महात्मा और धोबी

👼👼💧💧👼💧💧👼👼

महात्मा और धोबी

Image by Stefan Schweihofer from Pixabay

एक नदी तट पर स्थित बड़ी सी शिला पर एक महात्मा बैठे हुए थे। वहाँ एक धोबी आता है। किनारे पर वही मात्र शिला थी, जहाँ वह रोज कपड़े धोता था। उसने शिला पर महात्मा जी को बैठे देखा तो सोचा - अभी उठ जाएंगे, थोड़ा इन्तजार कर लेता हूँ, अपना काम बाद में कर लूंगा। एक घंटा हुआ, दो घंटे हुए फिर भी महात्मा उठे नहीं।

अंत में धोबी ने हाथ जोड़कर विनयपूर्वक निवेदन किया कि महात्मन्! यह मेरे कपड़े धोने का स्थान है। आप कहीं अन्यत्र विराजें तो मैं अपना कार्य निपटा लूं। महात्मा जी वहाँ से उठकर थोड़ी दूर जाकर बैठ गए। धोबी ने कपड़े धोने शुरू किए। पछाड़-पछाड़ कर कपड़े धोने की क्रिया में कुछ छींटे उछल कर महात्मा जी पर गिरने लगे। महात्मा जी को क्रोध आया। वे धोबी को गालियाँ देने लगे। उससे भी शान्ति न मिली तो पास रखा धोबी का डण्डा उठाकर उसे ही मारने लगे। सांप ऊपर से कोमल मुलायम दिखता है, किन्तु पूंछ दबने पर ही असलियत की पहचान होती है।

महात्मा को क्रोधित देख धोबी ने सोचा - अवश्य ही मुझ से कोई अपराध हुआ है। अतः वह हाथ जोड़ कर महात्मा से माफी मांगने लगा।

महात्मा ने कहा - दुष्ट! तुझ में शिष्टाचार तो है ही नहीं। देखता नहीं तू गंदे छींटे मुझ पर उड़ा रहा है?

धोबी ने कहा - महाराज! शान्त हो जाएं। मुझ गंवार से चूक हो गई। लोगों के गंदे कपड़े धोते-धोते मेरा ध्यान ही न रहा, क्षमा कर दें।

धोबी का काम पूर्ण हो चुका था, साफ कपड़े समेटे और महात्मा जी से पुनः क्षमा मांगते हुए लौट गया। महात्मा ने देखा कि धोबी वाली उस शिला से निकला गंदला पानी मिट्टी के सम्पर्क से स्वच्छ और निर्मल होकर पुनः सरिता के शुभ्र प्रवाह में लुप्त हो रहा था, लेकिन महात्मा के अपने शुभ्र वस्त्रों में तीव्र उमस और सीलन भरी बदबू बस गई थी।

कौन धोबी और कौन महात्मा? यथार्थ में धोबी ही असली महात्मा था, संयत रह कर समता भाव से वह लोगों के दाग़ दूर करता था।

महात्मा को अपनी गलती का एहसास हो गया था। वे आगे चलकर अपने क्रोध पर नियंत्रण कर महान महात्मा बने।

“जिस तरह उबलते हुए पानी में हम अपना प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते, उसी तरह क्रोध की अवस्था में हमें अपने भावों का गंदलापन दिखाई नहीं देता। हम यह नहीं समझ पाते कि हमारी आत्मा की भलाई किस बात में है।”

--

 सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏


विनम्र निवेदन

यदि आपको यह लेख प्रेरणादायक और प्रसन्नता देने वाला लगा हो तो कृपया comment के द्वारा अपने विचारों से अवगत करवाएं और दूसरे लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए अधिक-से-अधिक share करें।

धन्यवाद।

Comments

Popular posts from this blog

अगली यात्रा - प्रेरक प्रसंग

Y for Yourself

आज की मंथरा

आज का जीवन -मंत्र

बुजुर्गों की सेवा की जीते जी

स्त्री के अपमान का दंड

आपस की फूट, जगत की लूट

वाणी हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है

मीठी वाणी - सुखी जीवन का आधार

वाणी बने न बाण