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Showing posts from August, 2023

वेश नहीं वृत्ति बदलो

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 वेश नहीं वृत्ति बदलो Image by Jörg Möller from Pixabay एक राजा था। बहुत ही न्यायप्रिय और धर्मनिष्ठ। उसकी राजधानी में जब भी कोई संत महापुरुष आते, वह सत्संग करने पहुँच जाता। एक बार एक पहुँचे हुए संत रामसेन मुनि अपने चार शिष्यों सहित राजधानी अवंतिका पधारे। चातुर्मास का समय निकट था। अतः चातुर्मास स्थापना नगर उद्यान में कर ली। राजा जयसिंह ने चातुर्मास साधु सेवा, दर्शन, प्रवचन में गुज़ार दिया। संतों के वैराग्य वर्धक तत्वोपदेश से राजा का मन वैराग्य से युक्त हो गया। उन्होंने अपनी बात संघ नायक भगवंत रामसेन मुनि के सम्मुख रखी। मुनि श्री ने राजा को समझाया - मुनिचर्या सामान्य बात नहीं है। जीवन पर्यंत खड़्ग की धार पर चलने की साधना है। उपसर्ग और परिषहों से भरा मार्ग है। इसमें तो पग-पग पर सावधानी की ज़रूरत है। यहाँ तो किंचित भी कषाय जीवित रही, तो उसका साधुत्व विलुप्त हो जाता है। आप जैसे सुविधा भोगी जीवों को मन पर नियंत्रण रखना, संपूर्ण व्योम को सिंदूर की डिब्बी में भरने जैसा दुष्कर कार्य है। अभी आप ब्रह्मचर्य की साधना पूर्वक क्षुल्लक व्रत स्वीकार करो, पश्चात् साधुव्रत धारण करना। रा...

अपने तो अपने होते हैं

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 अपने तो अपने होते हैं Image by NoName_13 from Pixabay ज्योति और उसका पति सजल दोनों एम.एन.सी. में काम करते हैं और उनका एक साल का बेटा है, पर ज्योति को करीब पंद्रह दिन से वह काफ़ी सुस्त लगने लगा था। बच्चे को उनके पीछे देखने के लिए एक बारह घंटे काम करने वाली कल्याणी है। अभी एक महीने से ही ज्योति ने अपनी नौकरी दोबारा शुरू की है। वह ऑफिस में भी बीच-बीच में बच्चे को देख सके, इस वजह से घर में सी.सी.टी.वी. लगवाया है। सी.सी.टी.वी. काम वाली की अनुपस्थिति में लगवाया था, इसलिए उसे इसका पता ही नहीं था। अगले दिन ज्योति ऑफिस में जैसे ही अपने बेटे की झलक देखने के लिए बैठी तो उसने देखा कि तेज़ आवाज़ में टी.वी. चल रहा है। कल्याणी का पति और सास भी उसके घर पर ही मौजूद थे। उसका पति आराम से ए.सी. चलाकर लेटा था। सास भी आराम से खा-पी रही थी। बेटा रो रहा था तो उसको कुछ खिलाने-पिलाने की जगह उसको कुछ सुंघाकर सुलाने की तैयारी थी। ये सब देखकर उससे रहा नहीं गया। उसने तुरंत पति को भी फोन करके घर चलने के लिए कहा। कल्याणी को शक न हो, इसलिए ज्योति ने घर पर बच्चे के लिए फोन किया और यह दिखाया कि वह शाम...

माँ - एक छोटी सी

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 माँ - एक छोटी सी Image by PixelAnarchy from Pixabay एक दीन-हीन आठ-दस वर्ष की लड़की से दुकान वाला बोला - “छुटकी! जा देख, तेरा छोटा भाई रो रहा है। तुमने दूध नहीं पिलाया क्या?” “नहीं, सेठ! मैंने तो सुबह ही दूध पिला दिया था।” “अच्छा! तू जा। जाकर देख। मैं ग्राहक संभालता हूँ।” एक ग्राहक सेठ से - “अरे भाई! ये कौन लड़की है, जिसे तुमने इतनी छूट दे रखी है? परसों सारे गिलास तोड़ दिये। कल एक आदमी पर चाय गिरा दी और तुमने इसे कुछ नहीं कहा!!” सेठ - “भाई साहब! ये वह लड़की है, जो शायद तुम्हें आज के कलयुग में देखने को न मिले।” ग्राहक - “मैं समझा नहीं!” सेठ - “चलो! तुम्हें शुरू से बताता हूँ। एक दिन दुकान पर बहुत भीड़ थी और कोई नौकर भी नहीं था। ये लड़की अपने छोटे भाई को गोद में लिए, काम माँगने आयी और इसकी शर्त सुनेगा? इसने शर्त रखी कि मुझे काम के पैसे नहीं चाहिए। बस काम के बीच में मेरा भाई रोया तो मैं भाई को पहले देखूंगी। सुबह, दोपहर, शाम और रात को चार टाइम दूध चाहिए बस! रहने के लिए मैं इसी होटल के किचन में रहूँगी। खाने के लिए जो बचेगा, उसे ही खा लूंगी। मेरे भाई के रोने पर आप चिल्लाओगे न...

ज्ञानवाणी

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 ज्ञानवाणी Image by NoName_13 from Pixabay राजस्थान के हाडोती क्षेत्र के बूंदी नगर में रामदास जी नाम के एक बनिया थे। वे व्यापार करने के साथ-साथ भगवान की भक्ति-साधना भी करते थे और नित्य संतों की सेवा भी किया करते थे। भगवान ने अपने भक्तों (संतों) की पूजा को अपनी पूजा से श्रेष्ठ माना है क्योंकि संत लोग अपने पवित्र संग से असंतों को भी अपने जैसा संत बना लेते हैं। भगवान की इसी बात को मानकर भक्तों ने संतों की सेवा को भगवान की सेवा से बढ़कर माना है। ‘प्रथमभक्ति संतन कर संगा।’ रामदास जी सारा दिन नमक-मिर्च, गुड़ आदि की गठरी अपनी पीठ पर बांध कर गांव में फेरी लगाकर सामान बेचते थे जिससे उन्हें कुछ पैसे और अनाज मिल जाता था। एक दिन फेरी में कुछ सामान बेचने के बाद गठरी सिर पर रखकर घर की ओर चले। गठरी का वजन अधिक था पर वह उसे जैसे-तैसे ढो रहे थे। भगवान श्री राम एक किसान का रूप धारण कर आये और बोले - ‘भगतजी! आपका दुःख मुझसे देखा नहीं जा रहा है। मुझे भार वहन करने का अभ्यास है। मुझे भी बूंदी जाना है। मैं आपकी गठरी घर पहुंचा दूंगा।’ गीता (अध्याय 9 श्लोक 14) में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है - ...

तो फिर मोक्ष कब?

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 तो फिर मोक्ष कब? Image by Светлана Бердник from Pixabay मानव मात्र मोक्ष का अधिकारी है और मानव शरीर मोक्ष प्राप्त करने के लिए ही मिला है। मानव शरीर धारण करके मोक्ष प्राप्त नहीं करेंगे तो फिर चौरासी लाख योनियों में फिर से भटकने की अवस्था आ जाएगी। मनुष्य मात्र देह के बंधनों से छूटकर परम ब्रह्म में लीन होने की इच्छा करे, तो वह इसके लिए समर्थ भी है और स्वतंत्र भी है, क्योंकि वह परात्पर ब्रह्म का ही अंश है और उसमें ही लीन होने के लिए, मोक्ष प्राप्त करने के लिए उसका आखिरी सर्जन हुआ है। किंतु जब तक वह इस जन्म के संपूर्ण प्रारब्ध भोग नहीं लेगा और पिछले अनादि काल के अनेक जन्म-जन्मांतर के जमा हुए असंख्य, हिमालय भर जाए उतने संचित कर्मों के ढेर, इस जीवनकाल के दरमियान साफ नहीं करेगा, उन कर्मों को भस्म नहीं करेगा, तब तक उसको बार-बार अनंत काल तक अनेक जन्म, अनेक देह धारण करने ही पड़ेंगे और तब तक जीव को मोक्ष मिल ही नहीं सकता। जीव को मोक्ष प्राप्त करने की तीव्र इच्छा हो जाए, उसको प्राप्त करने का लक्ष्य बना ले, तो उसे तमाम संचित कर्मों का ध्वंस करना पड़ेगा। तमाम संचित कर्मों को ज्ञा...

श्रद्धा और अहं

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 श्रद्धा और अहं Image by Christel SAGNIEZ from Pixabay साधक को धर्म साधना का जो पक्ष शक्ति देता है, उसका नाम है श्रद्धा या आस्था। आस्था ज्ञान की सामग्री नहीं है, जानकारियों का जोड़ नहीं है। वह है ईश्वरीय श्रद्धा, संपूर्ण विश्व को समर्पित एक अवस्था; जो मन किसी आस्था में ध्रुव की भांति निश्चल मन से करता है, उसे स्वतः अलौकिक व चमत्कारिक शक्तियों की रिद्धि-सिद्धियों का अधिपतित्व प्राप्त हो जाता है। आस्था के पथ पर अडिग खड़ा मन किसी भी परिस्थिति में स्वयं में निराश्रित, निस्सहाय अनुभूत नहीं करता। दैवीय अनुकंपाएं उस पर बरसती रहती हैं। इसके विपरीत श्रद्धा से रीता घट, जो मात्र मिथ्या ज्ञान के दम्भ से भरा होता है, वह केवल हास्य और कष्टों का पात्र बनता है। उसे जगह-जगह छोटे-बड़े सभी के समक्ष मात खानी पड़ती है। एक शिष्य और गुरु का उदाहरण इसका साक्ष्य है। एक दिन एक शिष्य, जिसे अपने गुरु पर आगाध श्रद्धा थी, गुरु के दर्शनार्थ अपने घर से गुरु आश्रम की ओर चल पड़ा। रास्ते में एक नदी पड़ी। उसे अपने गुरु पर गहरी श्रद्धा थी। अतः वह नदी को अपने गुरु के बीच में बाधक नहीं बनाना चाहता था। वह नदी ...

संस्कार

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👼👼💧💧👼💧💧👼👼 संस्कार Image by Christophe BILLARD from Pixabay एक गांव में तालाब था। उस तालाब पर तीन स्त्रियाँ पानी भरने गयी। वहाँ पर पहले से ही एक बूढ़ा आदमी बैठ कर कुछ खा रहा था। तीनों औरतें जमीन पर अपने-अपने घड़े रख कर बैठ गई और उस बूढ़े को सुना कर आपस में बातें करने लगी। एक औरत ने दूसरी औरत से कहा - मेरा लड़का पंडित पोथाराम का शिष्य है और बाहर से पढ़ कर शास्त्रों का ज्ञान सीख कर आया है। उसने पूरे मोहल्ले में धूम मचा कर रख दी है। पूरे गांव में बस हमारे लड़के के ही चर्चे हो रहे हैं। अपने बेटे की बड़ाई करते हुए उसने कहा कि सुनो सखी! वह आकाश के तारों को गिन कर उनका नाम बता देता है। स्वर्गलोक की सारे बातें उसे पूरी तरह मालूम हैं। यमराज के दरबार में कैसे फैसला होता है, उसको ये भी मालूम है। सभी देवगणों के नाम, यमदूतों के नाम और सभी नरकों के नाम-धाम सब उसे याद हैं। पता नहीं, वह कैसे भगवान की सब बातें जान लेता है? जब वह शादी-ब्याह कराता है, तो सारे पंडित उसके आगे चुप हो जाते हैं। मैं ऐसे पंडित बेटे को जन्म देकर अपने को बहुत धन्य मानती हूँ। बाहर जब भी कोई मुझे देखता है, तो कहता है - देखो! श...