एक पहेली (भाग - 7)
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एक पहेली (भाग - 7)
प्रिय बंधुओं, सम्राट विक्रमादित्य से सम्बन्धित कहानी का सातवाँ और अंतिम भाग अब मैं आप सभी के सम्मुख प्रस्तुत करने जा रहा हूँ।
पिछली कड़ी में आपने पढ़ा था कि वृद्ध ब्राह्मण रूपी “काल” सम्राट् विक्रमादित्य को सांसारिक प्राणी के मृत्यु के समय की परिस्थिति एवं स्थान के विषय में जानकारी दे रहे थे।
अब आगे की कथा....
“अगर उन सिपाही भाईयों की बात करें, तो उनको भी मैंने नहीं मारा। उनकी मृत्यु एक दूसरे के हाथों लिखी थी। अतः उनके लिए मुझे सुन्दर लड़की बनना पड़ा। नाव में सवार कुछ लोगों की मृत्यु पानी में डूबने से लिखी थी, इसके लिए मुझे भयानक नाग का रूप धारण करना पड़ा। राजन्! मुझे लगता है कि अब तो आप अच्छी तरह समझ गये होंगे कि मैं कौन हूँ और तुम्हारी नगरी में क्यों आया था? और यह भी समझ गए होंगे कि समय, स्थान और परिस्थिति की सांसारिक प्राणी के जीवन में कितनी बड़ी भूमिका होती है।”
राजा विक्रमादित्य ने वृद्ध ब्राह्मण रूपी “काल” की बात बहुत ध्यान से सुनी और गम्भीर हो गये। “काल” कहने लगा, “हे राजन्! अब मैं चलता हूँ।” राजा विक्रमादित्य बोले, “हे कालदेव! आपने मुझे बहुत अच्छी जानकारी दी है, जिसके लिये मैं आपका बहुत आभार व्यक्त करता हूँ। कृपया, जाने से पहले मेरे एक और प्रश्न का उत्तर देते जाइए।”
कालदेव बोले, “पूछो, क्या पूछना चाहते हो? शीघ्र पूछो, मेरे पास इतना वक्त नहीं है।”
राजा विक्रमादित्य बोले, “कृपा करके मुझे यह बताइये कि मेरी मृत्यु कब, किस स्थान पर और किस प्रकार से होगी?” कालदेव बोले, “हे राजन्! मैं यह तो बता सकता हूँ कि तुम्हारी मृत्यु कहाँँ और किस प्रकार से होगी? परन्तु यह नहीं बता सकता कि तुम्हारी मृत्यु कब होगी?”
राजा विक्रमादित्य बोले, “हे कालदेव! मृत्यु का समय बताने में आपको क्या आपत्ति है?”
कालदेव बोले, “हे राजन्! यदि मैंने पहले ही आपको मृत्यु का समय बता दिया, तो इसी क्षण से आप चिन्ताग्रस्त हो जाओगे और आप तो जानते ही हो कि चिन्ता चिता समान होती है। अभी तो आपको अपने शासनकाल में बहुत से शुभ और जन कल्याण के कार्य करने हैं।”
राजा विक्रमादित्य बोले, “चलो! समय न सही, यह तो बता दो कि मेरी मृत्यु कहाँ और कैसे होगी? कालदेव बोले, “सुनो राजन्! तुम्हारी मृत्यु तुम्हारे ही महल में, सीढ़ियों पर से पाँव फिसल कर गिरने के कारण से होगी।”
इतनी बात सम्राट विक्रमादित्य को बता कर वृद्ध ब्राह्मण रूपी काल शीघ्रता से एक दिशा की ओर चल पड़े और कुछ दूर जाकर विलुप्त हो गये।
इस वक्त तक सूर्य भगवान् भी पूर्ण रूप से अस्त हो चुके थे। चारों तरफ़ अंधकार छा गया था। राजा विक्रमादित्य अब तक शारीरिक और मानसिक रूप से थक चुके थे। अतः मन में गहन सोच-विचार लिये हुए, तेज़ कदमों से अपने महल की ओर प्रस्थान कर गये और आगे चलकर, सचमुच में ऐसा ही हुआ।
राजा विक्रमादित्य की मृत्यु अपने महल की सीढ़ियों से फिसल कर गिरने से ही हुई थी और इस कथन की पुष्टि इतिहासकारों ने भी की है।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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