मुट्ठी खोलो बंधन मुक्त हो जाओ

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मुट्ठी खोलो बंधन मुक्त हो जाओ

Image by 👀 Mabel Amber, who will one day from Pixabay

एक बार एक संत अपनी कुटिया में शांत बैठे थे, तभी उन्हें कुछ शोर सुनाई दिया। जा कर देखा तो एक बंदर ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था। उसका एक हाथ घड़े के अंदर था और वह बंदर अपना हाथ छुड़ाने के लिए चिल्ला रहा था।

संत को देख वह बंदर संत से आग्रह करने लगा - महाराज! कृपा कर के मुझे इस बंधन से मुक्त करवा दो।

संत ने बंदर को कहा - तुमने घड़े के अंदर हाथ डाला, तो वह आसानी से उसमें चला गया, परन्तु अब इसलिए बाहर नहीं निकल रहा है क्योंकि तुमने अपने हाथ में लड्डू पकड़ा हुआ है जो उस घड़े के अंदर था। अगर तुम वह लड्डू हाथ से छोड़ दो, तो तुम आसानी से मुक्त हो सकते हो।

बंदर ने कहा - महाराज! लड्डू तो मैं नहीं छोड़ने वाला, अब आप मुझे बिना लड्डू छोड़े ही मुक्त होने की कोई युक्ति सुझाइए।

संत मुस्कुराए और कहा - या तो लड्डू छोड़ दो, अन्यथा तुम कभी भी मुक्त नहीं हो सकते।

हज़ार कोशिशों के बाद बंदर को इस बात का एहसास हुआ कि बिना लड्डू छोड़े मेरा हाथ इस घड़े से बाहर नहीं निकल सकता और मैं मुक्त नहीं हो सकता।

आख़िरकार बंदर ने वो लड्डू छोड़ा और सहजता से ही उस घड़े से मुक्त हो गया।

यह कहानी सिर्फ़ उस बंदर की ही नहीं बल्कि आज के हर उस इंसान की है जो लड्डू के मोह में अपना हाथ उस घड़े में (संसार में) फँसा बैठा है।

वह लड्डू (संसारिक वस्तुओं) को छोड़ना भी नहीं चाहता और उस घड़े (84 के फेरे से) से मुक्त भी होना चाहता है।

संत (सदगुरु) हमें समझाने का कार्य करते हैं कि संसार के दुःखों से, बंधनों से मुक्त होना है तो संसार की मोह-माया को छोड़ना ही पड़ेगा। अब किसे कब समझ आए और वह कब मुक्त होगा, यह उसकी अपनी समझ पर निर्भर करता है।

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 सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

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