सच्ची पूंजी

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सच्ची पूंजी

Image by Dim Hou from Pixabay

एक समय की बात है। एक घने जंगल में ‘तेजा’ नाम का एक कौवा रहता था। उसके तीन घनिष्ठ मित्र थे। उनके नाम थे - सोनू चूहा, बिंदु हिरण और धीमेराम कछुआ। चारों में बहुत प्रेम था। एक दूसरे की वे मदद करते और खाली समय में साथ-साथ खेलकूद कर वक्त गुज़ारते थे।

एक बार उस जंगल में एक धूर्त शिकारी आया। उसने नदी के पास बड़ी चतुराई से अपना जाल बिछा दिया और झाड़ियों में छिप कर बैठ गया।

दुर्भाग्यवश उस जाल में बिंदु हिरण फस गया। उसने आज़ाद होने का बहुत प्रयत्न किया, परंतु वह आज़ाद नहीं हो पाया। उसे ढूंढते हुए उसके मित्र भी वहां पहुंच गए। छोटे-छोटे जीव उस विशाल लोहे के जाल के समक्ष लाचार थे। तभी अचानक उन्हें शिकारी आता हुआ दिखाई पड़ा। उसे देखते ही वे तीनों जल्दी से छिप गए। शिकारी हिरण को फंसा देखकर ख़ुश हो गया। उसने बिंदु को जाल से निकाला और उसके चारों पैर एक साथ रस्सी से बांध दिए। बिंदु बेचारा पीड़ा सहन न कर पाया और चीखता रह गया। शिकारी उसका मांस पकाने हेतु जंगल की सूखी लकड़ियाँ लेने चला गया।

रास्ता साफ होते ही बिंदु के मित्र उसके निकट आ पहुंचे। सोनू चूहे ने अपने तेज दातों से रस्सी चबानी शुरू कर दी। बिंदु आजाद होने ही वाला था कि शिकारी लकड़ियाँ बटोर कर वहां आ धमका। उसे देखते ही हिरण व उसके तीनों मित्र शीघ्रता से भाग खड़े हुए, लेकिन धीमेराम कछुए जी प्रकृति के अनुसार जल्दी भाग नहीं पाए। शिकारी ने सोचा - ‘हिरण का मांस न सही, आज कछुए का ही मांस खाया जाए।’ वह धीमे राम पर झपट पड़ा। शिकारी ने तुरंत एक घास की रस्सी बनाई और धीमे राम के चारों पाव बांध दिए। उसे अपने भाले पर लादकर वह चल पड़ा। निर्दयी शिकारी को कछुए को ले जाते देखकर तीनों मित्र विचलित हो उठे। अचानक तेजा कौए को एक तरकीब सूझी।

उसने बिंदु हिरन से कहा - ‘बिंदु भाई! धीमेराम को बचाने का तो बस एक ही उपाय नज़र आ रहा है। तुम नदी के पास, शिकारी से दूर मृत पड़े रहो और मैं तुम्हारी आंख खाने का ढोंग करूंगा। तब शिकारी हमें देखकर हमारी ओर आएगा और सोनू चूहा धीमेराम को बचाने का प्रयत्न करेगा।’

तेजा के अनुसार बिंदु मृत हिरण की भांति गिर पड़ा और तेजा अपनी चोंच से उस पर धीरे-धीरे वार करने लगा। धूर्त शिकारी ने जैसे ही मृत हिरण देखा, वह कछुए को जमीन पर पटक कर हिरण की ओर दौड़ा। इसी बीच सोनू चूहा धीमेराम के पास पहुंच गया और अपने दांतों से रस्सी काटने लगा। धीमेराम आज़ाद होते ही नदी के पानी में ओझल हो गए। सोनू चूहा भी भाग खड़ा हुआ। अपने दोस्तों के सुरक्षित होते ही तेजा कौआ उड़ गया और बिंदु चौकड़ी भरता हुआ घने जंगल में ओझल हो गया।

शिकारी पहले तो कुछ भी नहीं समझा, फिर सिर पटकता रह गया। दोनों शिकार उसके हाथ से जा चुके थे। इस प्रकार चार छोटे जानवर अपनी सूझ-बूझ से बड़े शिकारी के चंगुल से बच निकले। उन छोटे-छोटे जानवरों के पास एकता, मित्रता और सूझ-बूझ के अलावा और कुछ भी नहीं था, फिर भी उन्होंने पापी एवं ताकतवर शिकारी को हरा दिया। वास्तव में सच्ची दोस्ती ही सच्ची पूंजी है। उन्होंने यह साबित कर दिखाया।

सुविचार - सच्ची दोस्ती से अधिक कीमती रत्न कोई नहीं होता।

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सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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