रिश्तों की स्टेपनी
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रिश्तों की स्टेपनी
Image by Manfred Richter from Pixabay
पहले बी.एम.डब्ल्यू कार में स्टेपनी नहीं होती थी।
आज तो मैं आपसे रिश्तों की स्टेपनी की बात करने जा रहा हूँ।
कल ही मुझे पता चला कि मेरी एक परिचित, जो दिल्ली में अकेली रहती हैं, उनकी तबियत ख़राब है। मैं उनसे मिलने उनके घर गया।
वह कमरे में अकेली बिस्तर पर पड़ी थी। घर में एक नौकरानी थी, जो आराम से ड्राइंग रूम में टी.वी. देख रही थी। मैंने दरवाज़े की घंटी बजाई तो नौकरानी ने दरवाज़़ा खोला और बड़े अनमने ढंग से उसने मेरा स्वागत किया। ऐसा लगा जैसे मैंने नौकरानी के आराम में खलल डाल दिया हो।
मैं परिचित के कमरे में गया तो वह लेटी थी, काफी कमज़ोर और टूटी हुई सी नज़र आ रही थी।
मुझे देख कर उन्होंने उठ कर बैठने की कोशिश की। मैंने सहारा देकर उन्हें बिस्तर पर बिठाया।
मेरी परिचित चुपचाप मेरी ओर देखती रही, फिर मैंने पूछा कि क्या हुआ?
परिचित मेरे इतना पूछने पर बिलख पड़ी।
कहने लगी, “बेटा, अब ज़िंदगी में अकेलापन बहुत सताता है। कोई मुझसे मिलने भी नहीं आता।”
इतना कह कर वह रोने लगी।
कहने लगी, “बेटा, मौत भी नहीं आती। अकेले पड़े-पड़े थक गई हूँ। पूरी ज़िंदगी व्यर्थ लगने लगी है।”
मुझे याद आ रहा था कि इनके पति एक ऊंचे सरकारी अधिकारी थे। जब तक वह रहे, इनकी ज़िंदगी की गाड़ी बी.एम.डब्ल्यू के रन फ्लैट टायर पर पूरे रफ्तार से दौड़ती रही। इन्होंने कई मकानों, दुकानों, शेयरों में निवेश किया, लेकिन रिश्तों में नहीं किया। तब इन्हें लगता था कि ज़िंदगी मकान, दुकान और शेयर से चल जाएगी। इन्होंने घर आने वाले रिश्तेदारों को बड़ी हिकारत भरी निगाहों से देखा। इन्हें यकीन था कि ज़िंदगी की डिक्की में रिश्तों की स्टेपनी की ज़रूरत नहीं। एक बेटा था और तमाम बड़े लोगों के बेटों की तरह वह भी अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ता हुआ अमेरिका चला गया। एक दिन पति संसार से चले गए, मेरी परिचित अकेली रह गई।
ज्यादा विस्तार में क्या जाऊं? इतना ही बता दूं कि ये यहां पिछले कई वर्षों से अकेली रहती हैं।
क्योंकि इन्होंने अपने घर में रिश्तों की स्टेपनी की जगह ही नहीं रखी थी, तो इनसे मिलने भी कोई नहीं आता। अब गाड़ी है, तो पंचर तो हो ही सकती है। तो एक दिन इन्होंने नौकरानी रूपी डोनट स्टेपनी देखभाल के लिए रख ली।
कल जब मैं अपनी परिचित के घर गया, तो रिश्तों की वह डोनट स्टेपनी ड्राइंग रूम में टी.वी. देख रही थी। मेरी परिचित अपने कमरे में बिस्तर पर कुछ ऐसे लेटी पड़ी थी जैसे मथुरा में अपनी गाड़ी के पंचर हो जाने के बाद जब तक कंपनी से कोई गाड़ी उठाने नहीं आ जाता, तब तक तो इसी तरह पड़े रहना पड़ेगा।
गाड़ी सस्ती हो या महंगी, उसमें अतिरिक्त टायर का होना ज़रुरी है। स्टेपनी के बिना कितनी भी बड़ी और महंगी गाड़ी हो, यदि वह पंचर हो गई, तो किसी काम की नहीं रहती।
ज़िंदगी में चाहे सब कुछ हो, अगर आपके पास सुख-दुख के लिए रिश्ते नहीं, तो आपने चाहे जितनी भी हसीन ज़िंदगी गुजारी हो, एक दिन वह व्यर्थ नज़र आने लगेगी।
उठिए, आज ही अपनी गाड़ी की डिक्की में झांकिए कि वहां स्टेपनी है या नहीं। यदि है तो उसमें हवा ठीक है या कम हो गई है।
उठिए और आज ही अपनी ज़िंदगी की डिक्की में भी झांकिए कि उसमें रिश्तों की स्टेपनी है या नहीं। है तो उसमें मुहब्बत बची है या कम हो गई है।
ध्यान रहे, डोनट टायर के भरोसे कार कुछ किलोमीटर की ही दूरी तय कर पाती है, पूरा सफर तय करने के लिए तो पूरे पहिए की ही ज़रूरत होती है।
पुनः -
अमेरिका और यूरोप में सड़कें अच्छी हैं, तो वहां शायद रन फ्लैट टायर वाली गाड़ियां साथ निभा भी जाती हैं। वहां सरकार आम आदमी को सामाजिक सुरक्षा देती है, तो आदमी तन्हा होकर भी किसी तरह जी लेता है।
लेकिन हमारे यहां न सड़कें अच्छी हैं, न कोई सामाजिक सुरक्षा है। ऐसे में हमें गाड़ी के पीछे पूरा टायर भी चाहिए और ज़िंदगी के पीछे पूरे रिश्ते भी। जो चूका, समझिए वह जीवन से ही चूक गया।
संबंध कभी भी सबसे जीतकर नहीं निभाए जा सकते।
संबंधों की खुशहाली के लिए झुकना होता है, सहना होता है, दूसरों को जिताना होता है और स्वयं हारना होता है।
सच्चे सम्बन्ध ही वास्तविक पूँजी है।
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सरिता जैन
सेवानिवृत्त हिन्दी प्राध्यापिका
हिसार
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