वेश नहीं वृत्ति बदलो
👼👼💧💧👼💧💧👼👼 वेश नहीं वृत्ति बदलो Image by Jörg Möller from Pixabay एक राजा था। बहुत ही न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठ। उसकी राजधानी में जब भी कोई संत महापुरुष आते, वह सत्संग करने पहुँच जाता। एक बार एक पहुँचे हुए संत रामसेन मुनि अपने चार शिष्यों सहित राजधानी अवंतिका पधारे। चातुर्मास का समय निकट था। अतः चातुर्मास स्थापना नगर उद्यान में कर ली। राजा जयसिंह ने चातुर्मास साधु सेवा, दर्शन, प्रवचन में गुज़ार दिया। संतों के वैराग्य वर्धक तत्वोपदेश से राजा का मन वैराग्य से युक्त हो गया। उन्होंने अपनी बात संघ नायक भगवंत रामसेन मुनि के सम्मुख रखी। मुनि श्री ने राजा को समझाया - मुनिचर्या सामान्य बात नहीं है। जीवन पर्यंत खड़्ग की धार पर चलने की साधना है। उपसर्ग और परिषहों से भरा मार्ग है। इसमें तो पग-पग पर सावधानी की ज़रूरत है। यहाँ तो किंचित भी कषाय जीवित रही, तो उसका साधुत्व विलुप्त हो जाता है। आप जैसे सुविधा भोगी जीवों को मन पर नियंत्रण रखना, संपूर्ण व्योम को सिंदूर की डिब्बी में भरने जैसा दुष्कर कार्य है। अभी आप ब्रह्मचर्य की साधना पूर्वक क्षुल्लक व्रत स्वीकार करो, पश्चात् साधुव्रत धारण करना। रा...