प्राणी की मृत्यु का समय आ जाता है, तो वह धर्मराज को सूचित करते हैं। अब क्योंकि सभी प्राणियों की मुक्ति (मृत्यु) का विभाग भगवान शिव के पास है।
अतः धर्मराज उस प्राणी को मृत्यु प्रदान करने की आज्ञा भगवान शिव से माँगते हैं। जब भगवान शिव आज्ञा दे देते हैं, तो धर्मराज मुझे अर्थात् “काल” को आज्ञा देते हैं।
तब मैं मृत्युलोक अर्थात् पृथ्वी पर आता हूँ। मुझे यह पता होता है कि किस प्राणी की, किस समय, किस स्थान पर और किस परिस्थिति में मृत्यु होगी? मैं उस प्राणी को निश्चित समय पर, उसी निश्चित स्थान पर लेकर जाता हूँ अथवा पहुँचा देता हूँ, जहाँ पर उसकी मृत्यु लिखी हुई है अथवा निश्चित है और जिस प्रकार से उसकी मृत्यु लिखी गई है, मैं उस स्थान पर वैसी ही परिस्थितियाँ अथवा हालात बना देता हूँ। उस लक्कड़हारे को मैंने नहीं मारा।”
राजा विक्रमादित्य बोले, “तुम फिर झूठ बोल रहे हो, मैने स्वयं अपनी आँखों से देखा है कि उस लक्कड़हारे की मृत्यु का कारण तुम ही थे।”
वृद्ध ब्राह्मण बोला, “बेशक, कारण मैं बना था, लेकिन सांसारिक लोग तो यही समझते हैं कि लक्कड़हारे की मृत्यु वृक्ष से गिर कर, वृक्ष का टहना टूटने के कारण हुई है और फिर मुझे तो मृत्यु देव धर्मराज के आदेश का पालन करना ही पड़ता है।
उसकी मृत्यु वृक्ष पर से गिरने के कारण लिखी गई थी। इसलिये मैंने रीछ बनकर वैसी ही परिस्थितियाँ व हालात पैदा कर दिए। नहीं तो जरा सोचो, यदि असली रीछ होता, तो क्या कभी पेड़ पर चढ़ पाता? कदापि नहीं। परन्तु वह तो मैं था और मेरे लिए तो कुछ भी असंभव नहीं है....।”
क्रमशः
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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