ऑनलाइन शॉपिंग

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ऑनलाइन शॉपिंग

Image by Leopictures from Pixabay

एक बार मैं अपने अंकल के साथ एक बैंक में गया, क्योंकि उन्हें कुछ पैसा कहीं ट्रान्सफ़र करना था।

यह स्टेट बैंक एक छोटे-से कस्बे के छोटे से इलाक़े में था। वहाँ एक घंटा बिताने के बाद जब हम वहाँ से निकले तो उन्हें पूछने से मैं अपने आप को रोक नहीं पाया।

‘अंकल! क्यों न हम घर पर ही इंटरनेट बैंकिंग चालू कर लें?’

अंकल ने कहा - ‘ऐसा मैं क्यों करूँ?’

तो मैंने कहा कि अब छोटे-छोटे कैश ट्रांसफर के लिए बैंक आने की और एक घंटा टाइम ख़राब करने की ज़रूरत नहीं और आप जब चाहें तब घर बैठे अपनी ऑनलाइन शॉपिंग भी कर सकते हैं। हर चीज़ बहुत आसान हो जाएगी। मैं बहुत उत्सुक था उन्हें नेट बैंकिंग की दुनिया के बारे में विस्तार से बताने के लिए।

इस पर उन्होंने पूछा - ‘अगर मैं ऐसा करता हूँ तो क्या मुझे घर से बाहर निकलने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी? मुझे बैंक जाने की भी ज़रूरत नहीं?’

मैंने उत्सुकतावश कहा - ‘हाँ! आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और आपको किराने का सामान भी घर बैठे ही डिलिवर हो जाएगा। अमेज़न, फ़्लिपकॉर्ट व स्नैपडील सब सामान घर पर ही डिलिवर करते हैं।

उन्होंने इस बात का जो जवाब मुझे दिया, उसने मेरी बोलती बंद कर दी।

उन्होंने कहा - आज सुबह जब से मैं इस बैंक में आया, मैं अपने चार मित्रों से मिला और मैंने उन कर्मचारियों से बातें भी की, जो मुझे जानते हैं।

मेरे बच्चे दूसरे शहर में नौकरी करते हैं और कभी-कभार ही मुझसे मिलने आते-जाते हैं, पर आज ये वे लोग हैं जिनका साथ मुझे चाहिए। मैं अपने आप को तैयार कर के नए कपड़े पहन कर बैंक में आना पसंद करता हूँ। यहाँ जो अपनापन मुझे मिलता है, उसके लिए ही मैं वक़्त निकालता हूँ। दो साल पहले की बात है। मैं बहुत बीमार हो गया था। जिस मोबाइल दुकानदार से मैं रीचार्ज करवाता हूँ, वह मुझे देखने आया और मेरे पास बैठ कर मुझसे सहानुभूति जताई और उसने मुझसे कहा कि मैं आपकी किसी भी तरह की मदद के लिए तैयार हूँ।

वह आदमी जो हर महीने मेरे घर आकर मेरे यूटिलिटी बिल्स ले जाकर भर आता था, जिसके बदले मैं उसे थोड़े-बहुत पैसे दे देता था, उस आदमी के लिए कमाई का यही एक ज़रिया था और उसे ख़ुद को रिटायरमेंट के बाद व्यस्त रखने का तरीक़ा भी।

कुछ दिन पहले मॉर्निंग वॉक करते वक़्त अचानक मेरी पत्नी गिर पड़ी, मेरे किराने वाले दुकानदार की नज़र उस पर गई, उसने तुरंत अपनी कार में डाल कर उसको घर पहुँचाया, क्योंकि वो जानता था कि वह कहाँ रहती है।

अगर सारी चीज़ें ऑनलाइन ही हो गई तो मानवता, अपनापन, रिश्ते-नाते सब ख़त्म नहीं हो जाएँगे?

मैं हर वस्तु अपने घर पर ही क्यों मंगाऊं?

मैं अपने आपको सिर्फ अपने कम्प्यूटर से ही बातें करने में क्यों झोंकू?

मैं उन लोगों को जानना चाहता हूँ, जिनके साथ मेरा लेन-देन का व्यवहार है, जो मेरी निगाह में सिर्फ़ दुकानदार नहीं हैं। इससे हमारे बीच एक रिश्ता, एक बन्धन क़ायम होता है।

क्या अमेज़न, फ़्लिपकॉर्ट या स्नैपडील ये रिश्ते-नाते, प्यार, अपनापन भी दे पाएँगे?

फिर उन्होंने बड़े पते की एक बात कही जो मुझे बहुत ही विचारणीय लगी। आशा है आप भी इस पर चिंतन करेंगे।

उन्होंने कहा कि ये घर बैठे सामान मंगवाने की सुविधा देने वाला व्यापार उन देशों में फलता-फूलता है, जहां आबादी कम है और लेबर काफी मंहगी पड़ती है।

भारत जैसे 125 करोड़ की आबादी वाले गरीब एवं मध्यमवर्गीय बहुल देश में इन सुविधाओं को बढ़ावा देना, आज तो नया होने के कारण अच्छा लग सकता है, पर इसके दूरगामी प्रभाव बहुत ज्यादा नुकसानदायक होंगे।

देश में 80% व्यापार जो छोटे-छोटे दुकानदार गली-मोहल्लों में कर रहे हैं, वे सब बंद हो जायेंगे और बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर पहुँच जायेगी। इससे अधिकतर व्यापार कुछ गिने-चुने लोगों के हाथों में चला जायेगा। हमारी आदतें ख़राब और शरीर इतना आलसी हो जायेगा कि बाहर जाकर कुछ खरीदने का मन नहीं करेगा।

जब ज्यादातर धन्धे व दुकानें ही बंद हो जायेंगी, तो रेट कहाँ से टकराएंगे। तब ये ही कम्पनियाँ जो अभी सस्ता माल दे रही हैं, वे ही फिर मनमानी कीमत हमसे वसूल करेंगी। हमें मजबूर होकर सब कुछ ऑनलाइन ही खरीदना पड़ेगा और ज्यादातर जनता बेकारी व भुखमरी की ओर अग्रसर हो जायेगी।

मैं आज तक यह नहीं समझ पाया हूँ कि उनको क्या जबाब दूं।

क्या आपके पास इसका कोई जवाब है? चिन्तन करें।

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 सरिता जैन

सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका

हिसार

🙏🙏🙏


विनम्र निवेदन

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धन्यवाद।

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