अपने तो अपने होते हैं
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अपने तो अपने होते हैं
Image by NoName_13 from Pixabay
ज्योति और उसका पति सजल दोनों एम.एन.सी. में काम करते हैं और उनका एक साल का बेटा है, पर ज्योति को करीब पंद्रह दिन से वह काफ़ी सुस्त लगने लगा था। बच्चे को उनके पीछे देखने के लिए एक बारह घंटे काम करने वाली कल्याणी है। अभी एक महीने से ही ज्योति ने अपनी नौकरी दोबारा शुरू की है। वह ऑफिस में भी बीच-बीच में बच्चे को देख सके, इस वजह से घर में सी.सी.टी.वी. लगवाया है। सी.सी.टी.वी. काम वाली की अनुपस्थिति में लगवाया था, इसलिए उसे इसका पता ही नहीं था।
अगले दिन ज्योति ऑफिस में जैसे ही अपने बेटे की झलक देखने के लिए बैठी तो उसने देखा कि तेज़ आवाज़ में टी.वी. चल रहा है। कल्याणी का पति और सास भी उसके घर पर ही मौजूद थे। उसका पति आराम से ए.सी. चलाकर लेटा था। सास भी आराम से खा-पी रही थी। बेटा रो रहा था तो उसको कुछ खिलाने-पिलाने की जगह उसको कुछ सुंघाकर सुलाने की तैयारी थी। ये सब देखकर उससे रहा नहीं गया। उसने तुरंत पति को भी फोन करके घर चलने के लिए कहा। कल्याणी को शक न हो, इसलिए ज्योति ने घर पर बच्चे के लिए फोन किया और यह दिखाया कि वह शाम तक ही घर पहुंचेगी।
कल्याणी पूरी तरह निश्चिंत थी। उसका पति और सास भी घर पर ही थे। जैसे ही ज्योति और उसके पति ने अपनी चाबी से घर का दरवाज़ा खोला, तो वह उसके पति और सास को वहीं देखकर हैरान रह गई। सी.सी.टी.वी. से वे लोग अनजान थे। कल्याणी ने झूठ बोलने की पूरी कोशिश की और कहा कि उसकी सास और पति को कुछ काम था, इसलिए वे लोग यहाँ आए हैं। जब ज्योति ने थोड़ा सख्ती से पुलिस की धमकी दी, तब उसने बताया कि ये सब पंद्रह दिन से चल रहा है और बच्चे को वे लोग हल्की मात्रा में अफ़ीम देकर सुला देते थे। यह सब सुनकर ज्योति के तो पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
उसने कल्याणी और उसके घरवालों को धक्के देकर निकाल दिया। अब ज्योति बहुत देर तक अपने बेटे को सीने से लगाकर फफक कर रोती रही। आज वो अपनी सास को अपने साथ न रखकर गांव भेजने के निर्णय पर आठ-आठ आँसू रो रही थी। उसको याद आ रहा था कि कैसे उसके बेटे के पैदा होने से कुछ समय पहले आकर उसकी सास ने सब संभाल लिया था, पर ज्योति को तो उनका कुछ भी कहना-सुनना अपने ऊपर नियंत्रण लगता था। तभी तो बेटे के छः महीने का होते-होते उसने बच्चे को रखने के लिए कामवाली को ढूंढना शुरू कर दिया था। आज उसे पता चल रहा था कि एक बच्चा अपने दादा-दादी के साथ जितना सुरक्षित है, उतना किसी के साथ नहीं। सजल ने भी उसको बहुत समझाया था, पर उसने एक न सुनी थी।
बेटे के लिए ज्योति ने नौकरी छोड़ने का फैसला लिया क्योंकि अब सास को वापस बुलाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी, पर सजल ने चुपचाप उन्हें सब कुछ फोन पर बता दिया था। अगले दिन सुबह-सुबह घंटी बजी तो ज्योति ने देखा कि सामने उसकी सास खड़ी थी। ज्योति उनके चरणों में झुक गई। वे उसे गले लगाती हुई बोली - बेटा! तैयार हो जा, नहीं तो ऑफिस के लिए देर हो जाएगी। वैसे भी अपने तो अपने ही होते हैं। उनका मुकाबला किसी और से नहीं किया जा सकता।
दोस्तों! एकल परिवार कल्चर का उत्तरोत्तर बढ़ना समाज में विकट स्थितियों को जन्म दे रहा है। हम बच्चों की देखभाल के लिए नौकर रख सकते हैं, पर घर के बड़े-बुजुर्गों को उस घर में रहने से हमें दिक्कत होती है। नौकर तो रखें, पर उनके ऊपर निगरानी रखने के लिए बड़े-बुजुर्गों का होना भी अत्यन्त आवश्यक है।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
🙏🙏🙏
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