एक बालक की सहज पूजा
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एक बालक की सहज पूजा
Image by Humpelfinkel from Pixabay
एक बच्चे के दादा जी शाम को घूमकर आने के बाद बच्चे के साथ प्रतिदिन सांयकालीन पूजा करते थे। बच्चा भी उनकी इस पूजा को देखकर अंदर से स्वयं इस अनुष्ठान को पूर्ण करने की इच्छा रखता था, किन्तु दादा जी की उपस्थिति उसे अवसर नहीं देती थी।
एक दिन दादा जी को शाम को आने में विलंब हुआ। इस अवसर का लाभ लेते हुए बच्चे ने समय पर पूजा प्रारम्भ कर दी।
जब दादा जी आये, तो दीवार के पीछे से बच्चे की पूजा देख रहे थे।
बच्चा बहुत सारी अगरबत्ती एवं अन्य सभी सामग्री का अनुष्ठान में यथाविधि प्रयोग करता है और फिर अपनी प्रार्थना में कहता है कि -
भगवान जी! प्रणाम।
आप मेरे दादा जी को स्वस्थ रखना और दादी के घुटनों के दर्द को ठीक कर देना, क्योंकि दादा और दादी को कुछ हो गया, तो मुझे चॉकलेट कौन देगा?
फिर आगे कहता है कि भगवान जी! मेरे सभी दोस्तों को अच्छा रखना, वरना मेरे साथ कौन खेलेगा?
मेरे पापा और मम्मी को ठीक रखना। घर के कुत्ते को भी ठीक रखना क्योंकि उसे कुछ हो गया तो घर को चोरों से कौन बचाएगा?
लेकिन भगवान जी! यदि आप बुरा न मानो तो एक बात कहूँ! सबका ध्यान रखना, लेकिन उससे पहले आप अपना ध्यान रखना, क्योंकि आपको कुछ हो गया, तो हम सबका क्या होगा?
बच्चे की इस प्रथम सहज प्रार्थना को सुनकर दादा जी की आँखों में भी आंसू आ गए, क्योंकि ऐसी प्रार्थना उन्होंने न कभी की थी और न सुनी थी।
कदाचित इसी सहजता का अभाव मनुष्य को सभी प्रकार के यथोचित ईश्वरीय अनुष्ठानोपरांत भी जन्म-जन्मांतर तक ईश्वर का बोध भी नहीं करा पाता है। यदि ईश्वर को अपने आस-पास महसूस करना है, तो अपनी प्रार्थना में अपने अन्तर्मन से उठने वाले भावों का समावेश करो।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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