कॉन्टैक्ट लेंस

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कॉन्टैक्ट लेंस

Image by Ralph from Pixabay

एक सच्ची कहानी।

विशाल ग्रेनाइट चट्टान की शीर्ष चोटी से ब्रेंडा लगभग आधे रास्ते पर थी। अपने इस पहले पर्वतारोहण प्रयास के दौरान वह एक कगार पर खड़ी होकर सांस ले रही थी। जब वह वहाँ आराम कर रही थी, तो सुरक्षा रस्सी उसकी आँख से टकरा गई और उसकी आँखों में लगा कॉन्टैक्ट लेंस बाहर गिर गया।

“यह क्या?’’, उसने सोचा, “यहाँ मैं एक चट्टान के कगार पर हूँ, जमीन से सैंकड़ों फीट ऊपर और अब मुझे सब कुछ धुंधला दिखाई दे रहा है।”

उसने बार-बार इस उम्मीद में चारों ओर देखा कि किसी तरह वह पहाड़ की चोटी तक पहुँच जाए, लेकिन उसे कोई रास्ता नहीं दिखा।

उसने महसूस किया कि उसके अंदर घबराहट बढ़ रही है, इसलिए उसने प्रार्थना करना शुरू कर दिया। उसने आंतरिक शांति के लिए प्रार्थना की और उसने प्रार्थना की कि उसे उसका कॉन्टैक्ट लेंस मिल जाए।

जैसे-तैसे करके जब वह शीर्ष चोटी पर पहुँच गई, तो एक दोस्त ने लेंस के लिए उसकी आँख और उसके कपड़ों की अच्छे से जाँच की, लेकिन वह नहीं मिला। हालांकि वह अब शांत थी क्योंकि वह शीर्ष पर पहुँच चुकी थी, पर वह दुःखी भी थी क्योंकि वह पहाड़ों के पार स्पष्ट रूप से नहीं देख सकती थी।

उसने भगवान से प्रार्थना की - “हे भगवान! आप इन सभी पहाड़ों को देख सकते हैं। आप हर पत्थर और पत्ते को जानते हैं और आप अच्छे से जानते हैं कि मेरा कॉन्टैक्ट लेंस कहाँ है? कृपया मेरी मदद करें।”

थोड़ी देर बाद पर्वतारोहियों का एक और दल शीर्ष चोटी पर पहुँचा। उस दल का एक सदस्य चिल्लाया, “अरे! तुम लोगों में से किसी का कॉन्टैक्ट लेंस गुम हो गया है क्या?”

यह काफी चौंकाने वाला था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पर्वतारोही ने इसे कहाँ देखा? एक चींटी चट्टान के ऊपर एक टहनी पर धीरे-धीरे चल रही थी और वह कॉन्टैक्ट लेंस उसके ऊपर था।

कहानी यहीं खत्म नहीं होती है। ब्रेंडा के पिता एक कार्टूनिस्ट थे। जब उन्होंने चींटी, प्रार्थना और कॉन्टैक्ट लेंस की अविश्वसनीय कहानी सुनी तो उन्होंने चींटी का एक कार्टून चित्र बनाया, जिसमें उस कॉन्टैक्ट लेंस उठाती चींटी को शीर्षक दिया गया, “भगवान मुझे नहीं पता कि आप मुझसे यह चीज़ क्यों उठवाना चाहते हैं। मैं इसे खा नहीं सकती और यह बहुत भारी भी है। लेकिन अगर आप मुझसे यही चाहते हो, तो मैं इसे आपके लिए अवश्य उठाऊंगी।”

क्या कई बार कुछ जिम्मेदारियाँ निभाते समय ऐसा विचार आता है कि मैं यह काम क्यों करूँ, मेरा इसमें क्या फायदा? कुदरत योग्यवान का आह्वान नहीं करती, वह जिसका आह्वान करती है, उसे योग्य बना देती है।

“हम ईश्वर के साथ निरंतर संपर्क बनाते हुए जिस भी चीज़ को महसूस करते हैं, सोचते हैं और करते हैं, उसमें ईश्वर के प्रति जागरूक रहते हैं। इसका सबसे आसान तरीका है स्वीकार्यता और समर्पण।”

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 सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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विनम्र निवेदन

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