अयोध्या की महिमा
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अयोध्या की महिमा
Image by Patrick Gregerson from Pixabay
एक बार लक्ष्मण जी तीर्थ यात्रा पर जाने के लिए श्री राम जी से प्रार्थना करने लगे।
श्री राम ने मुस्कुराते हुए कहा - ‘भैया! यदि आपकी तीर्थ यात्रा जाने की इच्छा है तो जाओ परन्तु अयोध्या की व्यवस्था करके जाइए।’
लक्ष्मण जी ने पूछा - ‘आप मुस्कुरा क्यों रहे हैं?’
श्री राम जी ने कहा - ‘लक्ष्मण! समय आने पर तुम स्वयं ही समझ जाओगे।’
श्री राम की आज्ञा प्राप्त करके लक्ष्मण जी तीर्थ यात्रा जाने की तैयारी करने लगे। उनके साथ मंत्री, मित्र, सेवक व अयोध्या के निवासी भी जाने की तैयारी में लग गए। गुरु वशिष्ठ जी ने यात्रा का मुहूर्त श्रावण के शुक्ल पक्ष की पंचमी का निकाला। अयोध्या की व्यवस्था व यात्रा की तैयारी करते-करते लक्ष्मण जी को रात्रि के दो बज गए।
लक्ष्मण जी ने सोचा - आज प्रातः पांच बजे से यात्रा करनी है, अब क्या विश्राम करूँगा। अब ब्रह्म मुहूर्त होने वाला है। अतः पहले जाकर सरयू जी में स्नान कर लूँ।
यह सोचकर वे सरयू के किनारे आए। वहां बहुत प्रकाश हो रहा था। घाट पर हज़ारों राजा-महाराजा स्नान कर रहे थे। लक्ष्मण जी के सामने ही वे स्नान करके आकाश मार्ग से चले गए। लक्ष्मण जी सोचने लगे - आज कोई विशेष पर्व या उत्सव नहीं है, फिर ब्रह्मवेला में यहां इतनी भीड़ क्यों है?
ऐसा सोचते हुए वे महिलाओं के घाट के पास गए तो वहां भी हजारों माताएं स्नान कर रही थी। यह सब देखकर लक्ष्मण जी महल में लौट आए।
श्री राम जी ने पूछा - ‘लक्ष्मण! आज तुम्हारा तीर्थ यात्रा पर जाने का मुहूर्त था, परन्तु तुमने तो अभी तक स्नान भी नहीं किया है?’
लक्ष्मण जी ने घाट पर जो कुछ आश्चर्यजनक देखा, उसका सारा हाल श्री राम को सुना दिया।
श्री राम ने कहा - ‘आपने उन लोगों से पूछा नहीं कि वे कौन हैं और कहां से पधारे हैं?’
लक्ष्मण जी ने कहा - ‘यह तो बहुत बड़ी भूल हो गयी। कल मैं फिर सरयू-स्नान के लिए जाऊँगा और सबसे उनका परिचय पूछूंगा।’
दूसरे दिन लक्ष्मण जी फिर ब्रह्मवेला में सरयू के घाट पर गए। वहां कल की तरह हज़ारों लोग प्रसन्नतापूर्वक स्नान कर रहे थे। लक्ष्मण जी ने हाथ जोड़कर सबसे उनका परिचय पूछा -
वहां उपस्थित राजाओं ने कहा - ‘हम लोग काशी, गया, जगन्नाथ, बद्रीनाथ, केदारनाथ, रामेश्वर, द्वारकापुरी आदि समस्त तीर्थों के दर्शन करके आए हैं। अब हम देवताओं का रूप धारण करके यहां नित्य अयोध्याजी का दर्शन करने व सरयू का स्नान करने आते हैं।’
इसके बाद लक्ष्मण जी ने सभी माताओं को प्रणाम करके उनसे उनका परिचय पूछा।
माताओं ने कहा - ‘हम गंगा, यमुना, सरस्वती, ताप्ती, तुंगभद्रा, गण्डक, कोसी, कृष्णा, नर्मदा आदि भारत की हज़ारों पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद देवियों के रूप में नित्य श्री राम की अयोध्यापुरी का दर्शन करने और सरयू जी में स्नान करने आते हैं।’
उसी समय आकाशमार्ग से एक विकराल, काला पुरुष आया और सरयू में जा गिरा। स्नान करके जब वह बाहर निकला तो वह गौरवर्ण, हाथ में शंख, चक्र, गदा आदि लिए हुए था।
लक्ष्मण जी ने उनसे पूछा - ‘आप कौन हैं? अभी इतने काले थे और सरयू में गोता लगाते ही गौरवर्ण के हो गये।’
उन्होंने कहा - ‘मैं तीर्थराज प्रयाग हूँ! नित्य हजारों लोग स्नान करके मुझमें अपने पाप छोड़ जाते हैं, पाप का रंग काला होता है, इसलिए मैं काला हो जाता हूँ। सरयू में स्नान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं इसलिए मैं गौरवर्ण का हो गया हूँ।’
महल में आकर इस आश्चयकारी घटना को लक्ष्मण जी ने श्री राम को बताया।
श्री राम ने कहा - ‘लक्ष्मण! समस्त तीर्थ अयोध्या के दर्शन व सरयूजी में स्नान के लिए आते हैं और आप अयोध्या छोड़कर अन्य तीर्थों में जा रहे थे। आपने मुझसे मुस्कुराने का कारण पूछा था, तब मैंने कहा था कि उचित समय आने पर आप स्वयं जान जाएंगे। अब आप स्वयं निर्णय कर लो कि तीर्थ यात्रा पर जाना है या नहीं।’
लक्ष्मण जी, श्री राम के चरणों में गिर कर बोले - ‘अब यह दास कहीं किसी तीर्थ में नहीं जाएगा।’
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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